Chandipura Virus : दिमागी बुखार की तरह खतरनाक है चांदीपुरा वायरस, कैसे बनता है मौत का कारण
भारत में चांदीपुरा वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. इसकी वजह से कुछ बच्चों की मौत भी हो चुकी है. गुजरात के बाद इस वायरस के मामले राजस्थान में भी सामने आए हैं. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि चांदीपुरा वायरस काफी खतरनाक है. यह दिमाग को नुकसान करता है. अगर समय पर मरीज का इलाज न हो तो मौत भी हो सकती है. इस वायरस के ज्यादा केस बच्चों में आते हैं. चूंकि चांदीपुरा वायरस से बचाव के लिए कोई वैक्सीन नहीं है. ऐसे में इसको खतरनाक माना जाता है. दो राज्यों में केस आने के बाद अन्य राज्यों में भी इस बीमारी के मामले बढ़ने की आशंका है. ऐसे में एक्सपर्ट्स ने लोगों को बचाव करने की सलाह दी है.
चांदीपुरा वायरस क्या है. इसका नाम कैसे पड़ा. इसके लक्षण और बचाव के बाके में जानने के लिए हमने एक्सपर्ट्स से बातचीत की है.
क्या होता है चांदीपुरा वायरस
आरएमएल हॉस्पिटल में सीनियर रेजिडेंट डॉ. अंकित कुमार बताते हैं कि चांदीपुरा वायरस रबडोविरिडे परिवार का एक आरएनए वायरस है. इसकी वजह से बच्चे एन्सेफलाइटिस ( दिमागी बुखार) का शिकार हो सकते हैं. यह वायरस काफी पुराना है और साल 2003 में भारत में भी इसके केस आए थे. यह बीमारी 2 महीने से लेकर 15 साल की उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है. इसके लक्षण आमतौर पर इन्फ्लूएंजा जैसे होते हैं, लेकिन ये बीमारी ऑटोइम्यून एन्सेफलाइटिस भी करती है. ऐसी स्थिति में डेथ रेट 50 से 70 फीसदी है. यानी अगर ये वायरस ब्रेन पर असर करता है तो 100 में से 50 से 70 बच्चों की मौत हो सकती है.
पहली बार इस वायरस के केस 1965 में भारत में आए थे और यहां ही इसके ज्यादा मामले आते हैं. यह वायरस वेक्टर-जनित है और माना जाता है कि इसका संचरण सैंडफ्लाइज़ फ़्लेबोटोमस पापाटासी के माध्यम से होता है. यह वायरस कुछ कीड़ों और मच्छरों में होता है. ये कीड़े अगर बच्चों को काटते हैं तो उससे संक्रमण होता है. हालांकि इसके संक्रमण के कुछ दूसरे कारण भी हो सकते हैं.
चांदीपुरा क्यों है नाम
इस वायरस की सबसे पहले नागपुर जिले के चांदीपुरा गांव में पहचान हुई थी. तब से इस वायरस को चांदीपुरा कहा जाता है. शुरुआत में इसके लक्षण फ्लू की तरह ही होते हैं, लेकिन धीरे-धीरे ये वायरस ब्रेन को नुकसान पहुंचाने लगता है. जिससे मौत हो जाती है. चांदीपुरा से बचाव के लिए कोई वैक्सीन या फिर निर्धारित दवा नहीं है.
केवल मरीज के लक्षणों के आधार पर ही इलाज किया जाता है. इस वायरस से बचना है तो रोकथाम बहुत जरूरी है. क्योंकि अगर इसके लक्षण समय पर समझ नहीं आए और वायरस ब्रेन पर अटैक कर गया तो मरीज की जान बचाना मुश्किल हो सकता है. इस वायरस की वजह से मरीज की स्थिति दिमाग बुखार जैसी ही हो जाती है. ऐसे में इससे बचाव बहुत जरूरी है.
कैसे करें बचाव
इस बीमारी से बचाव के लिए जरूरी है कि आप मच्छरों और कीड़ों से बच्चों को बचाकर रखे. इसके लिए घर के आसपास सफाई रखे. मच्छरों को पनपने न दें. बच्चों को पूरी बाजू़ के कपड़े पहनाएं और रात में सोते समय मच्छदानी का यूज करें.