बिलकिस बानो केस में ‘सुप्रीम’ फैसला, मौलाना मदनी ने किया स्वागत, कहा- न्याय के शासन की जीत

सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के कुसूरवारों को बड़ा झटका देते हुए गुजरात सरकार को पलट दिया है. वहीं इस फैसले के बाद सियासी गलियारों में मामला चर्चा का विषय बन गया है. जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि यह कानून और न्याय के शासन की जीत है और इसका स्पष्ट संदेश है कि किसी भी स्थिति में न्याय से समझौता नहीं किया जाना चाहिए.

मौलाना मदनी ने कहा कि उम्मीद है कि यह फैसला भविष्य के लिए एक उदाहरण बनेगा कि सरकारों को न्याय देने में निष्पक्ष और गैर-पक्षपातपूर्ण होना चाहिए और बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों की गंभीरता के प्रति उदासीन नहीं होना चाहिए.

लंबे संघर्ष और बलिदान की कहानी

मौलाना मदनी ने बताया कि बिलकिस बानो का मामला एक लंबे संघर्ष और बलिदानों से भरा हुआ है. जमीअत उलमा-ए-हिंद ने गुजरात दंगा पीड़ितों के लिए जहां 30 से अधिक कालोनियों का निर्माण करवाया, वहीं बिलकिस बानो सहित कई मुकदमे लड़े. गुजरात दंगों के दौरान रणधीरपुर दाहोद जिले में दंगाइयों ने कैसरपुरा के असपास 18 लोगों को शहीद कर दिया. बिलकिस और उसकी 7 सहेलियों के साथ दरिंदों ने सामूहिक बलात्कार किया. बिलकिस की लड़की को चीरकर आग में डाल दिया गया.

गुजरात पुलिस की जांच में लापरवाही

मौलाना ने कहा कि गुजरात पुलिस ने जांच में लापरवाही की, जिसके कारण किसी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई को सौंपी. गुजरात सरकार के रवैये के कारण बिलकिस बानो का मामला बॉम्बे हाई कोर्ट में स्थानांतरित हो गया, जहां जमीअत उलमाए-हिंद और जन विकास नामक संगठन ने मुकदमे की पैरवी की.

2022 में अपराधियों की रिहाई

इसके साथ ही रणधीरपुर के लोगों के लिए बारिया नामक कस्बे में ‘रहीमाबाद’ के नाम से जमीअत उलमा-ए-हिंद ने एक कॉलोनी का निर्माण करवाया, जहां बिलकिस बानो अपने पति के साथ रहने लगीं. अभी 2022 में जब इन अपराधियों की रिहाई हुई तो गांव में डर का माहौल पैदा हो गया था. इस मौके पर जमीअत उलमा-ए-हिंद के प्रतिनिधिमंडल ने जमीअत महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी के नेतृत्व में प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और हर संभव सहायता का आश्वासन दिया था.

अपराधियों की सजा माफ करने पर सवाल

मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि उम्मीद है कि ये फैसला भविष्य के लिए एक मिसाल बनेगा. उन्होंने कहा कि अगर सरकारें इसी तरह अपने राजनीतिक फायदे के लिए अदालत द्वारा दोषी पाए गए अपराधियों की सजा माफ करने लगें तो देश में कानून और न्याय की स्थिति क्या होगी? इस निर्णय से एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और सर्वोच्चता सुनिश्चित हुई है, इससे देश के आम नागरिकों खासकर अल्पसंख्यकों का सुप्रीम कोर्ट के प्रति विश्वास मजबूत होगा.

सरकार माफ करने के लिए अधिकृत नहीं

इस बात पर बहस चल रही थी कि क्या राज्य सरकार ऐसा करने के लिए अधिकृत है, उस समय गुजरात सरकार द्वारा इसका कोई जवाब नहीं दिया गया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि गुजरात सरकार उन्हें माफ करने और रिहा करने के लिए अधिकृत नहीं है. उन्होंने कहा कि जमीयत उलमा-ए-हिंद अनगिनत केस लड़ रही है और इस अनुभव के आधार पर हम कहते हैं कि अब न्याय के लिए कोर्ट ही एक मात्र सहारा हैं.

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