बाबा के आंगन में पुजारियों-पुलिसवालों से सबसे ज्यादा यही सवाल- वो व्यासजी का तहखाना कहां है?
आस्था का कोई गूगल मैप नहीं होता। इसलिए आज बाबा के आंगन में मौजूद पुजारियों-पुलिसवालों से सबसे ज्यादा सवाल यही पूछा गया – वो व्यासजी का तहखाना कहां है?
मंदिर की देहरी पर कदम रखते ही बाबा के दुलारों की आंखें आज उस तहखाने को ढूंढ रही थीं जिसके इतिहास ने आधी रात आंखें खोली हैं। आस्था का कोई गूगल मैप नहीं होता। इसलिए आज बाबा के आंगन में मौजूद पुजारियों-पुलिसवालों से सबसे ज्यादा सवाल यही पूछा गया – वो व्यासजी का तहखाना कहां है? बाबा के दर्शन को खड़ी भीड़ आज सिर्फ सोने के शिखर वाले मंदिर को ही नहीं, उस तहखाने को भी ढूंढ रही थी जहां 30 साल बाद पूजा की इजाजत मिली है।
शायद यही वजह थी की उस तहखाने की ओर मुंह कर सालों से बैठे नंदी के कान में मन्नतें कहने वाले आज थोड़े ज्यादा लोग थे। वो नंदी तक पहुंचते, कान में बुदबुदाते और फिर गर्दन घुमाकर जाली के पीछे, आंखों से बैरिकेड खोल उस पार चले जाते। कुछ देर रुकते नहीं कि पुलिस वाले उन्हें आगे बढ़ने का इशारा कर देते। काशी विश्वनाथ धाम में विराजे बाबा, मां अन्नपूर्णा और बाकी देवी-देवताओं के बीच आज सबसे ज्यादा तवज्जो तहखाने को मिल रही थी।
बीच आज सबसे ज्यादा तवज्जो तहखाने को मिल रही थी।
नंदी और ज्ञानवापी के बीच की बेहद संकरी गली में आज नया कारपेट बिछा था। श्रद्धालु कहां से आएंगे और कहां तक जाएंगे इसके लिए रात से दोपहर तक बंदोबस्त भी पूरा था। सिक्योरिटी चेक के लिए एक नया बूथ तैयार था। तहखाने के सामने हड़बड़ाहट में कटे लोहे के पाइप से एक रास्ता बनाया गया था। भीतर लाल कालीन बिछा था और सामने गेरूए रंग में लिपटे विग्रह विराजमान थे। आधी रात से अर्चक जिनका राग-भोग संभाल रहे थे, शाम चार बजे अचानक उस व्यास जी के तहखाने के दर्शन खुल गए।
30 साल बाद पाबंदियों वाले रास्ते से गुजरे लोग
इतिहास और कानून की स्केल पर पूरे 30 साल बाद। लोग उस रास्ते से गुजरने लगे जहां अब तक पाबंदियां होती थीं। उनमें से कुछ तो ये भी नहीं जानते थे कि वो जिस विग्रह और तहखाने के आगे हाथ जोड़ रहे हैं वो है क्या…। उनके लिए वो सिर्फ भगवान थे। और जो जानते थे वो खुश थे, ये सोचकर कि अपने नाती-पोतों को बताएंगे, ज्ञानवापी में तहखाने के जब पहले दर्शन खुले तो वो वहां थे। वहां जितने दर्शन करने वाले थे उतने ही पुलिस वाले भी।
इसी तहखाने के ठीक ऊपर नमाज अदा करने वाले जुट रहे थे। पहले एक। दो। चार-पांच फिर अचानक कुछ दर्जन। वो तमाम लोग नीचे तहखाने के सामने से दर्शन को गुजर रहे लोगों को हैरत से देख रहे थे। उनकी नजरें बातें कर रही थीं। जिसे मस्जिद कहते थे उसके नीचे मंदिर है ये देखकर वो हैरान थे। ये एएसआई का सच है जो उन्हें कुबूल नहीं। बीच में लोहे के बैरिकेड थे। समय की गवाही देते बैरिकेड।
इतिहास की भी अजीब बिसात है। ये पिछले 48 घंटों में परतों में खुल रहा है। पहले कोर्ट का केस। दलीलें। आदेश। फिर पूजा और दर्शन। वहां बुलेटप्रूफ जैकेट और पटका पहने, सिक्योरिटी फोर्स के जवान नंगे पैर ड्यूटी दे रहे हैं। पुलिसवालों के माथे पर बाबा की भभूत है। आस्था का अपना प्रोटोकॉल है। बाहर आते-आते एक श्रद्धालु कहते हैं नंदी का तप है – रास्ता खुल रहा है। देश के धार्मिक कैनवास पर रामधुन अभी सोलह कलाओं से काबिज भी नहीं हुई थी कि महादेव की नगरी काशी में इतिहास का तहखाना खुल गया है।