Ancestral Property: क्या शादी के बाद पिता की संपत्ति पर बेटी जता सकती है अपना मालिकाना हक, जानिए क्या कहता है कानून
हमारी सामाजिक व्यवस्था में काफी बदलाव आ गया है. लेकिन सोच अभी भी पूरी तरह बदल नहीं पाई है. लोगों की आज भी सोच हैं कि पिता की जायदाद पर पहला हक बेटों का होता है.
जबकि भारत में बेटियों के हक में कई कानून बने हैं. उसके बाद भी समाज में कई पुरानी परंपरा आज भी विद्यमान है. आज भी सामाजिक स्तर पर पिता की प्रॉपर्टी पर पहला हक पुत्र को दिया जाता है.
बेटी की शादी होने के बाद वह अपने ससुराल चली जाती है. तो कहा जाता है कि उसका जायदाद से हिस्सा खत्म हो गया. ऐसे में सवाल है कि क्या पिता की प्रॉपर्टी पर शादीशुदा बेटी अपना मालिकाना हक जता सकती है?
संपत्ति के बंटवारे को लेकर भारत में कानून बनाए गए हैं. इसके अनुसार, पिता की संपत्ति में केवल बेटे का ही नहीं बल्कि बेटी का भी बराबर का हक होता है. हालांकि, इसके बारे में महिलाओं के बीच जागरुकता की कमी है.
जागरुकता के अभाव में समय पड़ने पर बेटियां खुद भी आवाज नहीं उठा पाती हैं. लिहाजा जरूरी है कि लड़कियों को भी अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने की जरूरत है और उन्हें संपत्ति से जुड़े अपने सभी अधिकारों के बारे में कानूनी रूप से भी पता होना चाहिए.
क्या पिता की प्रॉपर्टी पर शादीशुदा बेटी अपना मालिकाना हक जता सकती है? तो इसका जवाब है हां, पिता की प्रॉपर्टी पर शादीशुदा महिला क्लेम कर सकती है. हिंदू सक्सेशन ऐक्ट, 1956 में साल 2005 के संशोधन के बाद बेटी को हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी माना गया है.
अब बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता है. यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है. इसके मुताबिक पिता की संपत्ति पर बेटी का उतना ही अधिकार है जितना कि बेटे का.
गौर करने वाली बात यह है कि अगर पिता अपने मरने से पहले अपनी प्रॉपर्टी को बेटे के नाम पर कर देता है. इस स्थिति में बेटी अपने पिता की प्रॉपर्टी को क्लेम नहीं कर सकती है. स्वअर्जित संपत्ति के मामले में भी बेटी का पक्ष कमजोर होता है.
अगर पिता ने अपने पैसे से जमीन खरीदी है, मकान बनवाया है या खरीदा है तो वह जिसे चाहे यह संपत्ति दे सकता है. स्वअर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी देना पिता का कानूनी अधिकार है. यानी, अगर पिता ने बेटी को खुद की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया तो बेटी कुछ नहीं कर सकती है.
हिंदू सक्सेशन ऐक्ट, 1956 में साल 2005 में संशोधन कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया है. संपत्ति पर दावे और अधिकारों के प्रावधानों के लिए इस कानून को 1956 में बनाया गया था.
इसके मुताबिक पिता की संपत्ति पर बेटी का उतना ही अधिकार है जितना कि बेटे का. बेटियों के अधिकारों को पुख्ता करते हुए इस उत्तराधिकार कानून में 2005 में हुए संशोधन ने पिता की संपत्ति पर बेटी के अधिकारों को लेकर किसी भी तरह के संशय को समाप्त कर दिया.