Bilkis Bano Case: 11 दोषियों की अब जल्द नहीं हो पाएगी रिहाई, आवेदन करने के लिए जेल में गुजारने होंगे 13 साल
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने अहम फैसले गुजरात सरकार पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए जमकर लताड़ा. कोर्ट साल 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के 14 लोगों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने के सरकार के फैसले को रद्द कर दिया. साथ ही दोषियों को 2 हफ्ते के अंदर जेल भेजने का आदेश सुना दिया. हालांकि अब उनकी जल्द रिहाई के आसार नहीं दिख रहे हैं, क्योंकि इन 11 दोषियों को अब 2008 के महाराष्ट्र छूट नियमों (Maharashtra Remission Rules of 2008) के तहत छूट पाने के लिए आवेदन करने का पात्र बनने से पहले 13 साल और जेल की सजा काटनी पड़ेगी.
देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपने फैसले में साल 2022 में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के आदेश को रद्द कर दिया. अब सुप्रीम आदेश के बाद रिहाई के करीब 17 महीने बाद दोषियों को 2 हफ्ते के अंदर गोधरा जेल अधिकारियों के सामने फिर से आत्मसमर्पण करने होगा.
गुजरात सरकार के पास अधिकार नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि 11 दोषियों की माफी या फिर समय पूर्व रिहाई आवेदन पर फैसला करने का उचित अधिकार गुजरात सरकार के पास नहीं था बल्कि महाराष्ट्र सरकार के पास थी. शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि जिन दोषियों को बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और उसके नवजात बच्चे समेत उसके परिवार के 14 लोगों की हत्या के अपराध के लिए गोधरा जेल में रखा जाएगा. साथ ही उन्हें महाराष्ट्र सरकार के जेल नियमों के अनुसार छूट पाने के लिए नए सिरे से आवेदन करना होगा.
बिलकिस बानो केस में लागू महाराष्ट्र छूट नियमों के अनुसार, कई अपराधों को अपराध की गंभीरता के अनुसार वर्गीकृत किया गया है और कारावास की न्यूनतम अवधि भी तय की गई है जो एक दोषी को सजा से माफी के लिए या फिर समय से पूर्व रिहाई को लेकर विचार करने से पहले अनिवार्य रूप से पूरी करनी होती है.
CBI के जज ने 2008 में सुनाई थी सजा
साल 2021 में, सीबीआई के स्पेशल जज (ग्रेटर मुंबई) ने 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई पर अपनी राय देते हुए कहा था कि महाराष्ट्र के गृह विभाग की ओर से जारी सरकारी संकल्प 11 अप्रैल 2008 की तारीख से उन दोषियों पर लागू होगा क्योंकि उक्त प्रस्ताव ने पहले के सभी आदेशों और दिशा-निर्देशों को हटा दिया और आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषियों पर भी सामान्य तरीके से लागू होगा.
स्पेशल जज ने यह भी कहा कि इन दोषियों का मामला 11 अप्रैल 2008 की पॉलिसी की कैटेगरी 2 (C), 2 (D) और 4 (D) के तहत आएगा, जिसके अनुसार कारावास की न्यूनतम अवधि (28 साल) के तहत काटनी 2 (D) होगी. देश की सबसे बड़ी अदालत ने 251 पन्नों से अधिक का फैसला सुनाते हुए कहा कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने को लेकर उचित सरकार नहीं है.
दोषियों की सजा माफी पर फैसला लेने का ‘उचित सरकार’ के अधिकार के बारे में कोर्ट ने कहा, “जिस राज्य में दोषियों को सजा सुनाई गई है, उस राज्य की सरकार सजा माफी देने के लिए उपयुक्त सरकार है, न कि उस राज्य की सरकार जहां पर अपराध हुआ था.” दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया था.
साल 2008 में, सीबीआई के स्पेशल जज (ग्रेटर मुंबई) ने इन 11 आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हें बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने और उनकी मां, चचेरे भाई शमीम के साथ उसकी साढ़े 3 साल की बच्ची समेत कुल 14 लोगों की हत्या करने अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.