Bastar The Naxal Story Review : फिल्म में काले और सफेद के बीच का रंग मिसिंग है!
अदा शर्मा की फिल्म ‘बस्तर- द नक्सल स्टोरी’ थिएटर में रिलीज हो चुकी है. ‘द केरला स्टोरी’ बनाने वाले सुदीप्तो सेन ने इस फिल्म का निर्देशन किया है. और विपुल अमृतलाल शाह ‘बस्तर- द नक्सल स्टोरी’ को प्रोडूस कर रहे हैं. अगर आप भी इस वीकेंड ये फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं तो पहले ये रिव्यू जरूर पढ़ें.
फिल्म ‘बस्तर – द नक्सल स्टोरी’ के ट्रेलर में निर्देशक सुदिप्तो सेन ने कई बड़े नामों पर सीधे निशाना साधा था. इस ट्रेलर के बाद फिल्म देखने की उत्सुकता और बढ़ गई थी, इसी बीच फिल्म मेकर विपुल अमृतलाल शाह ने ये भी दावा किया था कि अब तक फिल्मों में हमने नक्सलवादियों की जो कहानियां देखीं हैं, उनसे ये कहानी पूरी तरह से अलग होगी. तो फिर क्या था देख आए फिल्म. ‘बस्तर – द नक्सल स्टोरी’ में बताई गई कहानी आपको झकझोर कर रख देगी, फिल्म में कई ऐसे सीन हैं जो देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. लेकिन एक मशहूर अमेरिकी पत्रकार लिसा लिंग ने कहा है कि हर कहानी में सिर्फ काला और सफेद नहीं होता, बल्कि एक बीच का रंग भी होता है. और ‘बस्तर- द नक्सल स्टोरी’ में वो बीच का रंग मिसिंग है. अब ये रंग क्यों मिसिंग है ये जानने के लिए पढ़ें अदा शर्मा की फिल्म ‘बस्तर- द नक्सल स्टोरी’ का पूरा रिव्यू.
कहानी क्या है?
भगवान अपनी सबसे कठिन लड़ाई लड़ने की जिम्मेदारी अपने सबसे बहादुर सिपाहियों को सौंप देते हैं और इस फिल्म में वो सिपाही है नीरजा माधवन (अदा शर्मा). आईपीएस अफसर नीरजा का उद्देश्य है बस्तर में फैले नक्सलवाद को जड़ से खत्म करना. एक तरफ अपना सब कुछ दांव पर लगाकर नीरजा माओवादी विचारधारा के नक्सलियों को बस्तर से खदेड़ने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ उसकी इस कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. अब अकेली नीरजा किस तरह ये जंग लड़ती है और क्या इस जंग में उसकी जीत हो जाती है? ये जानने के लिए आपको ‘बस्तर’ देखनी होगी.
बस्तर एक डिस्टर्बिंग फिल्म है. फिल्म में कई जगह ऐसा वॉयलेंस दिखाया गया है कि आप अपनी आंखें बंद कर लेते हैं, आप असहज महसूस करने लगते हैं. फिर भी ‘द केरला स्टोरी’ की टीम की बनाई हुई ये फिल्म आपकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती. जब हम सिनेमा देखते हैं तब उम्मीद ये होती है कि बतौर दर्शक हमारे सामने मोशन पिक्चर फॉर्मेट में वो कहानी पेश की जाए जो हमें आखिर तक खुद से जोड़ कर रखें, बस्तर का निर्देशन अच्छा है, लेकिन फिल्म देखते हुए कई जगह ऐसा लगने लगता है कि मानो हम कोई डॉक्यूमेंट्री देख रहे हैं. फिल्म का स्क्रीनप्ले कमजोर है. कहानी में और फिल्म के खत्म होने के बाद कई सारे फैक्ट्स बताए तो गए हैं, लेकिन उनका कोई सिर-पैर नहीं है. ‘नक्सलियों के नाम पर होने वाले हजारों करोड़ के भष्ट्राचार के आंकड़े भी फिल्म में दिए हैं लेकिन उसके पीछे का ठोस कारण देने की कोशिश नहीं की हुई है. हालांकि कुछ कलाकारों ने इस फिल्म को पूरा न्याय देने की कोशिश की है.