उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, केरल में बदलेंगे गवर्नर? मोदी युग के राज्यपालों का लेखा-जोखा क्या कहता है

लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली शिकस्त, उसके बाद पार्टी के भीतर असंतोष, समीक्षा बैठकों के दौर, सरकार-संगठन में कौन बड़ा-कौन छोटा की बहसबाजी और सबसे अहम बतौर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भविष्य को लेकर सियासी पतंगबाजी के बीच जिस एक चीज के बारे में निश्चित तौर पर कुछ कहा जा सकता है, वह है राज्य की मौजूदा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के कार्यकाल को लेकर. यह अगले दो हफ्ते में पांच साल पूरा करने जा रहा है.
किसी राज्य के गवर्नर के तौर पर लगातार 5 साल का कार्यकाल एक अहम राजनीतिक पड़ाव होता है क्योंकि इसके बाद प्रायः राज्यपाल बदल दिए जाते हैं. मोदी सरकार में भी कमोबेश यह रवायत बरकरार रही है. अगर बहुत बारीकी से नजर डालें तो पाएंगे कि मोदी युग में कम से कम 60 लोग राज्यपाल की कुर्सी तक पहुंचे. पिछले 10 बरसों के दौरान इन्हीं 60 का तबादला इस राज्य से उस राज्य होता रहा, और मौका-बेमौका यही अतिरिक्त प्रभार भी पाते रहे.
इस स्टोरी में हम इन 60 राज्यपालों का एक लेखा-जोखा पेश करेंगे और हालिया राजनीति में उससे निकल रहे कुछ इशारों पर नजर डालेंगे.
पहली बातः उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, केरल में बदलेंगे गवर्नर?
मोदी के दौर में राज्यपाल नियुक्त हुए 60 में से 12 लोग ऐसे रहे जिन्हें लगातार 5 साल या उससे दो-चार महीने अधिक का कार्यकाल मिला.
इनमें केसरीनाथ त्रिपाठी (पश्चिम बंगाल),राम नाइक (उत्तर प्रदेश), ओम प्रकाश कोहली (गुजरात), सी. विद्यासागर रॉव (महाराष्ट्र), पी. सतसिवम (केरल), कल्याण सिंह (राजस्थान), विजयेन्द्र पाल सिंह (पंजाब) और पद्मनाभ आचार्य (नागालैंड) 5 साल, कुछ एक दिन इस पद पर रहे.
वहीं, जगदीश मुखी (असम), बीडी मिश्रा (अरुणाचल प्रदेश), प्रोफेसर गणेश लाल (ओडिशा) और मृदुला सिन्हा (गोवा) 5 साल से कुछ ज्यादा महीने राज्यपाल रहीं.
सभी 60 नामों के कार्यकाल का अध्ययन करने पर मालूम होता है कि एक राज्य विशेष में लगातार किसी को भी जो अधिकतम कार्यकाल मिला, वह 5 साल या उससे दो एक महीने अधिक का रहा.
6 साल या उससे अधिक का कार्यकाल पाने वाले केवल दो नाम रहे. पहला – वजूभाई वाला, दूसरा – द्रोपदी मुर्मू. वजूभाई कर्नाटक में करीब 7 साल तक और मुर्मू झारखंड में तकरीबन 6 बरस लगातार राज्यपाल के पद पर बनी रहीं. मोदी के दस वर्षों में एक राज्य विशेष में इतना लंबा कार्यकाल किसी और को नहीं मिला.
इस तथ्य की रौशनी में अगर हम मौजूदा राज्यपालों के कार्यकाल पर गौर करें तो पाएंगे कि उत्तर प्रदेश में आनंदीबेन पटेल के अलावा गुजरात में आचार्य देवव्रत अगले हफ्ते – दो हफ्ते में 5 साल का कार्यकाल पूरा कर लेंगे.
इसी तरह केरल में आरिफ मोहम्मद खान और राजस्थान में कलराज मिश्र बतौर राज्यपाल 5 साल का समय पूरा करने के मुहाने पर खड़े हैं. ऐसे में, मुमकिन है कि आने वाले दिनों में इन राज्यों में या तो राज्यपाल बदल जाएं या फिर दूसरी स्थिति ये बने कि इनमें से कुछ 5 बरस के अलावा भी चंद दिन या महीने अपने पद पर बने रहे.
दूसरी बात – जिन राज्यों में सबसे ज्यादा गवर्नर बदले गए, और जहां स्थिरता रही
मोदी युग के राज्यपालों पर केन्द्र सरकार के मोहरे की तरह पेश आने के आरोप लगते रहे हैं. वहीं, गैर-भाजापा शासित राज्य – मसलन पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल में राज्य सरकार और राज्यपालों के बीच की खिटपिट, तनातनी की खबरें पिछले कुछ वर्षों में आम रही हैं. मगर कहानी इतनी भर नहीं. अगर ये समझें कि मोदी सरकार ने किन राज्यों में राज्यपाल बदलने के लिहाज से सबसे ज्यादा प्रयोग किए और कहां वे ऐसे प्रयोग से बचे हैं तो काफी दिलचस्प जानकारी निकलती है.
दरअसल, मोदी युग के दौरान त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश जैसे उत्तर पूर्व के राज्यों में राज्यपाल के तौर पर सबसे ज्यादा चेहरे आए और गए. त्रिपुरा, अरुणाचल में कम से कम से 6 राज्यपाल तो मिजोरम, मेघालय में 5 स्थाई राज्यपाल पिछले 10 बरसों के दौरान नियुक्त हुए हैं. यह गिनती तब है जब अतिरिक्त प्रभार वाले राज्यपालों को नहीं गिना जाए. क्योंकि इनमें से मिजोरम, मेघालय जैसे राज्य कई-कई महीनों तक अतिरिक्त प्रभार वाले राज्यपालों के पास रहे.
दिलचस्प बात ये रही जिन राज्यों में औसतन हर दूसरे साल राज्यपाल बदल गए, उनमें उत्तर भारत के भी दो राज्य (हिमाचल प्रदेश और बिहार) रहे. यहां मोदी युग में 5 स्थाई राज्यपालों की नियुक्ति अब हो चुकी. बिहार में रामनाथ कोविंद से जो सिलसिला शुरू हुआ, वह सत्यपाल मलिक, लालजी टंडन, फागु चौहान होते हुए अब राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर पास है. इसी तरह हिमचाल प्रदेश राजभवन आचार्य देवव्रत, कलराज मिश्रा, बंडारू दत्तात्रेय, राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर के बाद अब शिवप्रताप शुक्ला के पास है.
एक ओर तो आपको बिहार, हिमाचल के उदाहरण दिखें जहां पिछले 10 बरसों के दौरान आधे दर्जन तक राज्यपाल आए-गए. वहीं, इसी दरमियान कुछ राज्य ऐसे रहे जहां मोदी सरकार ऐसे प्रयोग करने से साफ-साफ बची. इनमें उत्तर प्रदेश, गुजरात जैसे राज्य अगली पंक्ति में खड़े नजर आते हैं, जहां भाजपा ने राज्यपाल के नाम के लिहाज से स्थायित्त्व दिया. तो इसी कड़ी में ओडिशा जैसे राज्य भी रहें जहां की तत्कालीन बीजू जनता दल की सरकार केन्द्र में मोदी सरकार की पालनहार रही.
अपने आप में यह भी काफी महत्त्वपूर्ण है कि दक्षिण भारत के राज्य जहां भाजपा की ज्यादा मौजूदगी कुछ खास नहीं, वहां भी राज्यपाल बनाने के मोर्चे पर मोदी सरकार ने बहुत ज्यादा इधर-उधर नहीं किया. कर्नाटक में लंबे अरसे तक वजूभाई वाला रहे, वो गए तो उनकी जगह थावरचंद गहलोत आए. इसी तरह केरल में मोदी सरकार के शुरुआती पांच साल के दौरान देश के मुख्य न्यायधीश के पद से रिटायर हुए पी. सतसिवम राज्यपाल रहे तो बाद के वर्षों में आरिफ मोहम्मद खान आए.
तीसरी बात – मनमोहन युग के राज्यपाल जिसे मोदी सरकार ने जारी रखा
कर्नाटक, केरल के अलावा दक्षिण भारत के दूसरे राज्य (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु) मेंकुछ ही राज्यपाल इसलिए इन 10 बरसों में आए क्योंकि इन राज्यों में मनमोहन युग के गवर्नर को ही शुरुआती कुछ बरसों तक राज्यपाल बनाए रखा. मसलन – पहला – को. रोसइया, जो एक समय आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और जिन्हें यूपीए-2 की सरकार में तमिलनाडु का राज्यपाल बनाया गया. वह मोदी दौर में भी कम से कम दो साल तक अपने पद पर बने रहे.
आईबी के डायरेक्टर पद से रिटायर होने वाले ई.एस.एल. नरसिम्हन पर भी मोदी सरकार खूब मेहरबान रही. बतौर आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नरसिम्हन की नियुक्ति मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में हुई थी. जब मोदी सरकार में आए तो नरसिम्हन का कार्यकाल पांच बरस पूरा करने वाला था. लेकिन मोदी सरकार ने उन्हें पांच साल और आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बनाए रखने का फैसला किया.
इतना ही नहीं, जब वह 2014 से 2019 के बीच आंध्र के गवर्नर थे तो उन्हें तेलंगाना का भी अतिरिक्त प्रभार 5 साल तक दिया गया. और इस तरह मनमोहन और मोदी युग के साझा कार्यकाल को अगर जोड़ दें तो नरसिम्हन देश के सबसे लंबे समय तक राज्यपाल (12 साल) रहने वाले शख्सियत बन गए.
कांग्रेस ही के शासन के समय नियुक्त हुए सिक्किम के राज्यपाल श्रीनिवास दादा साहिब पाटिल, ओडिशा के राज्यपाल एस. सी. जमीर मोदी सरकार के दौरान भी तकरीबन 4 साल अपने पद पर बने रहे. मनमोहन सिंह के दौर का एक और नाम जिसे लंबे अरसे तक मोदी सरकार ने नहीं छेड़ा, वह राम नरेश यादव थे. केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के बाद भी यादव अगले दो बरस तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल बने रहे.

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