Basant Panchami 2024: बंगाल के लोग सरस्वती पूजा से पहले बेर खाने से क्यों करते हैं परहेज? जानें क्या है कारण
साल का वह समय लगभग आ गया है जब कड़कड़ाती ठंड का मौसम धीरे-धीरे सुंदर और भरपूर बसंत ऋतु में बदल रहा है. खिलते फूल, पके फल और हरे-भरे खेत, यही वजह है कि बसंत को सभी ऋतुओं का राजा कहा जाता है. दुनिया भर के विभिन्न समुदायों में मौसम के बदलाव का जश्न मनाने के अपने अलग-अलग तरीके हैं. भारत में बसंत ऋतु कृषि और फसल कटाई में एक बड़ी भूमिका निभाती है. बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. पूरे देश में इस त्योहार को बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है.हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है. देश का हर समुदाय इसे अनोखे तरीके से मनाता है. बंगाल के लोग इस शुभ दिन को ‘सरस्वती पूजा’ के रूप में मनाते हैं और कई तरह के पारंपरिक व्यंजन भी तैयार करते हैं.
बसंत पंचमी का दिन देवी सरस्वती की पूजा के लिए समर्पित है, जो हिंदू धर्म में ज्ञान, कला और संगीत की देवी मानी जाती हैं. इस दिन लोग मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करते हैं और देवी को किताबें आदि चढ़ाते हैं. इस दिन स्नान कर पीले रंग के कपड़े पहनते हैं. इस दिन पीला रंग पहनना उत्सव का एक अहम हिस्सा है. देश के विभिन्न हिस्सों में इस शुभ दिन पर बहुत अलग अनुष्ठान होते हैं. कहीं लोग पतंग उड़ाते हैं, तो कहीं इस दिन को नृत्य, संगीत और शिक्षा के लिए समर्पित करते हैं.
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में भक्त भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती की भी पूजा करते हैं. दूसरी ओर, बात हो बंगाल की तो वहां एक ऐसी प्रथा है जो बाकी राज्यों से अलग है. दरअसल, बंगाल के लोग सरस्वती पूजा या बसंत पंचमी से पहले बेर खाने से परहेज करते हैं. आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह और मान्यता.
बंगाली लोग सरस्वती पूजा से पहले बेर खाने से क्यों बचते हैं?
बेर का उल्लेख ब्राह्मण, संहिता और प्रसिद्ध रामायण जैसे कई पुराने ग्रंथों में मिलता है. रामायण की कहानी में शबरी, जो भगवान राम की अत्यधिक प्रशंसा करती थी, ने उन्हें जंगली बेर का फल दिया था. इसके अलावा, भगवान विष्णु, जो बेर के पेड़ से जुड़े हैं, को अक्सर संस्कृत में ‘बद्री’ या ‘बदरा’ कहा जाता है. सांस्कृतिक महत्व होने के बावजूद भी बंगाल में सरस्वती पूजा से पहले बेर खाना सही नहीं माना जाता है. इसे सबसे पहले देवी सरस्वती को अर्पित करने की परंपरा है. बंगाल के ज्यादातर लोग इसे बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के बाद ही खाते हैं. बाद प्रसाद के रूप में बेर खाए जाते हैं.
बसंत ऋतु का फल होने के कारण, बेर बसंत पंचमी के आसपास ही बाजारों में आने लगते हैं. बंगाली में बेर को मां सरस्वती का पसंदीदा फल माना जाता है. ऐसे में बंगाल के लोगों का मान्यता है कि देवी का पसंदीदा फल उनको खिलाए या अर्पित किए बगैर नहीं खा सकते हैं. यही कारण है कि बंगाल में बसंत पंचमी पर देवी सरस्वती को अर्पित करने से पहले बेर खाने से परहेज किया जाता है. इस शुभ दिन से पहले बेर खाना देवी सरस्वती का अपमान करना माना जाता है. यही कारण है कि बंगाल में बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती को बेर चढ़ाया जाता है. देवी को भोग में अर्पित करने के बाद ही इसे प्रसाद के रूप में बांटा किया जाता है. बंगाल के कुछ घरों में सरस्वती पूजा पूरी होने के बाद शाम को पारंपरिक बेर का अचार जिसे कूलर अचार भी कहते हैं, तैयार किया जाता है.
बंगाल में सरस्वती पूजा का महत्व
सरस्वती पूजा बंगाल के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसकी तैयारी कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है. इस दिन वीणा धारण करने वाली देवी की मिट्टी की मूर्तिया घरों और मंदिरों में स्थापित की जाती हैं. सरस्वती की मूर्तियों को सुंदर कपड़ों और सामानों से सजाया गया है और आंगन में चावल के आटे से रंगोली बनाई जाती हैं. इसके बाद दोपहर में देवी की पूजा कर ढेर सारा प्रसाद चढ़ाया जाता है. ताजे पीले और सफेद फूल और बेर आदि प्रसाद चढ़ाए जाते हैं. इस शुभ दिन पर छात्र देवी सरस्वती का आशीर्वाद पाने के लिए अपनी किताबें उनकी मूर्ति के चरणों में रखते हैं. हिंदू मान्यता में मां सरस्वती को ज्ञान, बुद्धि, कला और संस्कृति की देवी माना जाता है. सरस्वती पूजा का अवसर बच्चों की पढ़ाई और आध्यात्मिक कार्यों के लिए बेहद शुभ माना जाता है.