पैसों की हनक और सत्ता का कॉकटेल… पुणे हिट एंड रन केस में झोल ही झोल, हर मोड़ पर सबूत मिटाने की कोशिश
दो इंजीनियर अश्विनी कोष्ठा और अनीश अवधिया की बाइक को पोर्शे कार में सवार एक नाबालिग ने पीछे से टक्कर मार दी थी. इससे दोनों की मौके पर ही मौत हो गई थी. यह दुर्घटना 19 मई की रात को हुई थी. मामला उस समय सुर्खियों में आया जब अदालत ने आरोपी को 300 शब्दों का निबंध लिखने के बाद जमानत दे दी थी. सोशल मीडिया पर फैसले की आलोचना शुरू हुई तो सभी का ध्यान इस तरफ गया.
इस केस से जुड़ी कई ऐसी बातें सामने आईं हैं, जो बताती हैं कि आरोपी को बेकसूर साबित करने के लिए पैसे और पावर का किस तरह से इस्तेमाल किया गया. घटना के बाद जब पुलिस आरोपी (नाबालिग लड़के) को थाने लेकर गई तो NCP के विधायक सुनील तिंगरे तुरंत वहां पहुंच गए. हालांकि जानकारी सामने आने के बाद उन्होंने इस पर सफाई दी. इसके बाद मेडिकल जांच में आरोपी के शराब नहीं पीने की बात सामने आई लेकिन सीसीटीवी में साफ दिख रहा था कि वो किस तरह से पब में अपने दोस्तों के साथ बैठकर शराब पी रहा था.
मां से बदला आरोपी का ब्लड सैंपल
आरोपी का पिता पुणे शहर का जाना-माना बिल्डर विशाल अग्रवाल है. उसने अपने बेटे को बचाने के लिए साम, दाम और दंड सभी का प्रयोग किया. पिछले कुछ दिनों में ब्लड सैंपल में हेरफेर को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए हैं. इसके बाद सवाल उठे कि आखिरी ब्लड सैंपल किसका था. इस राज से भी पर्दा उठ चुका है.
डॉ.पल्लवी सापले की कमेटी ने जांच रिपोर्ट बनाई थी , जिसमें सामने आया कि ससून के डॉ. श्रीहरि हरनोल ने नाबालिग आरोपी के ब्लड सैंपल को बदलने के लिए तीन लोगों के सैंपल लिए थे. एक सैंपल महिला का था और अन्य दोनों दो बुजुर्गों के थे. जिस महिला का ब्लड सैंपल लिया गया, वो आरोपी की मां है. एक्सीडेंट के बाद पुलिस ने आरोपी के दो सैंपल लिए थे. ससून अस्पताल की तरह औंध अस्पताल में भी सैंपल लिए गए.
वो सैंपल उसके पिता के नमूने से मेल खाता था लेकिन ससून के अस्पताल का सैंपल मैच नहीं हुआ. इसके बाद साफ हो गया कि सैंपल बदला गया है. इस हादसे में दो लोगों की मौत हो गई थी लेकिन डॉक्टरों ने इसे पैसा कमाने के अवसर के रूप में देखा. ब्लड सैंपल बदलने के लिए तीन लाख रुपये लिए जाने की जानकारी भी सामने आई है.
दो डॉक्टर और एक कर्मचारी निलंबित
महाराष्ट्र सरकार ने राज्य संचालित ससून जनरल अस्पताल के दो डॉक्टरों और एक कर्मचारी को निलंबित कर दिया है. इन्हें तीन दिन पहले पुणे में पोर्श कार दुर्घटना में शामिल नाबालिग चालक के ब्लड सैंपल में हेरफेर के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इसके अलावा बीजे मेडिकल कॉलेज और ससून सिविल अस्पताल के डीन डॉ. विनायक काले को अवकाश पर भेज दिया गया है. डॉ. चंद्रकांत म्हस्के को अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया है.
महाराष्ट्र चिकित्सा शिक्षा विभाग के आयुक्त की सिफारिश पर फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. अजय तावड़े और चिकित्सा अधिकारी डॉ. श्रीहरि हल्नोर को निलंबित करने का आदेश दिया गया. पुणे पुलिस ने दो डॉक्टरों और सासून अस्पताल के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अतुल घाटकांबले को उस समय गिरफ्तार किया था, जब यह पता चला कि नाबालिग ड्राइवर के खून के नमूने कूड़ेदान में फेंक दिए गए थे.
उनकी जगह किसी दूसरे व्यक्ति के नमूने डाले गए थे, जिसमें शराब का कोई अंश नहीं पाया गया था. अब श्रीहरि हल्नोर ने खुलासा किया है कि इसके लिए उसपर डॉक्टर अजय तावड़े ने दबाव डाला था. नाबालिग आरोपी के असली ब्लड सैंपल को कूड़ेदान में फेंक दिया गया. इन दोनों को खून का सैंपल बदलने के लिए 3 लाख रुपये मिले थे.
ड्राइवर को बनाया बलि का बकरा
आरोपी नाबालिग को बचाने के लिए उसके पिता विशाल अग्रवाल और दादा सुरेंद्र ने अपने ड्राइवर को बलि का बकरा बनाने की कोशिश की. आरोपी की कार का ड्राइवर अपने घर जा रहा था, जब सुरेंद्र अग्रवाल और विशाल अग्रवाल ने उसका अपहरण कर लिया. इसके लिए उन्होंने बीएमडब्ल्यू कार का इस्तेमाल किया. उन्होंने ड्राइवर को मोटी रकम का लालच दिया और कहा कि वह पुलिस को बताए कि कार वह चला रहा था. दादा सुरेंद्र ने कथित तौर पर ड्राइवर को 19 मई से 20 मई तक अपने बंगले में गलत तरीके से बंद रखने की कोशिश की थी .
टाइमलाइन: पूरे केस में कब-क्या हुआ
हादसे के बाद येरवडा पुलिस स्टेशन के दो अधिकारी इंस्पेक्टर राहुल जगदाले और एपीआई विश्वनाथ टोडकरी मौके पर पहुंचे, लेकिन उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं दी. दोनों को निलंबित कर दिया गया.
आरोप है कि पुलिस हिरासत में नाबालिग को पिज्जा और बर्गर खिलाया गया लेकिन पुणे पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार ने इस आरोप को खारिज कर दिया.
आरोप है कि एनसीपी के अजित पवार गुट के विधायक सुनील तिंगरे आधी रात को आरोपियों के बचाव में थाने आए थे लेकिन विधायक ने पुलिस पर दबाव बनाने के आरोप से इनकार किया है. पुलिस का कहना है कि सारी कार्रवाई नियमानुसार की गई है. हालांकि, यह भी जानकारी सामने आई है कि उस दिन आरोपी के पिता ने तिंगरे को करीब 45 बार कॉल की थी.
आरोपी को ब्लड सैंपल के लिए ससून अस्पताल ले जाया गया, जिसमें हेराफेरी की गई. उसके ब्लड सैंपल को एक ऐसे व्यक्ति के खून से बदल दिया गया, जिसने शराब नहीं पी थी. इस मामले में अब दो डॉक्टरों और अस्पताल के एक कर्मचारी को गिरफ्तार करने के बाद निलंबित कर दिया गया.
आरोपी नाबालिग था, इसलिए उसे किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया गया. दो लोगों की जान लेने वाले एक लड़के को 300 शब्दों का निबंध लिखने की सजा दी गई. महज 14 घंटे में उसे जमानत मिल गई. रिहाई के बाद 15 दिनों तक ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करने का आदेश दिया गया. इस अनोखी सजा की काफी आलोचना हुई, इसके बाद सजा रद्द कर दी गई और उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया.
दावा किया गया कि जब दुर्घटना हुई तो नाबालिग नहीं बल्कि ड्राइवर कार चला रहा था. ड्राइवर पर यह बात कबूल करने का दबाव डाला गया. इसके बाद उसे धमकी दी गई और दो दिनों तक घर में बंधक बनाकर रखा.
आरोपी के घर के सीसीटीवी फुटेज डीवीआर से सबूत मिटाने की कोशिश की गई.
पोर्शे कार पर कोई नंबर नहीं था. कार बिना रजिस्ट्रेशन के शहर में घूम रही थी. साथ ही नाबालिग के पास लाइसेंस भी नहीं था.
नाबालिग ने बार में शराब पी थी. इसलिए पुलिस प्रशासन ने 14 बार लाइसेंस निलंबित कर दिए हैं. पब के मालिक, मैनेजर को गिरफ्तार कर लिया गया है.