क्या अमेरिका-सऊदी का दिल जीत पाएंगे हार्ट सर्जन मसूद पेजेश्कियान, ईरान के नए राष्ट्रपति की राह में कितने कांटे?
एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मृत्यु के बाद हुए चुनाव के दूसरे चरण में मसूद पेजेश्कियान को जीत मिली है. सुधारवादी नेता के तौर पर जाने जाने वाले पेजेश्कियान ने कट्टरपंथी नेता सईद जलीली को हराया है. इसके बाद उन्होंने कहा कि सभी ईरानियों के लिए काम करेंगे. लेकिन उनके सामने तमाम चुनौतियां मुंह खोले खड़ी हैं. इनमें आंतरिक हालात सुधारने से लेकर दुश्मन देशों को अपना बनाने की चुनौतियां तक शामिल हैं.
68 साल के पेजेश्कियान एक हार्ट सर्जन रहे हैं. ईरान में उन्होंने एकता और सद्भाव लाने और दुनिया के साथ ईरान के अलगाव को खत्म करने का वादा चुनावों के दौरान किया था. पश्चिमी देशों के साथ खासकर अमेरिका के साथ साल 2015 के असफल परमाणु समझौते पर दोबारा सकारात्मक बातचीत शुरू करने का आह्वान भी उन्होंने किया है. इस समझौते के अनुसार ईरान पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए बैन में छूट के बदले अपने यहां परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश लगाने को सहमत हो गया था.
अमेरिका ने चुनाव पर ही खड़े कर दिए सवाल
हालांकि, ईरान में सरकार बनने के साथ ही जिस तरह से अमेरिका का बयान आया है, उससे लगता नहीं है कि ईरान के नए राष्ट्रपति के लिए परमाणु समझौते पर आगे बढ़ पाना आसान नहीं होगा. ईरान के राष्ट्रपति चुनाव की अमेरिका ने आलोचना की है. उसका कहना है कि यह चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं था. इसके बाद भी मानवाधिकारों पर ईरान के रुख में कोई बदलाव नहीं आएगा. अमेरिकी विदेश विभाग के एक स्पोक्सपर्सन ने कहा है कि तेहरान के साथ उनका देश कूटनीतिक प्रयोग तब शुरू करेगा, जब इससे अमेरिकी हित आगे बढ़ेंगे.
बाइडेन ही नहीं, ट्रंप भी ईरान के खिलाफ
एक तरह से अमेरिका की वर्तमान सरकार ने ईरान के साथ परमाणु समझौते पर आगे बढ़ने से इनकार कर दिया है. यह समझौता अमेरिका में राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय में हुआ था. ईरान के साथ दशकों से चली आ रही दुश्मनी के बाद ओबामा प्रशासन साल 2015 में ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ ऐक्शन तक पहुंचा था. इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बन गए और उन्होंने इस समझौते पर आगे बढ़ने से इनकार कर दिया था.
अब वर्तमान सरकार भी फिलहाल इस पर आगे बढ़ते नहीं दिख रही और अमेरिका भी चुनाव की दहलीज पर खड़ा है. मुकाबला वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन और ट्रंप के बीच है. बाइडन सरकार पहले से ईरान के खिलाफ है और ट्रंप आते हैं तो स्थितियां और भी खराब होंगी. इसलिए अमेरिका के साथ संबंध सुधारना ईरान के राष्ट्रपति के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी.
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान. (फाइल फोटो)
इजराइल के साथ जंग
इजराइल और ईरान की दुश्मनी जगजाहिर है. कभी नए देश के रूप में इजराइल को मान्यता देने वाला ईरान इस्लामी क्रांति के बाद से ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन है और देश के रूप में इजराइल के अस्तित्व को मानता ही नहीं है. कभी ईरान के सुप्रीम लीडर रहे अयातुल्लाह अली खामनेई का कहना था कि इजराइल वास्तव में कैंसर का ट्यूमर है. उसे जड़ों से उखाड़ फेंका जाएगा. इजराइल भी कहता है कि ईरान उसके लिए खतरा है.
फिलिस्तीन और इजराइल के बीच जारी जंग के दौरान ईरान पर ईरान ड्रोन हमले कर चुका है और इजराइल ने भी इसका जवाब दिया है. ईरान अब भी फिलिस्तीन के साथ खड़ा है. वहीं, इजराइल का साथ अमेरिका दे रहा है. ऐसे में अगर ईरान किसी तरीके से इजराइल के साथ संबंध सुधारने की पहल करता भी है तो पहले उसे अमेरिका को अपने पक्ष में करना होगा. वैसे भी हालिया सीधे हमलों के बाद इजराइल किसी भी तरह से ईरान के साथ संबंध सुधारने की दिशा में आगे बढ़ेगा, ऐसा कम ही लगता है. फिर गाजा पट्टी में जंग अभी जारी है. घाव ताजा हैं.
खाड़ी देशों को भी साधना होगा
खाड़ी देश सऊदी अरब और ईरान के संबंध भी खास अच्छे नहीं हैं. खाड़ी के दूसरे देश भी शिया और सुन्नी में बंटकर सऊदी अरब और ईरान के अलग-अलग खेमे में बंटे हैं. सऊदी अरब के खेमे में जहां यूएई, कुवैत और बहरीन जैसे सुन्नी देश व मिस्र और जॉर्डन हैं. वहीं, ईरान की इस्लामिक क्रांति के बाद से सीरिया में ईरान अपना प्रभाव बढ़ाता चला गया. यमन पर भी ईरान का प्रभुत्व है, जिसे खत्म करने के लिए सऊदी अरब यमन के खिलाफ जंग लड़ चुका है. ईरान-इराक में आठ साल लंबी लड़ाई हो चुकी है और आज इराक अमेरिका के पाले में है. ऐसे में इन दुश्मन देशों को अपना बना पाना फिलहाल तो मुश्किल ही नजर आ रहा है.
मसूद पेजेशकियन
पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने होंगे
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान को सबसे पहले देश के तौर पर ईरान की ही मान्यता मिली थी पर ईरानी क्रांति के बाद मतभेद बढ़े और यह चरम पर पहुंच गया. पाकिस्तान ने ईरान पर आरोप लगाया कि वह पाकिस्तानी शियाओं को भड़का रहा है. 2021 से 2023 तक दोनों के संबंध सुधर ही रहे थे कि ईरान में हुए आतंकवादी हमले से स्थिति फिर बिगड़ गई. पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के बाद ईरान ने पाकिस्तान पर सीधे हमला तक कर दिया था. ऐसे में पाकिस्तान आतंकवाद का खात्मा करेगा नहीं तो भला ईरान उससे संबंध कैसे सुधारेगा.
सुप्रीम लीडर से ऊपर कैसे उठेंगे
सबसे बड़ी चुनौती तो पेजेश्कियान के सामने यह है कि वह अपने देश के सुप्रीम लीडर से ऊपर उठकर फैसले कैसे ले पाएंगे. उनकी कोशिशें तभी कामयाब हो सकती हैं जब सुप्रीम लीडर का साथ मिले. पेजेश्कियान जरूर सुधारवादी माने जाते हैं पर नए ईरान का गठन ही कट्टरपंथ की बुनियाद पर हुआ है.
सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामनेई ईरान में सर्वोच्च शक्तिशाली नेता हैं. अपने देश में जिस मॉरल पुलिसिंग को खत्म करने की वकालत पेजेश्कियान ने की थी, वह सुप्रीम लीडर के अधीन है. खामनेई स्टेट हेड और कमांडर इन चीफ हैं. यानी देश भी उनके हाथ में और सेना भी. न्यायपालिका का मुखिया भी वही चुनते हैं.
ईरान में सबकुछ सुप्रीम लीडर की मर्जी से ही होता है. युद्ध और शांति की घोषणा उन्हीं के हाथ में है और वह पहले से अमेरिका-इजराइल जैसे देशों के खिलाफ हैं. इजराइल के खिलाफ युद्ध भी जारी है. ऐसे में भला पेजेश्कियान क्या कर पाते हैं, यह आने वाला वक्त बताएगा.
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