अमेरिका ने भारतीय मिडिल क्लास की उम्मीद जगाई, क्या कम होगी Loan EMI?
भारत के मिडिल क्लास की मौजूदा समय में दो ही सबसे बड़ी परेशानी है, पहली महंगाई और दूसरी बढ़ी हुई ईएमआई. कुछ दिन पहले अमेरिका ने साफ संकेत दिए कि साल 2024 में ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है. जिसके बाद भारत के मिडिल क्लास की उम्मीदें जग गई हैं कि आने वाले नए साल में भारत भी ब्याज दरों की कटौती कर सकता है. लेकिन भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती महंगाई को कम करने की है. आम लोगों को उम्मीद है कि आरबीआई और सरकार फरवरी से पहले महंगाई के आंकड़ों को चार फीसदी के अंडर में लेकर आ जाएगी. जिसके बाद फरवरी पॉलिसी और उसके बाद अप्रैल पॉलिसी में ब्याज दरों में कटौती उन्हें बढ़ी हुई ईएमआई से राहत दी जाएगी.
वास्तव में कुछ ऐसा ही दबाव मौजूदा सरकार पर भी बना हुआ है. उसका एक अहम कारण अगले साल होने वाले आम चुनाव भी हैं. जिसमें महंगाई और बढ़ी हुई ईएमआई दोनों अहम मुद्दे हो सकते हैं. ऐसे में सरकार भी चाहती है कि इन दोनों को चुनाव से पहले कंट्रोल किया जा सके और देश की सबसे बड़ी मिडिल क्लास आबादी को राहत देकर अपने लिए वोट में कंवर्ट किया जाए. तो आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती का भारत से क्या कनेक्शन है और उसका फायदा आम लोगों को कैसे मिल सकता है?
अमेरिका ने क्या दिए संकेत?
पहले इस बात को समझना काफी जरूरी है कि आखिर अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेड रिजर्व की ओर से अपनी पॉलिसी मीटिंग में किस तरह के संकेत दिए हैं. कुछ दिन पहले अमेरिकी फेड की ओर से संकेत मिले हैं कि ब्याज दरों में इजाफे का दौर खत्म हो चुका है. इसी वजह से फेड ने लगातार महीनों में ब्याज दरों को होल्ड पर रखा है. साथ ही इस बात के संकेत दिए हैं कि साल 2024 में तीन बार ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है. कयास ये लगाए जा रहे हैं कि अमेरिकी फेड 25-25 बेसिस प्वाइंट के साथ तीन कटौती कर ब्याज दरों में कुल 75 बेसिस प्वाइंट कटौती कर सकता है. वहीं बाजार को चार बार कटौती करने की उम्मीद है. इसका मतलब है कि ब्याज दरों को एक फीसदी तक कम किया जा सकता है. ऐसे में ब्याज दरें कम हो जाएंगी. साथ ही जिस तरह का अमेरिकी बैंकिंग सेक्टर में क्राइसिस देखने को मिल रहा था वो काफी हद तक खत्म हो जाएगा.
फेड के फैसले से भारतीयों की उम्मीदें क्यों जगी?
ये सवाल काफी अहम है. क्योंकि करीब 11 हजार किलोमीटर की दूसरी से आए एक फैसले से भारत के मिडिल क्लास में हलचल क्यों हो गई है? हमेशा देखा गया है कि जब भी अमेरिकी फेड अपनी पॉलिसी रेट में बदलाव करता है तब-तब भारत भी अपनी ब्याज दरों में बदलाव करता है. भले ही भारत ने अपनी ब्याज दरों में बीती पांच मीटिंग में ब्याज दरों को होल्ड पर रखा और अमेरिका ने इस दौरान दो बार ब्याज दरों में इजाफा किया. लेकिन भारत अमेरिका के मुकाबले ब्याज दरों में पहले ही इजाफा कर चुका था और महंगाई के आंकड़ें भी अमेरिका के मुकाबले कंट्रोल में थे.
अगर अमेरिका जनवरी के आखिरी दिनों में होने वाली की मीटिंग में ब्याज दरों में कटौती करता है तो भारत के सेंट्रल बैंक पर ब्याज दरों में कटौती करने का दबाव होगा. भारत के सेंट्रल बैंक एमपीसी की मीटिंग 6 से 8 फरवरी के बीच होनी है. 8 फरवरी को पॉलिसी रेट का ऐलान होगा. जनवरी के महंगाई के आंकड़ें 12 फरवरी हो आएंगी. लेंकिन सेंट्रल बैंक को जनवरी के महंगाई आंकड़ों के बारे में अंदाज होगा. ऐसे में फरवरी में आरबीआई अपने अंदाज से ब्याज दरों में कटौती कर सकता है.
क्या सरकार भी है दबाव?
अब जरा केंद्र सरकार के इन बातों को समझने की कोशिश करते हैं. सरकार के सामने बढ़ी हुई महंगाई और आम लोगों पर ईएमआई के बोझ को कम करने का दबाव है. महंगाई कंट्रोल करने के लिए सरकार की ओर से कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं. ताकि दिसंबर और जनवरी के महंगाई के आंकड़ों को 4 फीसदी के दायरे मेंं लाया जा सके. नवंबर के महीने के महंगाई के आंकड़ों की बात करें तो रिटेल महंगाई 3 महीने की ऊंचाई पर थी और थोक महंगाई भी माइनस से बाहर निकलकर करीब 8 महीने के हाई पर पहुंच गई.
सरकार के लिए ये आंकड़ें महंगाई को कंट्रोल करने के रास्ते में सबसे बड़ा सैटबैक था. ऐसे में सरकार ने स्टॉक लिमिट को कम करना, निर्यात को कंट्रोल में करना, आयात में इजाफा करना जैसे कदम को उठाया है. जिससे सब्जी, दाल और गेहूं की बढ़ती की कीमतों को कम किया जा सके. साथ ही सरकार खासकर तेल और वित्त मंत्रालय मिलकर देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों कम करने का विचार कर रहे हैं. जिससे महंगाई को कंट्रोल करने में मदद करेगी.
क्या सरकार आरबीआई पर बनाएगी दबाव?
अगर जनवरी में महंगाई कम होती है और फरवरी की शुरुआत में महंगाई कम होने के संकेत मिलते हैं तो क्या सरकार आरबीआई पर महंगाई के आंकड़ें जारी होने से एक हफ्ता पहले ब्याज दरों में कटौती करने का दबाव बनाएगी? जवाब है हां. ये दबाव अप्रैल के महीने में होने वाली मीटिंग में भी देखने को मिल सकता है. उसका कारण है आगामी लोकसभा चुनाव. जिसमें मौजूदा सत्ता आम लोगों को बढ़ी हुई ईएमआई से राहत देने का मूड बना चुकी है. सरकार का प्लान है कि फरवरी से पहले महंगाई के आंकड़ों को कम कर आरबीआई के लिए ब्याज दरों को कम करने की विंडो दी जाए. उसके बाद आरबीआई पर दबाव बनाकर ब्याज दरों को कम कराया जाए. ताकि सरकार के लिए आम लोगों तक पहुंचना या यूं कहें कि देश के मिडिल क्लास तक पहुंचना आसान हो जाए.
कितनी कटौती चाहती है सरकार?
वैसे तो सरकार चाहती है कि चुनाव से पहले करीब-करीब एक फीसदी तक ब्याज दरों को कम किया जाए. लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं लग रहा है. इसके लिए आरबीआई को 50-50 बेसिस प्वाइंट की कटौती करनी होगी. लेकिन माहौल को देखते हुए और सरकार के दबाव में आते हुए आरबीआई फरवरी पॉलिसी में 25 बेसिस प्वाइंट और अप्रैल के महीने में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर सकती है. या फिर दोनों मीटिंग में 25-25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर सकती है. इसका मतलब है कि अप्रैल तक आरबीआई 50 से 75 बेसिस प्वाइंट तक ब्याज दरों में कटौती कर सकती है. इसका मतलब है कि रेपो रेट को 5.75 फीसदी से 6 फीसदी फीसदी तक के बीच में किया जा सकता है. मौजूदा समय में रेपो रेट 6.50 फीसदी पर है. मई 2022 से लेकर फरवरी 2023 के बीच इसमें 2.50 फीसदी तक का इजाफा किया गया है.
क्या कहते हैं जानकार?
एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट से लेकर बार्कलेज और तमाम फाइनेंशियल एक्सपर्ट का ब्याज दरों में कटौती को लेकर अलग मत है. इन तमाम लोगों का मानना है कि आरबीआई जून से पहले ब्याज दरों में कटौती नहीं करेगा. इसका मतलब है कि आम चुनाव के नतीजे और नई सरकार के आने के बाद जो पॉलिसी मीटिंग होगी. उसमें ब्याज दरों का ऐलान होगा या यूं कहें कि ब्याज दरों में कटौती होगी, जोकि 25 बेसिस प्वाइंट देखने को मिल सकती है. सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या सरकार जून पॉलिसी मीटिंग का इंतजार किसी तरह का रिस्क लेगी?
क्या सरकार आम लोगों की आवाज को दरकिनार कर सकती है? क्या सरकार सिर्फ महंगाई को कम आम लोगों को राहत देकर खुश करने की स्थिति में है? क्या सरकार नहीं जानती कि आम जनता या यूं कहें कि देश का मिडिल क्लास जितनी परेशान महंगाई से है उतनी की परेशान बढ़ी हुई लोन ईएमआई से है? इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में छिपा है. देखने वाली बात होगी कि सरकार और आरबीआई अमेरिका से आई आस से देश के मिडिल क्लास को लाभांवित करते हैं या नहीं.