CM योगी के गुरु अवेद्यनाथ को पीएम राजीव गांधी ने क्या ऑफर दिया, जो उन्होंने हंसते हुए ठुकराया?
1 फरवरी, 1986 को अयोध्या की विवादित इमारत का ताला खोलने का आदेश आया और ताला खुला तो इसके खिलाफ प्रतिक्रिया आनी भी शुरू हो गई. देशभर में विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हुआ. ताला खुलने के 6 दिन बाद ही 6 फरवरी को बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का जन्म हुआ. 14 फरवरी को मुस्लिम संगठनों ने पूरे देश में शोक दिवस मनाया. मामला बढ़ता देख विश्व हिंदू परिषद फिर लड़ाई में कूदी जिसे खुद ताला खुलने से धक्का लगा था, क्योंकि उसे ये आंदोलन हाथ से फिसलता नजर आया. नेतृत्व के सूत्र फिर से पकड़ने के लिए विहिप ने अपना रुख और कड़ा किया. जून 1986 में विहिप ने विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण की नई मांग रख दी.
दूसरी तरफ देश के अलग-अलग हिस्सों में छह राम-जानकी रथ घूम रहे थे. इससे भी जगह-जगह सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा था. सरकार ने 11 जून, 1986 को इन रथों पर पाबंदी लगा दी. पाबंदी देख विहिप ने रथयात्रा स्थगित कर दी. इधर, देशव्यापी मुस्लिम विरोध से कांग्रेस के हाथ-पांव फूले और वह अयोध्या मामले में बीच का रास्ता ढूंढने लगी. विहिप को भी इस आंदोलन से अलग-थलग करने की कांग्रेसी कोशिशें तेज हुईं. इस काम में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह को लगाया गया, ताकि मंदिर निर्माण सरकार द्वारा प्रायोजित न्यास से कराया जा सके. दरअसल, अयोध्या आंदोलन से जुड़े ये रोचक किस्से एक किताब युद्ध में अयोध्या से आपके लिए हम लेकर आ रहे हैं. ये किताब लेखक व TV9 नेटवर्क के न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा ने लिखी है.
राजीव गांधी को क्या दिया गया प्रस्ताव
किताब के मुताबिक, योजना में मस्जिद के तीनों गुंबदों को वैसे ही छोड़कर उसी जगह खंभों पर मंदिर निर्माण का प्रस्ताव राजीव गांधी को दिया गया, जिसके नीचे तीनों गुंबद पड़े रहते. राजीव गांधी ने योजना पर अमल की संभावना तलाशने का काम सरदार बूटा सिंह को सौंपा, जो उस वक्त गृहमंत्री थे.
खैर, प्रधानमंत्री राजीव गांधी यहीं नहीं रुके, वे मंदिर निर्माण के दूसरे गैर-बीजेपी रास्ते भी ढूंढने में लगे रहे. मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह गोरखपुर के रहने वाले थे. गोरखपीठ के प्रमुख महंत अवेद्यनाथ से उनका स्थानीय और जातीय घरोपा था. अवेद्यनाथ मंदिर आंदोलन के मुखिया थे. वीर बहादुर सिंह के तब सुरक्षाधिकारी देवेंद्र बहादुर राय थे, जो बाद में फैजाबाद के एस.एस.पी. भी बने. 6 दिसंबर, 1992 में उन्हीं के एस.एस.पी. फैजाबाद रहते ढांचा गिरा था. बाद में नौकरी से इस्तीफा देकर डी.बी. राय सुल्तानपुर से बीजेपी के सांसद भी चुने गए.
‘सोमनाथ की तर्ज पर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने’
किताब के मुताबिक, डी.बी. राय बताते हैं, “एक रोज वीर बहादुर सिंह ने मुझे बुलाकर पूछा, आप गाड़ी चला लेते हैं. मैंने कहा- हां, तो वे बोले, मेरी गाड़ी, ड्राइवर, सुरक्षा, सचिव सबको छुट्टी दे दीजिए. मुझे कहीं जाना है. आपके साथ आपकी ही गाड़ी में चलूंगा. उस रात वीर बहादुर सिंह एक रिटायर्ड इनकम टैक्स अफसर मोहन सिंह के लखनऊ महानगर के घर पर चुपचाप गए. मोहन सिंह हमें एक कमरे में ले गए, वहां राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष महंत अवेद्यनाथ पहले से बैठे थे. हमें कमरे में पहुंचाकर मोहन सिंह वहां से चले गए. अब हम तीन ही लोग वहां थे. वीर बहादुर सिंह ने कहना शुरू किया-राजीव जी चाहते हैं, सोमनाथ की तर्ज पर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने, लेकिन इसे केंद्र सरकार बनाएगी. इसमें सिर्फ तीन शर्त हैं. एक-मंदिर केंद्र सरकार अपने खर्चे से बनाएगी. दो-मंदिर निर्माण का बीजेपी से कोई मतलब नहीं होगा और तीन-विवादित भवन गिराया नहीं जाएगा. चारों तरफ खंभों पर एक छत पड़ेगी और उसकी छत पर भव्य मंदिर बनेगा. नीचे ढांचा जस का तस खड़ा रहेगा. प्लान यह है कि विवादित ढांचा पहले से ही कमजोर है. बिना मरम्मत के वह कुछ दिन में खुद ही गिर जाएगा. फिर वहां केवल राम जन्मभूमि मंदिर ही रहेगा.”
किताब के मुताबिक, वीर बहादुर सिंह के इस प्रस्ताव से अवेद्यनाथ जोर से हंसे और कहा कि इससे बीजेपी और विहिप को क्या फायदा होगा? राजनीतिक फायदा तो कांग्रेस को होगा. फिर बात यहां खत्म हुई कि अवेद्यनाथ जी विहिप के दूसरे नेताओं से बात करेंगे और अपनी राय बताएंगे. लेकिन इस मुद्दे पर अवेद्यनाथ ने आगे फिर कोई बात नहीं की और फायदे-नुकसान के चक्कर में यह मौका भी हाथ से चला गया.