विष्णु जी के 7वें अवतार थे भगवान राम, जानें क्यों उन्हें क्यों कहा जाता है सूर्यवंशी

विष्णु जी के 7वें अवतार थे भगवान राम, जानें क्यों उन्हें क्यों कहा जाता है सूर्यवंशी

मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम राजा दशरथ और कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे. सनातन धर्म में विश्वास रखने वाले प्रभु श्रीराम में अपनी भरपूर आस्था रखते हैं. हिंदू धर्म में धार्मिक पुस्तक और ग्रंथों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि प्रभु श्रीराम भगवान विष्णु के 7वें अवतार थे. इन्हें सूर्यवंशी भी कहा जाता है. आखिर प्रभु श्रीराम को विष्णु का अवतार क्यों कहा जाता है और इनका सूर्यवंश से कैसा जुड़ाव है.

भगवान राम को मानव रूप में पूजे जाने वाले सबसे पुराने देवता माना जाता है. बता दें कि भगवान राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था. ऐसा माना जाता है कि त्रेता युग आज से 1,296, 000 साल पहले समाप्त हो गया था. त्रेता युग के भगवान राम के अलावा भगवान विष्णु ने वामन और परशुराम के रूप में अवतार लिया था.

क्यों कहा जाता है सूर्यवंशी?
भगवान राम का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था, जिसकी स्थापना सूर्य के पुत्र राजा इक्ष्वाक ने की थी, इसलिए भगवान राम को सूर्यवंशी भी कहा जाता है. भगवान विष्णु का 394वां नाम राम है. विष्णु सहस्त्रनाम नामक पुस्तक में भगवान विष्णु के एक हजार नामों को सूचीबद्ध करती है. भगवान राम का नाम महर्षि वशिष्ठ ने रखा गया था. गुरु वशिष्ठ के अनुसार, राम शब्द दो बीजाणुओं- अग्नि बीज और अमृत बीज से बना है. यह नाम मन, शरीर और आत्मा को शक्ति प्रदान करता है. भगवान राम का तीन बार उच्चारण हजारों देवताओं को याद करने जैसा है.

भगवान विष्णु ने क्यों लिया श्रीराम का अवतार?
महाभारत में यह वर्णन मिलता है कि एक बार भगवान शिव ने कहा कि राम के नाम का तीन बार पाठ करने से हजार देवताओं के नामों के उच्चारण के बराबर कृपा मिलती है.पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार सनकादिक मुनि भगवान श्रीहरि का दर्शन करने के लिए वैकुंठ पहुंचे. उस समय दो द्वारपाल- जय और विजय पहरा दे रहे थे, जब सनकादिक मुनि द्वार से होकर जाने लगे तो जय और विजय ने उनकी हंसी उड़ाते हुए रोक लिया. जिसके बाद क्रोधित होकर सनकादिक मुनि ने उन दोनों को तीन जन्मों तक राक्षस कुल में जन्म लेने का श्राप दे दिया. दोनों ने मुनि से क्षमा मांगी लेकिन सनकादिक मुनि ने कहा कि तीन जन्मों के बाद तुम्हारा अंत विष्णु जी ही करेंगे, इसके बाद ही तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी.

इस प्रकार पहले जन्म में जय और विजय ने हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष के रूप में जन्म लिया, जिसमें श्रीहरि ने नराह अवतार लेकर उन दोनों का अंत किया. दूसरे जन्म में जय और विजय ने रावण और कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया और भगवान विष्णु ने श्रीराम का अवतार लेकर इन दोनों का वध किया. तीसरे जन्म में दोनों ने शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में जन्म लिया, जिसमें विष्णु जी नेभगवान श्रीकृष्ण का रूप लेकर ने इनका वध किया.

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