नेपाल को चीन का झटका, नहीं दे रहा हाइवे बनाने के लिए पैसे, अब खुद जुटा रहा है फंड
चीन ने एक समय नेपाल को भारत के खिलाफ खड़ा करने का प्रयास किया. उसको जमकर पैसे दिए. अपनी चाल में कामयाब नहीं होने पर उसने अब फंड रोक दिया है. करीब नौ साल पहले उसने आर्थिक और तकनीकी पैकेज नेपाल के लिए जारी करने का वादा किया था. हालांकि, रकम नहीं मिलने पर नेपाल सरकार ने अब खुद के पैसे से विकास की राह पकड़ने का निर्णय लिया है. नेपाल को यह फंड अरानिको राजमार्ग के लिए मिलना था, जो नहीं मिला है. अब इसे बनाने के लिए सरकार स्वयं के संसाधनों का उपयोग कर रही है.
जब तत्कालीन राष्ट्रपति रामबरन यादव चीन की यात्रा पर थे तो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 28 मार्च, 2015 को हैनान प्रांत में बोआओ फोरम में अपनी बैठक के दौरान 900 मिलियन आरएमबी (16 अरब रुपये से अधिक) की सहायता पैकेज की घोषणा की थी. यह सहायता नेपाल को चीन से जोड़ने वाले 115 किलोमीटर लंबे अरानिको राजमार्ग को अपडेट करने और परिवहन बुनियादी ढांचे को विकसित करने में मदद करने के लिए थी.
वित्त मंत्रालय के अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग समन्वय प्रभाग द्वारा हर साल इस विशेष चीनी सहायता का नवीनीकरण किया जाता था, लेकिन कई कॉल, अनुरोध और बैठकों के बावजूद यह धनराशि नहीं मिली. चूंकि चीनी सरकार यह राशि जारी नहीं कर रही थी तो राजमार्ग के 26 किलोमीटर हिस्से पर रखरखाव करने और सड़क विभाग द्वारा तैयार विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के आधार पर भूस्खलन के प्रबंधन के लिए नेपाल ने अपने बजट से 3.6 अरब रुपये आवंटित किए.
चीनी सरकार ने बनाया था कोडारी हाईवे
अरानिको हाईवे का एक बड़ा हिस्सा, जिसे कोडारी हाईवे के नाम से भी जाना जाता है, 1960 के दशक में चीनी सरकार द्वारा बनाया गया था. अप्रैल 2015 में आए भूकंप से हाईवे के कई हिस्से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे. पुष्प कमल दहल ने चीनी राष्ट्रपति शी को दो बार फोन किया, लेकिन कोई पैसा नहीं दिया गया. यह निष्कर्ष निकालने के बाद कि चीनी सहायता नहीं आ रही है, सरकार से पैसे की मांग की गई, जिसमें राजमार्ग के 26 किलोमीटर के खंड को बनाने के लिए 3.6 बिलियन रुपये आवंटित किए गए.
इसके साथ ही कोविड महामारी के बाद, नेपाल में कार्यरत चार बड़ी चीनी कंपनियों द्वारा स्वचालन लोडर और मशीनरी के उपयोग के कारण नेपालियों की नौकरियां काफी हद तक खत्म हो गई हैं. वहीं चीन ने नेपाली सामान और लोगों के लिए सीमा प्रतिबंध कड़े कर दिए हैं और वह मुख्य रूप से चीनी सामान को ही नेपाल में निर्यात करने के लिए सीमा का उपयोग करता है.
बीआरआई समझौते पर भी कुछ खास नहीं
नेपाल के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर हस्ताक्षर करने के करीब सात साल बाद तक चीन के पास असली परियोजना के तौर पर दिखाने के लिए कुछ नहीं है. नेपाल और चीन ने 12 मई, 2017 को वन बेल्ट वन रोड (जिसे बाद में बीआरआई के नाम से जाना गया) पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की एक प्रमुख पहल है. इसको हर तीन साल में अपडेट किया जाएगा. बीजिंग बीआरआई को विदेश नीति की शीर्ष प्राथमिकता देता है लेकिन काठमांडू में पुष्प कमल दहल सरकार के गठन के बाद से नेपाल की ओर से कोई ठोस चर्चा नहीं हुई थी.
समझौते पर हस्ताक्षर के सात साल बाद भी नेपाल में बीआरआई की गति में कमी को लेकर चिंताएं हैं, जबकि इसका उद्देश्य संयुक्त अध्ययन के माध्यम से पारगमन परिवहन, रसद, परिवहन नेटवर्क सुरक्षा और संबंधित बुनियादी ढांचे के विकास को सुविधाजनक बनाना और रेलवे, सड़क, नागरिक उड्डयन, बिजली ग्रिड, सूचना और संचार सहित सीमा पार परियोजनाओं को बढ़ावा देना था.
2021 में बीआरआई का मुद्दा फिर सामने आया
समझौता ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि दोनों पक्ष 2017 के भीतर चीन-नेपाल मुक्त व्यापार समझौते की संयुक्त व्यवहार्यता अध्ययन को पूरा करेंगे. अगर व्यवहार्य होगा तो बाजारों को और खोलने और दोतरफा व्यापार का विस्तार करने के लिए मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत शुरू करेंगे.
जुलाई 2021 में शेर बहादुर देउबा के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीआरआई का मुद्दा फिर से सामने आया. मार्च 2022 में पूर्व चीनी विदेश मंत्री और स्टेट काउंसलर वांग यी की यात्रा के दौरान, नेपाली पक्ष ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह बीआरआई परियोजनाओं के लिए ऋण के बजाय अनुदान और सहायता को प्राथमिकता देता है. नेपाली पक्ष ने चीनी अधिकारियों के साथ बातचीत और बैठकों के दौरान स्पष्ट किया कि नेपाल की अपनी मजबूरियों और गंभीर आर्थिक स्थिति के कारण वह उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेने में सक्षम नहीं.