खत्म हो गए अंग्रेजों को जमाने के कानून, तीन आपराधिक विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तीन नए आपराधिक न्याय विधेयकों को मंजूरी दे दी है। इसी के साथ ये तीनों ही विधेयक कानून बन गए हैं। इसमें भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक संहिता और भारतीय सक्षम अधिनियम अधिनियम शामिल हैं। अब ये तीनों ही कानून भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), भारतीय दंड प्रक्रिया (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 872 की जगह लेंगे। इससे पहले दोनों ही सदनों में इस विधेयक को मंजूरी मिल गई थी। पिछले सप्ताह संसद में इन विधेयकों को नए सिरे से पेश किया गया था।
बता दें कि इन तीनों ही कानूनों का उद्देश्य देश में आपराधिक न्याय प्रणाली को बदलना है जिससे कि अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे कानूनों से निजात मिल सके। इन कानूनों में राजद्रोह के अपराध को खत्म कर दिया गया है। इसके अलावा राज्य के खिलाफ अपराध की एक नई धारा डाली गई है। इस विधेयक को पहले संसद के मानसून सत्र के दौरान ही पेश किया गया था। हालांकि स्थायी समिति की सिफारिशों के बाद इसे वापस ले लिया गया था। अब इसे सुधार के साथ फिर से पेश किया गया।
अब कैसा है राजद्रोह का नया अवतार
गृह मंत्री अमित शाह ने बिल को पेश करते हुए कहा था कि अब के विधेयक में अल्पविराम और पूर्ण विराम का पूरा ध्यान रखा गया है। वहीं इस नए कानून में राजद्रोह में सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधइ, संप्रभुता या एकता को खतरे में डालने वाले अपराध, अलगाववादी गतिविधि जैसे अपराधों क शामिल किया गया है। अगर कोई मौखिक, लिखित या सांकेतिक रूप से ऐसी गतिविधियों को उत्तेजित करता है या फिर प्रयास करता है, एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है। इसके अलावा उसपर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
जानकारों के मुताबिक इन नए कानूनों में 80 फीसदी प्रावधान पहले जैसे ही हैं। वहीं राजद्रोह के आईपीसी से हटाया गया है। इसके अलावा छोटे संगठित अपराधों के लिए राज्यों को अपने कानून बनाने की छूट दी गई है। इसमें पॉकेटमारी और चोरी जैसे अपराध शामिल हैं। शादी का झांसा देकर सेक्स को भी अपराध बताया गया है। इसके अलावा धारा 377 को हटा दिया गया है। पहले पुलिस को 15 दिन की ही रिमांड दी जा सकती थी जो कि अब 60 से 90 दिनों की भी हो सकती है। जांच पड़ताल के लिए फरेंसिक सबूतों को महत्वपूर्ण बताया गया गया है।