Ramayan: आखिर वनवास के वो कौन से कष्ट थे जिसका जिक्र श्री राम ने मां जानकी से किया था, जानिए
भगवान राम तो अंतर्यामी और नियती के हर गूढ़ रहस्यों को जानने वाले पराब्रह्म स्वरूप माने जाते हैं। मां कैकई के राजा दशरद से आग्रह करने पर जब यह सुनिश्चित हुआ कि श्री राम ही 14 वर्ष के लिए वनवास जाएंगे। तब मां सीता ने भी यह प्रण लिया था कि वह भी प्रभु श्री राम की वनवास यात्रा में साथ जाएंगी। उन्होंने भी वन मार्ग की यात्रा में श्री राम के साथ जाने की हठ लगा ली। प्रभु राम भला कैसे अपनी प्राण प्रिय जानकी जी को वन मार्ग में दुःखी देख सकते थे। वह अच्छे से जानते थे कि एक वनवासी को किन पड़ावों से गुजरना पड़ता है और वहां किस प्रकार के कष्ट और घोर दुःख हैं।
इसलिए उन्होंने मां सीता को वन मार्ग के दुःखों का वृतांत समझाते हुए उन्हें साथ न चलने कि लिए कहा। प्रभु राम ने मां सीता से कहा कि आप राज महलों में रही हैं। 14 वर्ष के वनवास में घोर दुःख के सिवा और कुछ भी नहीं है। पिता की आज्ञा का पालन करना मेरा परम धर्म है। अतः आप इस वन के कष्टों को जान लीजिए। आज हम आपको वाल्मिकी रामायण के अयोध्या कांड के सर्ग 28 में श्री राम द्वारा बताए गए वनवास के दुःखों का वर्णन बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं प्रभु राम ने 14 वर्षों के वनवास के कष्टों के बारे में क्या कहा।
श्रीराम ने बताया था एक वनवासी का कष्ट (वाल्मिकी रामायण अयोध्या कांड)
सीते यथा त्वां वक्ष्यामि तथा कार्यं तव्याबले।
वने दोषा हि बहवो वसतस्तान् निबोध।।
श्री राम सीता जी से कहते हैं कि वन निवास करने वाले मनुष्य को विभिन्न प्रकार के कष्ट भोगन पड़ते हैं। मैं उन्हें आपको बताने जा रहा हूं।
गिरिनिर्झरसम्भूता गिरिनिर्दरिवासिनाम्।
सिंहानां निनदा दुःखाः श्रोतुं दुःखमतो वनम्।।
पहाड़ों से गिरने वाले झरनों की आवाज से वन की गुफाओं में रहने वाले शेर उन्हें सुनकर दहाड़ने लग जाते हैं। उनकी यह गर्जना सुनना बड़ी दुःखदायी है। इसलिए वन का मार्ग कष्टकारी है।
क्रीडमानाश्व विस्त्रब्धा मत्ताः शून्ये तथा मृगाः।
दृषट्वा समभिवर्तन्ते सीते दुःखमतो वनम्।।
वन में कई सारे जंगली पशु मनुष्य को देखते ही उनको अपना शिकार बनाने का प्रयास करते हैं। इसलिए वन का मार्ग इतना सरल नहीं है और वह घोर दुःखों से भरा हुआ है।
सग्राहाः सरितश्वैव पंकवत्यस्तु दुस्तराः।
मत्तैरपि गजैर्नित्यमतो दुःखतरं वनम्।।
वन के मार्ग में अनेक प्रकार की नदियां हैं। उनमें ग्राह रहते हैं, उन निदियों में कीचड़ अधिक होने के कारण उन्हें पार करना बहुत कठिन है। वहां जंगली हाथी भी घूमते हैं वन का मार्ग सदा काष्टकारी ही होता है।
लताकण्टकसंकीर्णाः कृकवाकूपनादिताः।
निरपाश्व सुदुःखाश्व मार्गा दुःखमतो वनम्।।
प्रभु राम आगे कहते हैं कि वन के उन भीषण जंगलों के रास्तों में कांटों वाली लताएं हैं, जंगली पशु आवाज से गर्जना करते रहते हैं। वहां जल पीने के लिए ढूंढना पड़ता है, वन के मार्ग में हर जगह घोर दुःख-संताप बिखरा हुआ है।
अहोरात्रं च संतोष: कर्तव्यो नियतात्मना।
फलैर्वृक्षावतितै: सीते दुःखमतो वनम्।।
एक वनवासी के लिए मन को वश में रखना पड़ता है और पेड़ों से गिरे हुए रुखे-सुखे फलों को ही भोजन रूप में खाकर दिन-रात धैर्य रखना पड़ता है। वहां घोर दुःख के सिवा कुछ भी नहीं है।
वन का निवास नहीं है इतना सरल
इन सब कष्टों के अलावा प्रभु राम ने आगे बताया कि वनवास करने वाले लोगों को जैसा भोजन मिले वही खाना पड़ता है, वहां आंधी, घोर अंधकार, भूख का कष्ट और अन्य भय लगे रहेत हैं। इसी के साथ वहां निम्न प्रकार के सांप रास्तों में विचरते रहते हैं और विष वाले बिच्छू, कीड़े एवं अन्य कीट पतंगे दुःख दायक हैं। वन मार्ग में मनुष्य को इन शारीरक कष्टों को भोगने के सिवाय कुछ भी नहीं है। इसलिए मेरा निवेदन है आपसे की आप वनवास में चलने की हठ न करें। परंतु मां जानकी ने यह प्रण किया कि इन सबके बाबजूद भी वहां श्री राम के साथ वनवास के लिए जाएंगी।