गुदगुदी होने पर हमें सिर्फ हंसी ही क्यों आती है? जानिए इसके पीछे क्या है वजह
Body Tickling: हमारे शरीर में ऐसे कई सारे प्वाइंट्स या हिस्से हैं, जहां छू लेने पर गुदगुदी का एहसास होता है. गुदगुदी के कारण जोर-जोर से हंसने लगते हैं. लेकिन नोटिस करने वाली बात ये है कि यही गुदगुदी जब हम खुद के हाथों से करते हैं- तो हमें हंसी क्यों नहीं आती? सोचने वाली बात है न? इसको लेकर बर्लिन के वैज्ञानिकों ने चूहों पर प्रयोग किए हैं.
बर्लिन की हुमबोल्ट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का मानना है कि गुदगुदी होने पर चूहे भी वैसी ही प्रतिक्रिया देते हैं, जैसे इंसान. शोधकर्ताओं के मुताबिक, चूहों पर दो तरह के प्रयोग किए गए.किसी और के गुदगुदी करने और खुद गुदगुदी करने पर चूहों के दिमाग ने अलग अलग तरीकों से प्रतिक्रिया दी.
गुरुग्राम के नारायणा हॉस्पिटल में साइकोलॉजी एंड क्लीनिकल साइकोलॉजी विभाग में डॉ. राहुल राय कक्कड़ कहते हैं कि हम खुद को गुदगुदी नहीं कर पाते क्योंकि गुदगुदी का प्रभाव हमारे दिमाग और नर्वस सिस्टम के बीच की जटिल प्रक्रिया पर निर्भर करता है. जब कोई और हमें गुदगुदी करता है, तो यह अप्रत्याशित होता है और हमारा मस्तिष्क इस पर प्रतिक्रिया करता है. लेकिन जब हम खुद को गुदगुदी करने की कोशिश करते हैं, तो हमारा मस्तिष्क जानता है कि हमारे हाथ से शरीर को किसी तरह का कोई खतरा नहीं है,जिससे वह प्रतिक्रिया नहीं देता है.
खुद से गुदगुदी क्यों नहीं होती
आपको बता दें कि गुदगुदी का संकेत देने के लिए हमारे दिमाग के दो हिस्से जिम्मेदार होते हैं- पहला है सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स और दूसरा एंटीरियर सिंगुलेट कॉर्टेक्स. पहला हिस्सा यानी सोमेटोसेंसरी कॉर्टेक्स किसी भी चीज के छूए जाने के बारे में समझता है. दूसरा पार्ट एंटीरियर सिंगुलेट कॉर्टेक्सखुशी या किसी दिलचस्प एहसास को समझने का काम करता है.
तो जब हम खुद के हाथों से गुदगुदी करते हैं तो दिमाग के सेरिबेलम हिस्से को पहले से ही इसके बारे में पता होता है. सेरिबेलम ही कॉर्टेक्स को इसकी सूचना भेजता है. इससे कॉर्टेक्स पहले से वाकिफ होते हैं और हमारे संवेदनशील अंगों को छूने पर गुदगुदी का अहसास नहीं होता.
दिमाग को मिलता है सरप्राइज
गुदगुदी को लेकर एक बेहद दिलचस्प बात है. गुदगुदी सरप्राइज पर निर्भर करती है. जब कोई इंसान हमें अचानक से गुदगुदी करता है तो हमारा दिमाग उसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं होता. इसी वजह से हम जोर-जोर से हंसने लगते हैं.
खतरनाक संकेत नहीं
दरअसल, अगर हम खुद को गुदगुदी करने की कोशिश करते हैं तो हमारा दिमाग ये जानता है कि खुद का छुआ जाना खतरनाक नहीं है. इसीलिए दिमाग इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है.
दोस्ताना हमला है गुदगुदी
आपको ये जानकर थोड़ी सी हैरानी जरूर होगी कि हमारा दिमाग गुदगुदी को दोस्ताना हमले की तरह लेता है. किसी दूसरे इंसान की ओर से गुदगुदाने पर दिमाग एक साथ खुशी और हल्के दर्द को महसूस करता है. इसकी वजह से दिमाग तनाव में आ जाता है. यही तनाव हंसी के रूप में बाहर आता है.
गुदगुदी होने पर हंसी क्यों आती है?
शोधकर्ताओं ने इस बात का दवाब दिया है. उनके मुताबिक, गुदगुदी भी एक खतरे के संकेत की तरह ही है. हमारे शरीर के जिन हिस्सों में ज्यादा न्यॉरॉन होते हैं, वह गुदगुदी को लेकर ज्यादा सेंसेटिव होते हैं. इनमें पेट, जांघ, गर्दन और बगल वाला हिस्सा शामिल है. जब दिमाग को लगता है कि गुदगुदी किया जाना खतरनाक नहीं है तो वह हंसकर तनाव दूर करता है.
दो तरह की गुदगुदी
गुदगुदी भी दो तरह से होती है. पहली निसमेसिस है, जिसमें शरीर को हल्के हाथों से स्पर्श किया जाए. इससे त्वचा की बाहरी परत यानी एपिडर्मिस नसों के जरिए दिमाग तक संदेश पहुंचाती है.दूसरी है गार्गालेसिस, जिसके कारण पेट, आर्मपिट या गले पर छूने से व्यक्ति को बहुत ज्यादा हंसी आती है.
सजा के तौर पर गुदगुदी
हंसी दिलाने वाली गुदगुदी को एक जमाने में सजा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में इससे जुड़ा एक लेख भी था. बता दें कि चीन का टिकल टॉर्चर इसी का ही एक रूप है. गुदगुदी की सजा उन लोगों को दी जाती थीं, जो छिटपुट गलतियां करते थे. उनको तब तक गुदगुदी की जाती थी, जब तक उनकी सांस न फूल जाए.
खैर, कुछ लोग तो ऐसे भी हैं- जिन्हें गुदगुदी के बारे में सोचने पर भी हंसी आ जाती है. रिसर्च से पता चला है कि चूहों का जो हिस्सा गुदगुदी किए जाने पर एक्टिव होता है- वही हिस्सागुदगुदी करने से तुरंत पहले भी सक्रिय हो जाता है. हर इंसान के शरीर का अलग-अलग हिस्सा गुदगुदी को लेकर सेंसेटिव होता है. तो अगली बार अगर आपको कोई गुदगुदी करें तो हंसी थामकर रखें. इससे उस इंसान को पता नहीं चलेगा कि गुदगुदी किस जगह होती है.