अरुणाचल प्रदेश में LAC के पास भारत ने क्या ऐसा कर दिया? जिससे बौखला गया चीन
विस्तारवादी चीन को एक बार फिर भारत की बढ़ती ताकत, विकास और इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट से परेशानी हो रही है और अब अरुणाचल प्रदेश में भारत की बढ़ती ताकत से चीन को मिर्ची लगने लगी है. चीन ने 9 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अरुणाचल में सेला सुरंग मार्ग का उद्घाटन करने पर कड़ा विरोध जताया था. अरुणाचल प्रदेश को चीन का इलाका बताते हुए उसने कहा था कि भारत को इस पर किसी भी तरह के विकास कार्य करने की इजाजत नहीं है.
चीन के इस बयान को गंभीरता से लेते हुए भारत ने अपने विकास कार्य में अब और भी ज्यादा तेजी ला दी है. भारत ने अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC के ठीक बगल में एक प्रमुख रोपवे परियोजना के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी है. 522 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली 5.2 किलोमीटर लंबी रोपवे परियोजना विश्व प्रसिद्ध तवांग मठ से पीटी त्सो लेक और एल माधुरी लेक तक अगले तीन सालों के भीतर विकसित की जाएगी. इसे LAC के पास भारत की बड़ी तैयारी के रूप में देखा जा रहा है. इस रोपवे परियोजना को लेकर पीएम मोदी की सरकार ने हाल ही में एक निविदा आमंत्रित की है.
भारत का सबसे बड़ा मठ है तवांग
तवांग मठ वही हिस्सा है जिसे चीन अपना मानता है. तवांग भारत और चीन के बीच सीमा विवाद में सबसे जटिल मुद्दों में से एक है. भविष्य में संघर्ष के लिए एक संभावित बिंदु यहीं पर है 400 साल पुराना तवांग मठ देश का सबसे बड़ा और एशिया का दूसरा सबसे बड़ा मठ है. जो 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यह तवांग टाउन से लगभग दो किलोमीटर पास, चीन और भूटान सीमाओं के बहुत करीब है. ये तिब्बती बौद्धों का तीर्थ स्थल है और जो भारत के सबसे बड़े बौद्ध मठ का घर भी होता है.
रोपवे यात्रा में लगेंगे 5 मिनट
चीन की हेकड़ी और दादागीरी घटने के बजाय लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे भारत की ये तैयारी चीन की आखों में जरूर खटकेगी. नए रोपवे का मतलब है कि तवांग मठ से झील तक की यात्रा में केवल पांच मिनट लगेंगे. तवांग मठ से तवांग में ग्यांगॉन्ग अनी गोंपा तक पहले से ही एक रोपवे है. जो लगभग 10 किमी दूर स्थित है. नया रोपवे क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देगा और पर्यटकों को अरुणाचल प्रदेश के खूबसूरत इलाकों की झलक दिखायेगा. वहीं युद्ध के समय किसी भी इमरजेंसी के मौके पर डिफेंस सेना के काम आएगा.
वहीं दूसरी ओर पीटी त्सो झील तवांग से लगभग 18 किमी दूर 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इसके साथ ही माधुरी लेक (संगेस्टार त्सो) 36 किलोमीटर दूर है और करीब 15000 फिट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित है. देखने में ये दोनो ही झील बहुत सुंदर है और रणनीति के हिसाब से बेहद महत्वपूर्ण भी. तवांग सेक्टर से होते हुए पीटी त्सो झील करीब 37 मिनट में और माधुरी लेक तक करीब एक घण्टे में ड्राइव करते हुए पहुंचा जाता है. ये दोनो झीलें एलएसी के बेहद नजदीक बुमला दर्रे के पास हैं. ऐसे में पीएम मोदी की भावी परियोजनाओं के तहत इन दोनों झीलों तक जो LAC के पास हैं इन पर पहुंचने का समय घटकर 5 से 10 मिनट ही रह जायेगा.
अरुणाचल प्रदेश ड्रेगन की नजर
चीन ने तिब्बत पर जबरन किए गए कब्जे को समय के साथ न केवल बहुत मजबूत कर लिया है. बल्कि तिब्बत को अपनी नई सैन्य छावनी की तरह इस्तेमाल करते हुए वह आए दिन भारत, नेपाल और भूटान के इलाकों पर दावे भी करता रहता है. ऐसे में भारत की ये तैयारी चीन को रास नहीं आ रही. तिब्बत को आधार बनाकर चीन ने न केवल 1962 में भारत पर एकाएक हमला बोलकर हजारों वर्ग किमी जमीन हड़प ली थी, बल्कि तिब्बत की नदियों पर दर्जनों बांध बनाकर वह भारत आने वाले पानी को रोकने और उसे हथियार की तरह इस्तेमाल करने का अभियान भी चला रहा है. 2002 और 2005 में कम से कम तीन मौकों पर चीन तिब्बत की नदियों के पानी को रोककर और फिर उसे अचानक छोड़कर भारत के हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के खिलाफ वाटर-बम की तरह इस्तेमाल कर चुका है. ड्रेगन तिब्बत पर अपने गैरकानूनी कब्जे के बाद अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत बताते हुए उसे तिब्बत का और अंतत: चीन का हिस्सा बताता है.
भारत तो उकसाता रहा है चीन
भारत सरकार को उकसाने के लिए चीन ने सात साल में कम से कम तीन बार अरुणाचल के कई शहरों और कस्बों के चीनी नामों की घोषणा कर चुका है. यहां तक कि उसने अब अरुणाचल को एक चीनी नाम जांगनाना भी दे दिया है, जिसका चीनी भाषा में अर्थ है दक्षिणी तिब्बत. तिब्बत पर चीन के औपनिवेशिक कब्जे और वहां की जनता के मानवाधिकारों के सवाल पर दुनिया भर में चीन की किरकिरी का असर कम करने के लिए अब वहां की सरकार तिब्बत के बजाय उसके चीनी नाम शीजांग को प्रचारित करने में लगी हुई है. यहां तक कि अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख के अक्साई-चिन तथा कई अन्य क्षेत्रों पर अपना दावा जताने के लिए चीन सरकार ने अगस्त 2023 में नया नक्शा भी जारी कर दिया, जिसे वह चीन का मानक नक्शा बताती है. चीन की ऐसी हरकत के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि अरुणाचल हमेशा से भारत का अभिन्न अंग था, है और रहेगा. चीन के ऐसे दावों से इस जमीनी हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि अरुणाचल भारत में ही है.