बिहार: 11 MLC सीट पर घमासान, बीजेपी क्या शाहनवाज हुसैन को फिर भेजेगी विधान परिषद?
बिहार की 11 विधान परिषद सीटों पर 21 मार्च को होने वाले चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. जेडीयू प्रत्याशी के तौर पर नीतीश कुमार और खालिद अनवर ने मंगलवार को अपना नामांकन दाखिल किया
बीजेपी, आरजेडी और कांग्रेस ने अपने एमएलसी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं किया. बीजेपी से जिन 3 विधान परिषद सदस्यों के कार्यकाल पूरे हो रहे हैं, उसमें पार्टी का मुस्लिम चेहरा शाहनवाज हुसैन भी शामिल हैं. ऐसे में सभी की निगाहें शाहनवाज हुसैन पर लगी हैं कि बीजेपी उन्हें दोबारा से एमएलसी बनाने का फैसला करेगी की नहीं?
बिहार विधान परिषद की 11 सीटों के लिए 21 मार्च को चुनाव होने हैं. इन 11 एमएलसी सीटों में से एनडीए के पास 8 सीटें हैं, जबकि महागठबंधन की तीन सीटों पर उनका कब्जा है. ऐसे में जिन एमएलसी के कार्यकाल पूरे हो रहे हैं, उसमें बीजेपी के मंगल पांडेय, शाहनवाज हुसैन और संजय पासवान शामिल हैं. जेडीयू की 4 सीटें रिक्त हो रही हैं, जिसमें सीएम नीतीश कुमार, संजय झा, रामेश्वर महतो और खालिद अनवर शामिल हैं. आरजेडी से पूर्व सीएम राबड़ी देवी और रामचंद्र पूर्वे का कार्यकाल पूरा हो रहा. कांग्रेस से प्रेमचंद्र मिश्रा और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संतोष सुमन का कार्यकाल भी पूरा हो रहा है.
जेडीयू से सीएम नीतीश ने दाखिल किया नामांकन
जेडीयू से नीतीश कुमार और खालिद अनवर ने नामांकन दाखिल कर दिया है, लेकिन अब निगाहें आरजेडी, बीजेपी और कांग्रेस के एमएलसी उम्मीदवारों पर है. ऐसे में केंद्रीय राजनीति के बिहार में 2020 में आए शाहनवाज हुसैन को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं. बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में शाहनवाज हुसैन को टिकट नहीं दिया था जबकि उससे पहले तक वह चुनाव लड़ते रहे हैं. शाहनवाज हुसैन बिहार में बीजेपी का मुस्लिम चेहरा हैं. किशनगंज और भागलपुर लोकसभा सीट से वह सांसद भी रह चुके हैं.
अटल सरकार में जब उन्होंने 1999 में शपथ ली थी तो वह महज 31 साल के थे. इस तरह वह अटल सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने थे. वह दौर अटल-आडवाणी का था और संयोग यह कि वह दोनों के चहेते थे. उस वक्त सब कुछ शाहनवाज हुसैन के अनुकूल था, लिहाजा तरक्की की सीढ़ियां भी वह तेजी से चढ़ते गए. पहले वो राज्यमंत्री बने, उसके बाद स्वतंत्र प्रभार और फिर प्रमोशन होकर कैबिनेट मंत्री बने थे. 1996 से लेकर 2014 तक उनका दबदबा था. वह बीजेपी का मुस्लिम चेहरा बन गए थे. 2004 का लोकसभा चुनाव जब वह हार गए तो 2006 में उन्हें उपचुनाव के जरिए लोकसभा पहुंचने में सफल रहे.
मोदी लहर में शाहनवाज हुसैन हार गए चुनाव
2014 आते-आते बीजेपी अटल-आडवाणी की जगह मोदी-शाह की जोड़ी का दबदबा कायम हो गया. 2014 में मोदी लहर होने के बावजूद शाहनवाज हुसैन चुनाव हार गए. यह हार उन्हें हाशिए पर लेकर चली गई. वो अगर 2014 में चुनाव जीत जाते तो मोदी कैबिनेट का हिस्सा होते. हालांकि, उसके बाद से वह खुद को सेट करने के लिए कोशिश करते रहे, लेकिन सफल नहीं हो सके. 2019 के चुनाव में तो स्थिति यह बनी कि शाहनवाज को टिकट ही नहीं मिला, क्योंकि उनकी सीट जेडीयू के खाते में चली गई थी. 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कैबिनेट का हिस्सा बने. बीजेपी ने उन्हें एमएलसी बनाया, लेकिन अब उसका भी कार्यकाल पूरा हो रहा है. ऐसे में बीजेपी क्या शाहनवाज हुसैन को एमएलसी बनाने का दांव फिर से खेलेगी?
दरअसल, देश की बदली हुई सियासत में बीजेपी की मुस्लिम राजनीति जरा बदली हुई नजर आ रही है. मौजूदा समय में मोदी कैबिनेट में एक भी मुस्लिम चेहरा नहीं है. यूपी के पिछले दोनों लोकसभा और दोनों विधानसभा में एक भी मुस्लिम को प्रत्याशी नहीं बनाया और न ही बिहार में किसी मुस्लिम पर दांव खेला. पिछले साल के आखिर में हुए पांच राज्यों के चुनाव में एक भी मुस्लिम को विधानसभा का टिकट नहीं दिया जबकि राजस्थान और मध्य प्रदेश में पार्टी मुस्लिम कैंडिडेट उतारती रही है. बिहार में भी बीजेपी जिस तरह की राजनीति कर रही है, उसे देखते हुए शाहनवाज हुसैन पर दांव खेलेगी कि नहीं, यह कहना मुश्किल है.
एमएलसी चुनाव का गणित
बिहार विधानसभा में अभी 242 विधायक हैं. क्योंकि एक विधायक की सदस्यता समाप्त हो चुकी है. इस तरह एक विधान परिषद सीट जीतने के लिए 22 विधायक की जरूरत है. महागठबंधन के पास 7 विधायकों के बागी होने के बाद 106 विधायक बचे हैं. एनडीए के पास अब 135 विधायक हो गए हैं. पहले 128 विधायक थे. ऐसे में एनडीए 6 सीट तो आसानी से जीत लेगी जबकि महागठबंधन पांच सीटें जीत सकती है. बिहार की 11 सीटों पर उससे ज्यादा उम्मीदवार मैदान में उतरते हैं तो फिर चुनावी घमासान होगा.
विधान परिषद की एक सीट के लिए 22 विधायकों की जरूरत पड़ती है. इस हिसाब से महागठबंधन 5 सीट के लिए 110 विधायकों की जरूरत है. ऐसे में पांचवें सीट के लिए केवल 18 विधायक ही बच रहे हैं. हालांकि AIMIM के एक विधायक महागठबंधन को समर्थन दे सकते हैं. वहीं, छठे सीट के लिए एनडीए के पास केवल 18 विधायक ही बच रहे थे लेकिन बागी के कारण अब 135 विधायक हो चुके हैं, छठे विधायक के लिए अब 25 विधायक बच रहे हैं यानी जितनी विधायकों की जरूरत एक सीट के लिए है उससे अधिक विधायक एनडीए के पास हो गए हैं.