भारत की रीढ़ बन सकती है देश की कल्चरल इकोनॉमी, आंकड़ों से समझें

भारत का अतीत काफी गौरवशाली रहा है. एक समय भारत दुनिया की जीडीपी में 25 फीसदी से ज्यादा कंट्रीब्यूट करता था. ग्लोबल ट्रेड में भारत का कंट्रोल 28 फीसदी के करीब था. कई शताब्दियों तक एक आर्थिक शक्ति होने के नाते, भारत ने सभी सेक्टर में लीड किया फिर चाहे वह कला हो या संस्कृति, संगीत, नृत्य, भोजन, त्योहार, वास्तुकला या हस्तशिल्प भी इसी फेहरिस्त में है. विश्व धरोहर में भारतीय सभ्यता या यूं कहें कि इंडियन कल्चर का योगदान अतुलनीय रहा है. अब इस मॉर्डन ऐरा में यही देश की सभ्यता और संस्कृति देश की इकोनॉमी से जुड़ी जा रही है. जोकि आने वाले दिनों में देश की रीढ़ बन सकती है. इसे कुछ आंकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं.
कल्चरल इकोनॉमी से कितने रोजगार
बीजेपी के इकोनॉमिक अफेयर से राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने मैत्री कल्चरल इकोनॉमी समिट 2024 में बताया कि संस्कृति और इकोनॉमी के बीच काफी गहरा संबंध है. हम भारत की इकोनॉमी को गति देने के लिए अपनी सांस्कृतिक संपदा का उपयोग कर सकते हैं. कल्चरल इकोनॉमिक गवर्नेंस पॉलिसी मेकिंग और उसके एग्जीक्यूशन के लेवल पर बहुत महत्व रखता है. कल्चरल सेक्टर लगभग 45 लाख लोगों को सीधे तौर पर कारीगरों, कलाकारों, पर्यटन गाइडों आदि के रूप में रोजगार देता है. इसके अलावा, हस्तशिल्प और पारंपरिक कला उद्योग लगभग 60 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं. वहीं दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि भारत की कल्चरल इकोनॉमी का आरंभ हमारे वेद-पुराणों से हुआ है. देश की इकोनॉमी को 5 ट्रिलियन तक पहुंचाने में हमारी संस्कृति अहम योगदान निभाएगी. वहीं मैत्रीबोध परिवार दादाश्री ने कहा कि संस्कृति और अर्थव्यवस्था का तालमेल सतत विकास का आधार है. हम एक ऐसे भविष्य की कल्पना करते हैं जहां आध्यात्मिक और आर्थिक समृद्धि साथ-साथ बढ़े.
फिल्म इंडस्ट्री का 1.80 लाख करोड़ का योगदान
ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल 10 फीसदी ग्रामीण कारीगरों के पास औपचारिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक पहुंच है. यह अनुमान लगाया गया है कि कल्चरल सेक्टर में क्षमता निर्माण पहल से सांस्कृतिक उद्यमों की उत्पादकता और राजस्व में 20-30 फीसदी की वृद्धि हो सकती है. यूनेस्को द्वारा किए गए एक सर्वे में पाया गया कि 70 फीसदी पारंपरिक कारीगरों को लगता है कि उनका कौशल मौजूदा बाजार की मांग के अनुरूप नहीं है. अकेले इंडियन फिल्म इंडस्ट्री इकोनॉमी में सालाना लगभग 1,80,000 करोड़ रुपए का योगदान देता है. यूएस में योग सालाना 15 अरब अमेरिकी डॉलर का बिजनेस बन गया है. अब इसे भारत की इकोनॉमी के साथ जोड़ना भी काफी अहम हो गया है.
मंदिर और त्योहारों से इकोनॉमी को फायदा
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, पुनर्विकास परियोजना, जिसकी लागत 85,000 करोड़ रुपए से अधिक है, को 2031 तक पूरा किया जाना है. जिससे शहर में प्रतिदिन लगभग 3 लाख तीर्थयात्रियों की आवाजाही हो सकेगी. पुनर्विकास से पहले काशी विश्वनाथ मंदिर में प्रतिदिन 20,000-30,000 आगंतुक आते थे. सुधार के बाद, आगंतुकों की दैनिक संख्या बढ़कर 1.5-2 लाख हो गई। भारत में त्योहारों से सालाना 2 लाख करोड़ रुपए का योगदान होने का अनुमान है. सीआईआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में कुंभ मेले ने 1.2 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार किया, जबकि यूपी राज्य को इसके आयोजन में सिर्फ 4,200 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े.

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