6 साल 29 एपिसोड्स, ‘मिर्जापुर’ में बहुत कुछ बदल गया, लेकिन इस एक किरदार के वसूल टस-से-मस न हुए
6 साल के अंदर मिर्जापुर वेब सीरीज के 3 सीजन आ चुके हैं. इस दरमियान कई सारे कैरेक्टर्स की शो में एंट्री हुई. कई चले गए तो कई नए भी आए. कई कैरेक्टर्स का रोल सीरीज में खत्म कर दिया गया जबकी कुछ कैरेक्टर्स ऐसे हैं जो तीनों सीजन दिखाई दिए. इन्हीं में से एक है गुड्डू भैया के पापा रमाकांत पंडित का किरदार. ये किरदार अपने आप में दुनिया के लिए किसी मिशाल से कम नहीं. ये एक मसाल लेकर निकला हुआ मसीहा है जिसे न तो मिर्जापुर की गद्दी से खौफ है न किसी गुंडों से. रमाकांत पेशे से एक वकील हैं और इस वकील का रोल प्ले किया है एक्टर राजेश तैलंग ने. सीरीज में ये एक ऐसा कैरेक्टर है जो न तो गाली देता है, न मारपीट करता है. जो अपने वसूलों पर चलता है और जिसे ईमानदारी से प्यार है.
फरेब की नगरी में जो टस से मस न हुआ
मिर्जापुर सीरीज में जितने भी कैरेक्टर्स दिखाए गए हैं उनमें एक कॉमन चीज आप ये पाएंगे कि अधिकतर पर भरोसा नहीं किया जा सकता और वक्त-अवसर देखते हुए वे बदले भी हैं. कौन कब बदल जाए कोई अंदाजा नहीं. न तो गोलू पहले जैसी रही न तो गुड्डू पंडित और न तो बीना त्रिपाठी. सब बदल गए. न तो लाला भरोसे के काबिल था, न शरद, न मुन्ना भैया. यहां तक कि रमाकांत पंडित के दोनों बेटे गुड्डू और बब्लू भी तो गद्दी के प्रभाव में आए और गलत रास्ता अपना लिया. लेकिन इन 6 सालों में इतना कुछ देखने के बाद, इतना कुछ सहने के बाद भी वकील रमाकांत का कैरेक्टर अपने वसूलों से टस से मस नहीं हुआ. इस किरदार ने बता दिया कि हमारा असली अथियार बंदूक या गाली-गलौज नहीं. बल्कि सच्चाई के रास्ते पर चलना और सच बोलना है. इस फिलॉसफी के साथ आगे बढ़ता है रमाकांत पंडित का किरदार जो हर सीजन इंप्रेस कर जाता है.
तीसरे सीजन का मसीहा
पहले और दूसरे सीजन में भी राजेश तैलंग ने कमाल का अभिनय किया था. उनके कैरेक्टर को भी इस सीजन में और भुनाया गया. अपने बेटे को बचाने के लिए उनसे जो गुनाह हुआ उसकी वजह से उन्होंने सरेंडर कर दिया और पश्चाताप की आग में जलकर जेल की सलाखों के पीछे अपना ठिकाना बना लिया. लेकिन यहां भी उनकी इज्जत घटी नहीं बल्कि और बढ़ गई. उनके किरदार को सीरीज में एक मसीहे की तरह दिखाया गया है. जो सभी की मदद करता है और अपनी खुद्दारी से खुद को रोशन रखता है.
रमाकांत पंडित जैसों को निराश क्यों होना पड़ता है?
पूरे तीन सीजन में आप एक बात नोटिस करेंगे कि रमाकांत पंडित कभी भी किसी जगह हंसते नजर नहीं आए हैं. उन्हें एक बेहद गंभीर और कम मजाक करने वाली शख्सियत के तौर पर दिखाया गया है. वे सीरीज में हमेशा वसूलों की बात करते और उच्च विचारों पर चलते दिखे हैं. लेकिन सीरीज में उनके डायलॉग्स पर अगर गौर करें तो अधिकतर समय मिजाजी तौर पर वे निराश नजर आते हैं. जरा उखड़े-उखड़े से रहते हैं. ऐसा सिर्फ रमाकांत पंडित के साथ नहीं होता. लोभ और लालाच के इस मायावी संसार में हर वो मानव जो ईमानदारी की राह पर चलता है वो निराश जरूर होता है. वो उसके हिस्से की निराशा है. वो ये नहीं समझ पाता है कि वो सही होकर भी गलत कैसे है. वो ये नहीं समझ पाता है कि उसकी सोच से उलट लोग क्यों चलते हैं, ऊपर से ये जानते हुए भी कि इसका अंजाम कभी अच्छा नहीं होता. वो ये नहीं समझ पाता है कि सच्चाई का रास्ता अच्छा है ये बुजुर्गों ने बताया. तो उस राह पर चलने से लोग कतराते क्यों हैं?
लेकिन मारकाट और कत्ल-ए-आम के बीच राजेश तैलंग का ये रोल एक उम्मीद की किरण की तरह है. उसकी उदासी फ़क़त जाया होने के लिए नहीं है. उसकी उदासी का महत्व सीधे तौर पर इंसानी जुड़ाव से है. मान लो भगवान आ जाएं, तो क्या आज का समाज देखकर वे खुश होंगे. वे भी निराश होंगे, क्रोधित होंगे, चिढ़ जाएंगे. मगर भगवान तो अब आते नहीं. रमाकांत पंडित जैसे मसीहा आते हैं. जो अपनी रूह-ए-रोशन से जीवन में प्रकाश बिखराते हैं और कईयों की उम्मीदों का सहारा बनते हैं.