देखते रह गए चीन-जापान, आगे निकल गया भारत, रुपये ने दिखाई दुनिया को अपनी ताकत

जनवरी में जहां एशिया की अन्य करेंसी में गिरावट देखने को मिली. वहीं, भारतीय रुपया ऊपर की ओर बढ़ा. ब्लूमबर्ग के डाटा के अनुसार, डॉलर इंडेक्स की 1.27 फीसदी की बढ़त के मुकाबले रुपया 0.23 फीसदी बढ़ा. ऐसा विदेश निवेश आने के कारण हुआ. जनवरी में रुपये की शुरुआत 83.18 के स्तर से हुई था जो 29 जनवरी को 83.12 के स्तर पर पहुंच गया. इस बीच 15 जनवरी को डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होकर 82.89 तक पहुंच गया.

एक रिपोर्ट के अनुसार, इस बढ़त के पीछे सरकारी बॉन्ड का जेपी मॉर्गन इंडेक्स में शामिल किया जाना भी एक बड़ा कारण है. इतना ही नहीं ब्लूमबर्ग इंडेक्स सर्विसेज ने भी इंडियन बॉन्डस को इमर्जिंग मार्केट लोकल करेंसी इंडेक्स में शामिल शामिल करने का प्रस्ताव रखा था.

फंड्स में निवेश बढ़ा

विदेशी निवेशक जहां इक्विटी से पैसा निकाल रहे हैं तो वहीं बॉन्ड में लगातार अपना निवेश बढ़ा रहे हैं. जनवरी में विदेशी निवेशक बॉन्ड्स में शुद्ध रूप से 17491 करोड़ रुपये का निवेश कर चुके हैं. मौजूदा सरकार के वापस सत्ता में आने के अनुमान से भी सरकारी बॉन्ड्स को समर्थन मिल रहा है. फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर एलएलपी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर व हेड ऑफ ट्रेजरी अनिल कुमार भंसाली ने कहा है कि रुपया जून तक 82.70 से 83.40 के दायरे में रहेगा. उन्होंने कहा कि जेपी मॉर्गन इंडेक्स में बॉन्ड्स के शामिल होने के बाद यह 82.50 तक जा सकता है. आपको बता दें रुपये का यह स्तर डॉलर के मुकाबले में दर्शाया जाता है. डॉलर के मुकाबले जब रुपया मजबूत होता है तो उसकी वैल्यू पीछे की ओर आती है. इसलिए रुपया 82.50 पर 82.70 के मुकाबले ज्यादा मजबूत होगा.

एशियन करेंसी में गिरावट क्यों?

मार्च में अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दर कम करने की संभावना बहुत मामूली हैं. इससे डॉलर इंडेक्स को समर्थन मिला है और वह बढ़ा है. डॉलर इंडेक्स बढ़ने से उसके मुकाबले एशियाई करेंसी नीचे आई हैं. चीनी युआन की वैल्यु 7.10 से घटकर 7.19 पर आ गई है. यही हाल इंडोनेशिया रुपिया और साउथ कोरियाई वॉन का हुआ है.

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