12 साल बाद खत्म हुआ ये टैक्स, बजट में इन्हें मिली सबसे बड़ी राहत
केंद्र सरकार ने बजट 2024 में 12 साल पुराने टैक्स को खत्म कर दिया. ये टैक्स यूपीए-2 में लाया गया था. जिसे स्टार्टअप पर लगाया गया था. इस टैक्स का नाम एंजेल टैक्स रखा गया था. एंजल टैक्स का मतलब वह इनकम टैक्स है जो सरकार नॉन-लिस्टिड कंपनियों या स्टार्टअप द्वारा जुटाई गई धनराशि पर लगाती है, यदि उनका मूल्यांकन कंपनी के उचित बाजार मूल्य से अधिक है. अपने बजट भाषण में उन्होंने ई-कॉमर्स कंपनियों तथा दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के संदर्भ में कुछ वित्तीय साधनों के लिए कर दरों में विभिन्न बदलावों की भी घोषणा की.
निर्मला ने एंजेल टैक्स खत्म करने का किया ऐलान
वित्त मंत्री ने कहा कि सबसे पहले, भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम को मजबूत करने, उद्यमशीलता की भावना को बढ़ावा देने और इनोवेशन का समर्थन करने के लिए मैं सभी वर्गों के निवेशकों के लिए एंजल कर को समाप्त करने का प्रस्ताव करती हूं. केंद्रीय बजट से पहले उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) ने स्टार्टअप पर इस शुल्क को हटाने की सिफारिश की थी.
पिछले साल सितंबर में आयकर विभाग ने नए एंजल कर नियमों को अधिसूचित किया था. इसमें गैर-सूचीबद्ध स्टार्टअप द्वारा निवेशकों को जारी किए गए शेयरों के मूल्यांकन की व्यवस्था शामिल है. जहां पहले एंजल कर सिर्फ स्थानीय निवेशकों पर लागू होता था, वहीं वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में विदेशी निवेश को शामिल करने के लिए इसका दायरा बढ़ा दिया गया है. सरकार के पास 1.17 लाख से ज्यादा स्टार्टअप पंजीकृत हैं. ये सरकार की स्टार्टअप इंडिया पहल के तहत प्रोत्साहन पाने के पात्र हैं.
क्या कहते हैं जानकार
घोषणा पर टिप्पणी करते हुए, डेलॉयट इंडिया के साझेदार सुमित सिंघानिया ने कहा कि यह एक सकारात्मक कदम है क्योंकि इससे न केवल स्टार्टअप में निवेशकों के लिए कर लागत गणना को फिर से निर्धारित करने में मदद मिलेगी, बल्कि विदेशी रणनीतिक निवेशकों के लिए भी मदद मिलेगी. इंडसलॉ के साझेदार लोकेश शाह ने इसे एक बड़ी घोषणा बताया. उन्होंने कहा कि यह भारतीय कंपनियों, खासतौर पर स्टार्टअप के लिए बड़ी राहत की बात है. निवेशकों और भारतीय कंपनियों का समर्थन करने वाले निजी इक्विटी/उद्यम कोष के लिए यह खुशी की बात है.
क्या होता है एंजेल टैक्स?
जो कंपनी शेयर बाजार में लिस्टिड नहीं है और निवेशकों को शेयर जारी कर फंड रेज करती है उस पर लगने वाले टैक्स को एजेंल टैक्स कहा जाता है. इस टैक्स को उस प्रीमियम पर लगाया जाता है तो निवेशक शेयरों के रियल प्राइस से ज्यादा चुकाते हैं. इस तरह की कमाई को दूसरे सोर्स से इनकम भी कहा जाता है. जिसपर उसी हिसाब से टैक्स भी लगाया जाता है. इस टैक्स को साल 2012 में लाया गया था. इस टैक्स का प्रमुख उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग और ब्लैक मनी को रोकना था. इस टैक्स के आने के बाद स्टार्टअप्स और निवेशकों ने इस टैक्स का काफी विरोध भी किया था. वैसे सरकार की ओर से एलिजिबल स्टार्टअप्स को कई छूट और राहत भी दी गई है.