पक्षियों से फैलने वाला पैरेट फीवर कितना खतरनाक?
अगर आपने घर पर तोता, चिड़ियां या कोई भी पक्षी पाला है तो ध्यान दें. आजकल पैरेट फ़ीवर नाम की बीमारी सुनने में आ रही है. हालांकि की घबराने की ज़रूरत नहीं है. भारत से बहुत दूर यूरोप में ये बीमारी फैल रही है. अभी तक पांच लोगों की मौत पैरेट फ़ीवर से हो चुकी है. डॉक्टर से जानिए पैरेट फीवर क्या है, ये क्यों हो रहा है, इसके क्या लक्षण हैं. साथ ही जानेंगे बचाव और इलाज.
पैरेट फीवर किसी बीमार पालतू तोते या पालतू पक्षी के सेक्रीशन (स्राव) से होता है. जैसे उसका पेशाब या उसके इन्फेक्टेड पंख. जब कोई व्यक्ति किसी इन्फेक्टेड तोते के संपर्क में आता है तो क्लैमाइडिया सिटासी (Chlamydia psittaci) नाम का बैक्टीरिया इस व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है. इस बैक्टीरिया की वजह से निमोनिया जैसी एक बीमारी होती है. इस बीमारी को पैरेट फीवर कहते हैं. ये बीमारी सिर्फ पैरेट से नहीं होती है. किसी भी पालतू पक्षी की वजह से हो सकती है, जैसे बत्तख, कबूतर. कभी-कभी ये एक इन्फेक्टेड इंसान से दूसरे इंसान को हो सकता है. लेकिन इसका चांस बहुत कम है. ज़्यादातर केसों में ये पक्षियों से इंसानों को होता है ।
लक्षण
पैरेट फीवर के लक्षण आम निमोनिया जैसे ही होते हैं. आम निमोनिया में बहुत ज्यादा खांसी आना और तेज़ बुखार जैसे लक्षण दिखते हैं. लेकिन पैरेट फीवर के लक्षण काफी माइल्ड होते हैं. इन माइल्ड लक्षणों की वजह से क्लैमाइडिया सिटासी एटिपिकल निमोनिया के ग्रुप का हिस्सा है. पैरेट फीवर में फीवर होगा, छाती में दर्द होगा और सूखी खांसी आएगी. ठंड लगकर बुखार आ सकता है, तेज़ या माइल्ड बुखार आ सकता है. खांसी की वजह से सांस लेने में तकलीफ होती है. बदन में दर्द होता है और थकावट महसूस होती है. अगर ये बीमारी और ज्यादा बढ़ती है तो जिन अंगों पर इसका असर आता है, उनमें और दिक्कत हो सकती है. निमोनिया और इसके लक्षण में इतना ही फर्क है कि इसके लक्षण थोड़ा धीरे बढ़ते हैं. इन्फेक्टेड पक्षी के संपर्क में आने के 10 दिन बाद इसके लक्षण सामने आ सकते हैं.
इलाज और बचाव
जैसे निमोनिया और बाकी फ्लू का इलाज होता है, वैसी ही पैरेट फ़ीवर का भी इलाज है. सबसे पहले ये जानकारी करनी जरूरी है कि मरीज किसी इन्फेक्टेड पक्षी के संपर्क में आया है नहीं. इसके बाद कुछ टेस्ट होते हैं. जैसे एंटीजन टेस्ट, यूरिन टेस्ट और बलगम की जांच भी होती है. जैसे निमोनिया का इलाज एंटीबायोटिक्स से किया जाता है, वैसे ही इसका भी इलाज एंटीबायोटिक्स से होता है. डॉक्सीसाइक्लिन (doxycycline) और टेट्रासाइक्लिन (Tetracycline) कैटेगरी की एंटीबायोटिक्स इस्तेमाल होती हैं. लेकिन अगर कोई मरीज इन दवाइयों से सेंसिटिव है तो दूसरे ग्रुप की एंटीबायोटिक्स भी इस्तेमाल हो सकती हैं.
इसके अलावा मरीज में जैसे लक्षण दिखते हैं, उसके हिसाब से इलाज किया जाता है. जैसे फीवर है तो उसके लिए दवाई देना. कभी-कभी पेट की दिक्कत भी हो जाती है, जैसे उल्टी होना. ऐसे में उल्टी न आए इसके लिए दवाई दी जाती है. मरीज को अच्छी मात्रा में पानी पीना चाहिए, खाना ठीक से खाना चाहिए. हाई प्रोटीन डाइट से किसी भी इन्फेक्शन को लड़ने में आसानी होती है. बीमारी से बचने के लिए अपने पालतू पक्षी का ध्यान रखना ज़रूरी है. जैसे पक्षी को बुखार आता है, वो खाना नहीं खाता है या चिड़चिड़ा हो रहा है. अगर ऐसे लक्षण हैं तो पक्षी को इन्फेक्शन हो सकता है.