Sickle cell anemia : क्या है सिकल सेल एनीमिया की बीमारी, कैसे दिखते हैं इसके लक्षण, डॉक्टर से जानें

खून से संबंधित कई तरह की बीमारियां होती है. इनमें से ही एक डिजीज सिकल सेल एनीमिया भी है. जिसके हर साल कुछ केस आते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, इस बीमारी के दुनियाभर में करीब 44 लाख मरीज हैं. भारत में भी इसके मामले आते हैं. यह एक खतरनाक ब्लड डिसऑर्डर है. अगर समय पर इलाज न हो तो मरीज की मौत का भी रिस्क होता है. सिकल सेल एनीमिया की बीमारी के कारण मरीज को काफी परेशानी होती है. यह समस्या जन्म के साथ भी हो सकती है. आइए इस बीमारी के बारे में डॉक्टर से जानते हैं.
मैक्स हॉस्पिटल में ऑन्कोलॉजिस्ट और हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. रोहित कपूर बताते हैं कि सिकल सेल एनीमिया बीमारी रेड ब्लड सेल्स पर असर करती है और इससे शरीर में इन सेल्स की कमी हो जाती है. सिकल सेल एनीमिया बीमारी की वजह से रेड ब्लड सेल्स का आकार बदल जाता है और वह हंसिए की तरह बन जाती है और इस वजह से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन सही तरीके से नहीं हो पाता है.
शरीर में मौजूद रेड ब्लड सेल्स की सेप खराब बोने का एक बड़ा कारण हीमोग्लोबीन प्रोटीन का असामान्य होना रहता है. ऐसा किसी जेनेटिक कारण की वजह से हो सकता है. यही कारण है कि सिकल सेल एक जेनेटिक बीमारी है और माता-पिता से बच्चों में जाती है.हर साल दुनियाभर में 3 लाख बच्चों का जन्म सिकल सेल एनीमिया के कारण होता है. यह तब होता है जब बच्चे के माता-पिता में इसका एक-एक जीन रिसीव करते हैं.
रेड ब्लड सेल्स बनना हो जाता है धीमा
डॉ. रोहित कपूर बताते हैं कि स्किन सेल एनीमिया के कारण रेड ब्लड सेल्स बनने की स्पीड धीमी हो जाती है. सेल्स की लाइफ भी कम हो जाती है. आम इंतान में रेड ब्लड सेल्स 120 दिन तक रहती है और खत्म हो जाती हैं और इसके बाद नई और स्वस्थ सेल्स बनती हैं, लेकिन सिकल सेल बीमारी वाले मरीजड में यह 20 से 30 दिन में ही खत्म हो जाती हैं. चूंकि सिकल सेल में रेड ब्लड सेल्स बहुत धीरे बनती हैं तो इससे व्यक्ति के शरीर में हमेशा खून की कमी रहती है. ऐसे में मरीज का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए किया जाता है. लेकिन कई मामलों में डोनर नहीं मिल पाता है.
क्या होते हैं लक्षण
बार-बार बुखार आना
शरीर में सूजन
शरीर का पीला होना
शरीर का सही विकास न होना
कैसे होती है पहचान
हीमोग्लोबीन इलेक्ट्रोफोरेसिस ब्लड टेस्ट से इस बीमारी की पहचान होती है. अगर आपके बच्चे में बीमारी के लक्षण दिखते हैं तो उसका यह टेस्ट करा लेना चाहिए.

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Sickle cell anemia : क्या है सिकल सेल एनीमिया की बीमारी, कैसे दिखते हैं इसके लक्षण, डॉक्टर से जानें

खून से संबंधित कई तरह की बीमारियां होती है. इनमें से ही एक डिजीज सिकल सेल एनीमिया भी है. जिसके हर साल कुछ केस आते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, इस बीमारी के दुनियाभर में करीब 44 लाख मरीज हैं. भारत में भी इसके मामले आते हैं. यह एक खतरनाक ब्लड डिसऑर्डर है. अगर समय पर इलाज न हो तो मरीज की मौत का भी रिस्क होता है. सिकल सेल एनीमिया की बीमारी के कारण मरीज को काफी परेशानी होती है. यह समस्या जन्म के साथ भी हो सकती है. आइए इस बीमारी के बारे में डॉक्टर से जानते हैं.
मैक्स हॉस्पिटल में ऑन्कोलॉजिस्ट और हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. रोहित कपूर बताते हैं कि सिकल सेल एनीमिया बीमारी रेड ब्लड सेल्स पर असर करती है और इससे शरीर में इन सेल्स की कमी हो जाती है. सिकल सेल एनीमिया बीमारी की वजह से रेड ब्लड सेल्स का आकार बदल जाता है और वह हंसिए की तरह बन जाती है और इस वजह से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन सही तरीके से नहीं हो पाता है.
शरीर में मौजूद रेड ब्लड सेल्स की सेप खराब बोने का एक बड़ा कारण हीमोग्लोबीन प्रोटीन का असामान्य होना रहता है. ऐसा किसी जेनेटिक कारण की वजह से हो सकता है. यही कारण है कि सिकल सेल एक जेनेटिक बीमारी है और माता-पिता से बच्चों में जाती है.हर साल दुनियाभर में 3 लाख बच्चों का जन्म सिकल सेल एनीमिया के कारण होता है. यह तब होता है जब बच्चे के माता-पिता में इसका एक-एक जीन रिसीव करते हैं.
रेड ब्लड सेल्स बनना हो जाता है धीमा
डॉ. रोहित कपूर बताते हैं कि स्किन सेल एनीमिया के कारण रेड ब्लड सेल्स बनने की स्पीड धीमी हो जाती है. सेल्स की लाइफ भी कम हो जाती है. आम इंतान में रेड ब्लड सेल्स 120 दिन तक रहती है और खत्म हो जाती हैं और इसके बाद नई और स्वस्थ सेल्स बनती हैं, लेकिन सिकल सेल बीमारी वाले मरीजड में यह 20 से 30 दिन में ही खत्म हो जाती हैं. चूंकि सिकल सेल में रेड ब्लड सेल्स बहुत धीरे बनती हैं तो इससे व्यक्ति के शरीर में हमेशा खून की कमी रहती है. ऐसे में मरीज का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए किया जाता है. लेकिन कई मामलों में डोनर नहीं मिल पाता है.
क्या होते हैं लक्षण
बार-बार बुखार आना
शरीर में सूजन
शरीर का पीला होना
शरीर का सही विकास न होना
कैसे होती है पहचान
हीमोग्लोबीन इलेक्ट्रोफोरेसिस ब्लड टेस्ट से इस बीमारी की पहचान होती है. अगर आपके बच्चे में बीमारी के लक्षण दिखते हैं तो उसका यह टेस्ट करा लेना चाहिए.

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खून से संबंधित कई तरह की बीमारियां होती है. इनमें से ही एक डिजीज सिकल सेल एनीमिया भी है. जिसके हर साल कुछ केस आते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, इस बीमारी के दुनियाभर में करीब 44 लाख मरीज हैं. भारत में भी इसके मामले आते हैं. यह एक खतरनाक ब्लड डिसऑर्डर है. अगर समय पर इलाज न हो तो मरीज की मौत का भी रिस्क होता है. सिकल सेल एनीमिया की बीमारी के कारण मरीज को काफी परेशानी होती है. यह समस्या जन्म के साथ भी हो सकती है. आइए इस बीमारी के बारे में डॉक्टर से जानते हैं.
मैक्स हॉस्पिटल में ऑन्कोलॉजिस्ट और हेमेटोलॉजिस्ट डॉ. रोहित कपूर बताते हैं कि सिकल सेल एनीमिया बीमारी रेड ब्लड सेल्स पर असर करती है और इससे शरीर में इन सेल्स की कमी हो जाती है. सिकल सेल एनीमिया बीमारी की वजह से रेड ब्लड सेल्स का आकार बदल जाता है और वह हंसिए की तरह बन जाती है और इस वजह से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन सही तरीके से नहीं हो पाता है.
शरीर में मौजूद रेड ब्लड सेल्स की सेप खराब बोने का एक बड़ा कारण हीमोग्लोबीन प्रोटीन का असामान्य होना रहता है. ऐसा किसी जेनेटिक कारण की वजह से हो सकता है. यही कारण है कि सिकल सेल एक जेनेटिक बीमारी है और माता-पिता से बच्चों में जाती है.हर साल दुनियाभर में 3 लाख बच्चों का जन्म सिकल सेल एनीमिया के कारण होता है. यह तब होता है जब बच्चे के माता-पिता में इसका एक-एक जीन रिसीव करते हैं.
रेड ब्लड सेल्स बनना हो जाता है धीमा
डॉ. रोहित कपूर बताते हैं कि स्किन सेल एनीमिया के कारण रेड ब्लड सेल्स बनने की स्पीड धीमी हो जाती है. सेल्स की लाइफ भी कम हो जाती है. आम इंतान में रेड ब्लड सेल्स 120 दिन तक रहती है और खत्म हो जाती हैं और इसके बाद नई और स्वस्थ सेल्स बनती हैं, लेकिन सिकल सेल बीमारी वाले मरीजड में यह 20 से 30 दिन में ही खत्म हो जाती हैं. चूंकि सिकल सेल में रेड ब्लड सेल्स बहुत धीरे बनती हैं तो इससे व्यक्ति के शरीर में हमेशा खून की कमी रहती है. ऐसे में मरीज का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए किया जाता है. लेकिन कई मामलों में डोनर नहीं मिल पाता है.
क्या होते हैं लक्षण
बार-बार बुखार आना
शरीर में सूजन
शरीर का पीला होना
शरीर का सही विकास न होना
कैसे होती है पहचान
हीमोग्लोबीन इलेक्ट्रोफोरेसिस ब्लड टेस्ट से इस बीमारी की पहचान होती है. अगर आपके बच्चे में बीमारी के लक्षण दिखते हैं तो उसका यह टेस्ट करा लेना चाहिए.

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