1989 में राम नाम की पहली ईंट सिर पर रख चले थे अशोक सिंघल, राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा में शामिल होगा परिवार

राम मंदिर आंदोलन के नायकों में सबसे बड़ा नाम अगर कोई आता है तो वह हैं विहिप नेता अशोक सिंघल। एक ऐसे राम साधक, संन्यासी, योद्धा, शिल्पकार, हिंदुत्व के प्रखर वक्ता, जिनकी साधना-जिनकी तपस्या, जिनकी दूरदृष्टि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का आकार ले चुकी है, वो सही मायने में अयोध्या के राम मंदिर के नींव के पत्थर हैं।

अशोक सिंघल 1989 मे राम नाम की पहली ईंट सिर पर रख अयोध्या के लिए निकले थे। उस दौर में अलीगढ़ में भी रामभक्तों की एक सभा को संबोधित करते हुए अयोध्या जाने का आह्वान किया था। वह जब भगवान राम को टेंट में विराजमान देखते थे तो भावुक होकर कहते थे कि एक दिन प्रभु राम भव्य राम मंदिर में विराजेंगे। अब 22 जनवरी को वह शुभ घड़ी नजदीक आने को है। बेशक वह इस पल के साक्षी न बनें लेकिन वह अपने परिजनों के रूप में जरूर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के साक्षी बनने जा रहे हैं। उनके भतीजे सलिल सिंघल सपत्नीक पीएम मोदी के साथ सम्पूर्ण अनुष्ठान में मौजूद रहेंगे। इसके अलावा अलीगढ़ में रहने वाले भतीजे व नाती का परिवार भी 21 जनवरी को ही अयोध्या में होने वाले कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचेगा।

1990 में हुए राम मंदिर आंदोलन में विहिप नेता के करीबियों में शामिल रहे विहिप व बजरंग दल नेता सिद्धार्थ मोहन अग्रवाल ने हिन्दुस्तान से बातचीत में बताया कि मंदिर निर्माण आंदोलन चलाने के लिए जनसमर्थन जुटाने में अशोक सिंघल की अहम भूमिका रही थी। कई लोगों की नजरों में वह राम मंदिर आंदोलन के चीफ आर्किटेक्ट थे। वह कहते हैं कि क्या किसी ने कल्पना की थी कि 16 शताब्दी में बाबर निर्मित ढांचे को जमींदोज कर भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जा सकता है, लेकिन अशोक सिंघल के बेमिसाल संगठन क्षमता, लगातार प्रयास, मिशन को पूरा करने के संकल्प और असंभव को संभव कर दिखाने के जज्बे ने ये कमाल कर दिया। श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के गठन के साथ राम मंदिर आंदोलन का शंखनाद किया गया था। जिसके बाद पहली बार 1984 में श्रीराम जानकी रथयात्रा की शुरुआत की गई थी। जिसके बाद लोगों को राम मंदिर आंदोलन से जोड़ने के लिए अलग-अलग कार्यक्रम तय किए गए थे।

 

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