ड्रैगन का प्लान…क्या है एटम से भी छोटा कण न्यूट्रिनो, जिसके लिए पानी की तरह पैसा बहा रहा चीन?
चीन अकसर अपने लैब एक्सपेरिमेंट से दुनिया को चौंकाता रहा है. कुछ साल पहले ही उसने लैब में आर्टिफिशियल सूरज बनाकर सब को हक्का-बक्का कर दिया था. इस बार ड्रैगन जमीन की गहराई में जाकर विज्ञान के सबसे बड़े सवालों में से एक को सुलझाने की तैयारी कर रहा है. इस मकसद को हासिल करने के लिए वो जमीन से 700 मीटर नीचे और 35 मीटर डाइमीटर की गोल आकार की लैब भी बना रहा है. आइए जानते हैं चीन अब किस फिराक में है और दुनिया को इससे क्यों फर्क पड़ रहा है.
चीन गुआंग्डोंग प्रांत के काईपिंग शहर में जियांगमैन अंडरग्राउंड न्यूट्रिनो लैब (जूनो) नाम की लैब बना रहा है. इसमें वैज्ञानिक न्यूट्रिनो यानी एटम के आकार से भी छोटे कणों का निरक्षण करेंगे. अनुमान है कि लैब को बनाने में 3 हजार करोड़ रुपए का खर्चा होगा और साल के अंत तक ये बनकर तैयार हो जाएगी. आइए जानते हैं कि न्यूट्रिनो क्या होते हैं और इसको समझने में हजारों करोड़ों रुपए का खर्चा क्यों किया जा रहा है.
क्या होता है न्यूट्रिनो?
आपने स्कूल में पढ़ा होगा कि दुनिया की हर चीज परमाणु (एटम) से बनी हैं. एटम के केंद्र में न्यूकलियस होता है, जिसके चारो ओर इलेक्ट्रॉन्स घूमते हैं. न्यूक्लियस के अंदर प्रोटोन्स और न्यूट्रॉन्स रहते हैं. न्यूट्रिनो और न्यूट्रॉन्स सुनने में भले ही एक जैसे लगते हो, लेकिन इन दोनों में बहुत ज्यादा अंतर है. न्यूट्रिनोस इन सब से बेहद छोटे होते हैं. ये इतने हल्के होते हैं कि काफी समय तक वैज्ञानिकों का मानना था कि इनका मास शून्य है.
न्यूट्रिनोस, इलेक्ट्रॉन की तरह फंडामेंटल पार्टिकल्स होते हैं किंतु ये परमाणु के भाग नहीं होते हैं. फंडामेंटल पार्टिकल्स वे होते हैं जिन्हें और ज्यादा तोड़ा नहीं जा सकता. भले ही न्यूट्रिनोस के बारे में अब चर्चा हो रही है, लेकिन ये कण ब्रह्मांड में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं. आपको पता भी नहीं चल रहा पर हर सेकेंड सूरज द्वारा बनाए जाने वाले लाखों न्यूट्रिनोस हमारे शरीर से होकर गुजरते हैं.
शरीर से आर-पार हो सकते हैं न्यूट्रिनोस, लेकिन कैसे?
सूरज, तारे और वायुमंडल द्वारा प्रति सेकेण्ड लाखों न्यूट्रिनोस का निर्माण होता है. न्यूट्रिनोस ऐसे कण होते हैं जो कि पृथ्वी के पार जा कर दूसरी ओर से आ सकते हैं. इसका कारण है कि वो अपने मार्ग में आने वाली चीजों से बेहद कम इंटरैक्ट करता है. इसे टार्च के उदाहरण से बेहतर समझा जा सकता है. टार्च से निकली लाइट की किरणें दीवार के पार नहीं जा पातीं क्योंकि लाइट के कण दीवार के साथ इंटरैक्ट करते हैं और दीवार के दूसरी ओर जाने के पहले बिखर जाते हैं. दो कणों के इंटरैक्शन उनकी गति, दिशा जैसे गुण प्रभावित होते हैं. चूंकि न्यूट्रिनोस के इंटरैक्शन की दर अत्यंत दुर्बल होती है इसलिए उनके गुण (दिशा,गति आदि) में कोई हानि नहीं होती.
चीन जमीन के नीचे क्या ढूंढ रहा है?
पहले के वैज्ञानिक शोध में अब तक तीन तरह के न्यूट्रिनो की खोज हई है- इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो, म्युऑन न्यूट्रिनो और टौ न्यूट्रिनो. चीन की अंडरग्राउंड लैब का मुख्य लक्ष्य यही पता लगाना है कि इनमें से किस प्रकार के न्यूट्रिनो का मास सबसे ज्यादा है और किस का सबसे कम है. जमीन के नीचे बनी लैब में इनकी बेहतर तरीके से स्टडी हो पाती है. सभी न्यूट्रिनो न्यूट्रल चार्ज वाले होते हैं और इनका मास शून्य के बराबर होता है. न्यूट्रिनोस को न्यूक्लियर रिएक्टर्स के जरिए आर्टिफिशियल तरीके से बनाया जा सकता है. हालांकि, इनकी स्टडी करना बहुत मुश्किल होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये दूसरे मैटर के साथ बेहद कम इंटरैक्ट करता है.