ब्लॉग: सौंदर्य और समग्रता का प्रतीक है बसंत
श्रीमद्भगवद्गीता में विभूति योग की व्याख्या करते हुए भगवान कृष्ण खुद को ऋतुओं में बसंत घोषित करते हैं : ऋतुनाम् कुसुमाकर: श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में रास प्रवेश करते हुए उनकी निराली छवि कामदेव को भी लजाने वाली है।
गोपियों के सामने भगवान श्रीकृष्ण अपने मुस्कराते हुए मुखकमल के साथ पीताम्बर धारण किए तथा वनमाला पहने हुए प्रकट हुए। उस समय वे साक्षात मन्मथ यानी कामदेव का भी मन मथने वाले लग रहे थे।
श्रीकृष्ण अप्रतिम सौंदर्य और लावण्य के आगार हैं तो काम को सौंदर्य के मानदंड की तरह रखा गया है। भारतीय संस्कृति में कामदेव की संकल्पना अत्यंत प्राचीन है। इच्छा और कामना की प्रतिमूर्ति के रूप में काम शब्द का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में मिलता है जिसके ऋषि परमेष्ठी प्रजापति हैं, और देवता हैं परमात्मा. व्यक्त और अव्यक्त रूपों वाले कामदेव मन्मथ, अतनु, अनंग, कंदर्प, मदन, पुष्पधन्वा आदि कई नामों से जाने जाते हैं। उनको लेकर अनेक कथाएं और मिथक भी प्रचलित हैं।
एक कथा यह है कि कामदेव ब्रह्मा के मन से जन्मे थे। कहते हैं बसंत पंचमी की तिथि पर कामदेव का धरती पर आगमन हुआ। जहां सौंदर्य है वहीं काम की उपस्थिति है जैसे- यौवन, स्त्री, सुंदर पुष्प, गीत, पराग कण, सुंदर उद्यान, बसंत ऋतु, चंदन, मंद समीर आदि. आनंद, उल्लास, हर्ष, कामना, इच्छा, अभीष्ट, स्नेह, अनुराग आदि के भाव काम की ही अभिव्यक्तियां हैं। जीवन में काम केंद्रीय है और धर्म, अर्थ और मोक्ष के साथ उसे भी पुरुषार्थ का दर्जा मिला हुआ है।
बसंत ऋतु समग्रता और पूर्णता का प्रतीक है जिसमें विकासमान प्रकृति कुसुमित, प्रफुल्लित, प्रमुदित रूप में सजती-संवरती है। श्रीकृष्ण के रूप में सभी गुण नया सौंदर्य पा जाते हैं और उनका प्रकटन बसंत में होता है।