Ayodhya: हनुमानगढ़ी की कहानी… नवाब ने करवाया था भव्य मंदिर का निर्माण, हनुमान जी के लिए 52 बीघा जमीन का दिया था दान

रामलला की स्थापना के साथ उनके परम प्रिय दूत बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी का भी मान बढ़ गया। पौराणिक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद श्रीराम के साथ अनेक वानर वीर भी श्रीराम के साथ अयोध्या आए।

इनमें स्वाभाविक रूप से हनुमान जी भी शामिल थे। माता सीता की खोज से लेकर रावण के विरुद्ध सामरिक अभियान में हनुमान जी ने अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी इसी योग्यता के अनुरूप श्रीराम ने राजप्रासाद के आग्नेय कोण पर हनुमान जी को अयोध्या के रक्षक के रूप में स्थापित किया।

17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में तीन अखाड़ों का गठन

यह भी मान्यता है कि अजर-अमर के वरदान से युक्त हनुमान जी आज भी यहां सूक्ष्म रूप से विद्यमान हैं। एक मार्च 1528 को राम मंदिर तोड़े जाने जैसी घटनाओं के चलते घर-परिवार त्याग कर राम भक्ति में लीन रहने वाले विरक्त वैष्णव आचार्यों ने 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जिन तीन अखाड़ों का गठन किया, उनमें से एक निर्वाणी अखाड़ा भी था। हनुमानगढ़ी इस अखाड़ा के विरक्त साधुओं के केंद्र के रूप में स्थापित हुई।

हनुमानगढ़ी के संतों ने चलाया रामजन्मभूमि मुक्ति का अभियान

पुजारी रमेशदास के अनुसार, इस निर्णय के पीछे हनुमान जी से भक्ति, वैराग्य, बल-विक्रम और रामकाज की प्रेरणा भी थी। ऐसी ही प्रेरणा और विरासत से प्रवाहमान हनुमानगढ़ी के संतों ने रामजन्मभूमि की मुक्ति का अभियान आगे बढ़ाया। यदि एक ओर इस पीठ की आध्यात्मिक विरासत अवध के नवाब मंसूर अली खां से प्रतिपादित है, दूसरी ओर महंत अभिरामदास से भी अनुप्राणित है।

 

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