AAP और दिल्ली को पॉलिटिकल पैरालिसिस से निकालने के लिए केजरीवाल ने चला ट्रंप कार्ड, जानिए कैसे

दिल्ली शराब नीति मामले में जेल से जमानत पर रिहा हुए आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बड़ा दांव चला है. उन्होंने दो दिनों के बाद दिल्ली से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा की है और समय से पहले चुनाव कराने की मांग की है. लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सीटों पर हार के बाद अरविंद केजरीवाल का पार्टी और दिल्ली को पॉलिटिकल पैरालिसिस से निकालने के लिए यह बड़ा दांव माना जा रहा है.
भ्रष्टाचार के मामले में जमानत पर रिहा होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वह अग्निपरीक्षा देने के लिए तैयार हैं और अपनी बेगुनाही साबित करने के बाद ही जनता की अदालत में जाएंगे. आइए पूरे राजनीतिक घटनाक्रम को समझते और जानते हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया था और अब जेल से रिहा होने के बाद क्यों इस्तीफा देने के लिए तैयार हो गये हैं?
जबकि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी के पहले इस्तीफा दे दिया था. अब ऐसा क्या हो गया जो जेल से रिहाई के बाद अरविंद केजरीवाल ने न केवल इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है, बल्कि दिल्ली में समय से पहले चुनाव कराने की भी बात कही है. इस्तीफे के ऐलान के पीछे क्या अरविंद केजरीवाल की कोई मजबूरी है या फिर उनका गेमप्लान है?
सुप्रीम कोर्ट की शर्तों से विवश हुए केजरीवाल
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने जमानत की रिहाई की शर्त के रूप में मुख्यमंत्री कार्यालय में प्रवेश करने एवं किसी भी आधिकारिक फाइल पर हस्ताक्षर करने पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने भले ही अरविंद केजरीवाल को जमानत पर रिहा कर दिया है, लेकिन राजनीतिक और प्रशासनिक रूप से पंगु भी बना दिया है. अरविंद केजरीवाल की सरकार पूरी तरह से राजनीतिक और संवैधानिक संकट में फंस गयी और इस संवैधानिक संकट से निकलने के लिए और सरकार को बचाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने यह ट्रंप कार्ड चला है.
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उन्होंने अपने भाषण में भी सुप्रीम कोर्ट की शर्त का जिक्र किया है और कहा है कि लोगों को ऐसा लगता है कि वह सीएम के रूप काम नहीं कर पाएंगे और इसलिए उन्होंने जनता की अदालत में जाने का फैसला किया है. दूसरी ओर, चूंकि अरविंद केजरीवाल कोई सरकारी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में वह विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए उपराज्यपाल को सिफारिश भी नहीं भेज सकते हैं.
सहानुभूति हासिल करने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार दीपक रस्तोगी कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल को जमानत तो मिल गयी है, लेकिन उनकी सरकार संवैधानिक संकट में फंस गयी है. ऐसी स्थिति में निकलने के लिए अरविंद केजरीवाल ने यह दांव चला है. भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने के बावजूद उन्होंने मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ा था, लेकिन अब वह मुख्यमंत्री पद छोड़ने का ऐलान किया है और जल्द चुनाव की मांग कर रहे हैं. इससे वह जनता में संदेश देना चाहते हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से कोई मोह नहीं है और इस दांव के जरिए वह दिल्ली के लोगों की सहानुभूति हासिल करना चाहते हैं.
जेल भेजे जाने का आरोप का लोकसभा चुनाव पर प्रभाव नहीं
लोकसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल जमानत पर रिहा हुए थे. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने बीजेपी पर जमकर हमला बोला था और आरोप लगाया था कि बीजेपी उन्हें जानबूझ कर जेल भेजना चाहती है कि यदि जनता उन्हें वोट देकर और भी ताककतर बनाएगी तो फिर बीजेपी उन्हें जेल नहीं भेज पाए. अरविंद केजरीवाल की अपील का दिल्ली की जनता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीट बीजेपी फिर से जीत गई और अरविंद केजरीवाल का दांव फेल रहा था.
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लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सात सीटों पर पराजय से अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को करारा झटका लगा था. लोकसभा चुनाव में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, गुजरात एवं असम में 22 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ा था, लेकिन केवल पंजाब में तीन सीटें जीतने में सफल रही थी. हालांकि 2014 और 2019 के मुकाबले एक सीट बढ़ी थी, लेकिन जैसा अरविंद केजरीवाल दावा कर रहे थे. वैसा कुछ नहीं हुआ.
विधानसभा चुनाव से पहले छवि चमकाने की कोशिश
अब हरियाणा और जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव है. हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी फिर आमने सामने हैं. इसके साथ ही इन पार्टियों का भाजपा से भी मुकाबला है. दीपक रस्तोगी कहते हैं कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों के वोट एक ही हैं. ऐसे में कोई भी पार्टी अपना वोटबैंक नहीं छोड़ना चाहती है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल सीएम पद से इस्तीफा का दांव खेल कर हरियाणा चुनाव में अपनी छवि चमकाने की कोशिश कर रहे हैं.
बीजेपी से आरोपों से घिरे केजरीवाल, पलटवार
दूसरी ओर, बीजेपी ने भी केजरीवाल के इस्तीफे की घोषणा को उनका पीआर स्टंट करार दिया है. बीजेपी नेताओं का कहना है कि आम आदमी पार्टी पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूब गई है और जैसा अरविंद केजरीवाल ईमानदार नेता के रूप में खुद को पेश करते थे. अब जनता उन पर विश्वास नहीं कर रही है. पूरे देश के लोग समझ गये हैं कि उन्होंने ईमानदारी की आड़ में भ्रष्टाचार का मुखौटा पहन रखा है और इस तरह से वह अपनी छवि निखारने की कोशिश कर रहे हैं. इसके पहले सोनिया गांधी ने भी मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर पीछे से सरकार चलाई थी और अब अरविंद केजरीवाल भी वही कोशिश कर रही है, लेकिन जनता ने लोकसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी को नकार दिया और अब विधानसभा चुनाव में भी नकार देगी.

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