VIDEO: ईरान की मिसाइलों को IDF ने हवा में यूं किया तबाह, जानिए कैसे काम करता है इजरायल का डिफेंस सिस्टम
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Iran Israel Tension। कुछ दिनों पहले इजरायल ने ईरान पर मिसाइलों से हवाई हमले किए। इजरायल ने दावा किया कि ईरान की ओर से 170 ड्रोन, 30 से अधिक क्रूज मिसाइलें और 120 से अधिक बैलिस्टिक मिसाइलें दागी गई।
हालांकि, उनमे से 99 प्रतिशत हमलों को रोक दिया गया था।
आईडीएफ ने वीडियो किया शेयर
इजरायल डिफेंस फोर्स ने कुछ वीडियो अपने सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर किए हैं, जिसमें देखा जा सकता है इजरायल की ताकतवर डिफेंस सिस्टम की वजह से ईरान की ओर से दागे गई मिसाइलों को हवा में नष्ट किया जा रहा है।
इजरायल का रक्षा कवच कहे जाने वाले आयरन डोम (Iron Dome) ने हवा में इन मिसाइलों को नष्ट किया है। हालांकि, कुछ मिसाइलों को एयर डोम ट्रेस नहीं कर सका, जो इजरायल के नेवातिम एयरबेस के आसपास टकरा गई। आईडीएफ ने पोस्ट में लिखा,”99 प्रतिशत अवरोधन दर इस तरह दिखती है।”
This is what a 99% interception rate looks like. Operational footage from the Aerial Defense System protecting the Israeli airspace: pic.twitter.com/eAwcUPUDw2
इजरायल की ताकत
इजरायल के एयर डिफेंस ने अधिकांश ईरानी मिसाइलों और ड्रोन को एरो एरियल डिफेंस सिस्टम की मदद से इजरायली क्षेत्र में पहुंचने से पहले ही मार गिराया। आइए जानते हैं कि आखिर इजरायल की वो ताकत क्या है, जिसकी मदद से उसने एक बार फिर मध्य पूर्व के आसमान में अपनी बादशाहत कायम की है।
एरो डिफेंस की ताकत
इजरायल ने एरो 2 के बाद उन्नत श्रेणी के एरो 3 को भी शामिल किया है। इसका काम हवा में लंबी दूरी के लक्ष्य को नष्ट करना है। इसका रॉकेट मैक 9 (लगभग 11,000 किमी प्रतिघंटा) की रफ्तार से दुश्मन की मिसाइल को नष्ट कर सकता है।
डिफेंस सिस्टम में मिसाइल लॉन्चर, ग्रीन पाइन फायर कंट्रोल और एक सिट्रान ट्री बैटल मैनेजमेंट सिस्टम शामिल है। ग्रीन पाइन रडार 2,400 वि लंबी दूरी तक लक्ष्य का पता लगाने और एक साथ 14 लक्ष्यों रोकने में सक्षम है। रडार 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर लक्ष्य को निशाना बना सकता है।
एयरो एरियल डिफेंस प्रणाली
इजरायल की वायु रक्षा प्रणाली कई स्तरों पर काम करती है। एरो डिफेंस सिस्टम इसके सबसे ऊपरी स्तर पर काम करता है, जिसे इजरायल की एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज ने अमेरिकी मिसाइल रक्षा एजेंसी के साथ मिलकर तैयार किया है। 1980 के दशक के आखिरी वर्षों में इसके विकास पर काम शुरू हुआ था।
1990 के दशक में एरो 1 को कम से से कम सात परीक्षणों से गुजरना पड़ा और आगे चलकर एक हल्की मिसाइल के रूप में विकसित किया गया, जिसे एरो 2 नाम से जाना जाता है।