सीमाएं सील, सड़कों पर अर्धसैनिक बल, मुलायम की गर्जना फिर भी विवादित ढांचे पर कैसे चढ़ गए कारसेवक?
अयोध्या की सभी सीमाएं सील थीं, सड़कों पर अर्धसैनिक बल के सैनिकों के बूटों की आवाज आ रही थी, जिस दिन के लिए मुलायम सिंह यादव पहले ही कह चुके थे कि अयोध्या में कोई परिंदा भी पर नहीं मार पायेगा. फिर भी कारसेवक ढांचे तक पहुंच गए. पढ़ें पूरा किस्सा.
30 अक्टूबर 1990 अयोध्या. ये लिखकर आप गूगल पर सर्च करेंगे तो विकीपीडिया का पेज बताता है कि इसे अयोध्या फायरिंग इंसिडेंट से जाना जाता है. पेज पर मालूम चलता है कि इस दिन कारसेवकों पर पुलिस की गोलियां चली थीं. सरकारी कागजों के मुताबिक़ 17 लोगों की जान गयी थी. हालांकि कहा ये जाता है कि इस दिन 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे.
उस दिन अयोध्या की सभी सीमाएं सील थीं, सड़कों पर अर्धसैनिक बल के सैनिकों के बूटों की आवाज आ रही थी, जिस दिन के लिए मुलायम सिंह यादव पहले ही कह चुके थे कि अयोध्या में कोई परिंदा भी पर नहीं मार पायेगा.पूरे समीकरण ने तेजी पकड़ी थी 24 अक्टूबर से. दोनों ओर से निर्णायक तैयारियां हो रही थीं. मुलायम सिंह सद्भावना रैली कर रहे थे, पर इन रैलियों से वैमनस्य और बढ़ रहा था. वे लगातार ऐलान कर रहे थे कि अयोध्या में चौदह कोसी परिक्रमा नहीं होगी. अयोध्या के भीतर परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा आदि-आदि. इन रैलियों से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज हो रहा था. 24 अक्तूबर से ही राज्य सरकार ने अयोध्या में अघोषित कर्फ्यू लगा दिया था. रामकोट इलाके में किसी को जाने की इजाजत नहीं थी. यानी दर्शन पर बिना कहे पाबंदी लग चुकी थी, बिना किसी आदेश के. जैसे-जैसे मुलायम सिंह सरकार सुरक्षा कड़ी करती, विश्व हिंदू परिषद अपने कारसेवकों को वहां किसी भी तरह पहुंचाने के लिए संकल्पबद्ध होती.
कारसेवकों को अयोध्या पहुंचाने का प्रबंध रिटायर्ड सैन्य और सिविल अफसर कर रहे थे. अयोध्या में पांच लाख कारसेवकों को पहुंचाने का जिम्मा अशोक सिंघल और विनय कटियार पर था. मुलायम सिंह यादव उन्हें किसी भी तरह से रोकना चाहते थे. नाकेबंदी की ऐसी हद थी कि अयोध्या की ओर जाने वाली सड़कों पर जो पुल या पुलिया थीं, उन पर भी पक्की दीवारें चुनवा दी गई थीं. उत्तर प्रदेश बिहार की सीमा पर सेवरही के पास सड़क के पास खाई खोद दी गई थी. इसी रास्ते आडवाणी की रथयात्रा को राज्य में प्रवेश करना था. फैजाबाद के एसपी रहे डीबी राय बताते हैं कि मुगलिया सल्तनत में भी कभी राज्य की सीमा पर खाई नहीं खोदी गई. खाई के इस पार असलहों से लैस राज्य पुलिस और पीएसी के जवान थे.विश्व हिन्दू परिषद की ओर से आन्दोलन का पूरा दारोमदार अशोक सिंघल, श्रीचन्द्र दीक्षित और विनय कटियार पर था. ये तीनों कहां थे, प्रशासन को इसकी कोई जानकारी नहीं थी.
आ गई 30 तारीख…
पूरी कवायद के बीच 30 अक्टूबर की तारीख आ गयी. हालात बेकाबू दिख थे. अयोध्या से जुड़ने वाली हर सड़क पर अर्धसैनिक बलों के बूट खनक रहे थे. सीमाएं सील थीं. मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की परिंदा भी पर नहीं मार सकता वाली घोषणा को अमल में लाने के लिए आई.जी. से लेकर थानेदार तक सड़कों पर थे. अयोध्या में चार रोज से कर्फ्यू था. राम जन्मभूमि के दर्शन पर रोक नहीं थी, पर वहां किसी को जाने की इजाजत नहीं थी. देखने पर मालूम चल रहा था कि कारसेवक कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे.
इस सब के दौरान एक मज़ेदार कॉन्सेप्ट देखने को मिला. वो ये कि सरकारी अफसर, पुलिस-प्रशासन वाले कारसेवकों की इनडायरेक्ट तरीक़े से कैसे मदद कर रहे थे. असल में सरकारी आदेश के मुताबिक कारसेवकों को रामजन्मस्थान तक आने की अनुमति नहीं थी. पुलिस बैरीकेडिंग थीं और वहां अर्धसैनिक बलों का पहरा था. सोहावल के पास नेशनल हाइवे बंद था. दूसरी ओर से कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे. पुलिस ने उन्हें रोका. इसपर उन्होंने पुलिसवालों से मिन्नतें कीं. खूब दुलारा-पुचकारा. दरोगा जी दृढ़ रहे. उन्होंने कठोर आवाज में कहा, “इस सड़क से एक परिंदा भी नहीं जा सकता. सरकार का आदेश है और मैं इसका पालन करूंगा.” इसके बाद उन्होंने अपनी आवाज़ में शक्कर घोली और बोले, “लेकिन मैं आपको सड़क से उतरकर खेतों के रास्ते आगे बढ़ने से भी तो नहीं रोक रहा हूं.”कारसेवकों का दल आगे बढ़ चला.
29 को बन गई थी रणनीति
29 अक्टूबर की रात कारसेवा की रणनीति बन चुकी थी. तीन जत्थे बनने वाले थे. अशोक सिंघल, विनय कटियार और श्रीचन्द्र दीक्षित इनका नेतृत्व करने वाले थे. अशोक सिंघल का निर्णय हर किसी को मानना था.30 अक्टूबर की सुबह साढ़े आठ बजे पहला जत्था प्रकट हुआ और रामजन्मभूमि की ओर बढ़ने लगा. पुलिस ने उसे खदेड़ा और ऐलान किया कि सभी को गिरफ्तार किया जाएगा. लेकिन इतने लोगों के लिए बसें ही नहीं थीं. पुलिस गिरफ्तारी के इंतजाम में लगी थी कि तब तक अशोक सिंघल दूसरा जत्था लेकर आ गए. अब लाठीचार्ज हुआ. सिंघल के सर पर एक लाठी पड़ी और उनका सर फट गया. बावजूद इसके वो आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे. मगर पुलिस ने उन्हें अलग कर दिया और उन्हें इलाज के लिए ले जाया गया.
बढ़ती भीड़ देख पुलिस ने गिरफ्तारियां शुरू कीं. हिरासत में लिए गए लोगों को एक बस में बिठाया गया. यहां वो हुआ जो हतप्रभ कर देने वाला था. बस नंबर यूएमआर 9720 में बिठाए लोगों में एक साधु भी था. उसने बस के ड्राइवर को धक्का देकर बाहर कर दिया और बस लेकर आगे बढ़ने लगा. साधु ने बस चलाते हुए घेरेबंदी को तोड़ दिया और बस रामजन्मभूमि से महज़ पचास गज दूर पहुंच गयी. इस साधु का नाम रामप्रसाद बताया गया जो अयोध्या के ही किसी अखाड़े से था. उसकी ये हरकत एक बड़ी बात थी. पुलिस परेशान थी और कारसेवकों के हौसले और भी बुलंद हो चुके थे.
पुलिस के हाथ से निकल गई बात
यहां से साधुओं ने परिसर के भीतर दाखिल होना शुरू किया. पुलिस डंडे पटकती रही, गोली चलाने की धमकी देती रही लेकिन सब कुछ बेकार साबित हो रहा था. अचानक श्रीचन्द्र दीक्षित अपने जत्थे के साथ आ पहुंचे. भीड़ और बढ़ गयी. पुलिस के बस की अब कुछ भी नहीं रही. कोई दीवार फांद रहा था, कोई नीचे से रेंगकर परिसर में पहुंच रहा था. बाहर खड़े लोग परिसर में कारसेवकों को देखते तो और जोश से भर जाते. इतने में श्रीचन्द्र दीक्षित ने पुलिस से कहा कि उन्हें टीले पर खड़े होने दिया जाए जिससे वो कारसेवकों को शांत करवा सकें. पुलिस ने इसकी इजाजत दे दी. दीक्षित के लिए दरवाज़ा खुला तो कई कारसेवक भी अन्दर घुस गए. टीले पर चढ़े दीक्षित ने चालाकी से कारसेवकों को अंदर घुस आने का इशारा कर दिया. भीड़ बेकाबू हो गयी और घुस आई. परिसर में कारसेवा शुरू हुई और दीक्षित ने कहा, “लोकशक्ति की जीत हो गयी.
जन्मभूमि क्षेत्र में थे 40 हजार कार सेवक
दोपहर 12 बजे तक जन्मभूमि क्षेत्र में क़रीब 40 हज़ार कारसेवक आ चुके थे. लगभग तीस फीट ऊंचे गुम्बद पर 3 कारसेवक चढ़े हुए थे. उन्होंने गुम्बद पर झंडा लगा दिया. दोपहर 2 बजे तक भीड़ बढ़ने और पुलिसवालों द्वारा उन्हें खदेड़ने का काम होता रहा. दोपहर 2 बजे कारसेवकों ने फिर जोश दिखाया और इस बार इमारत की दीवार तोड़ दी. पुलिस ने हवा में गोलियां चलाईं. दो कारसेवक फिर गुम्बद पर चढ़े और उसपर लगे झंडे को दुरुस्त करने लगे. सीआरपीएफ़ ने गोली चलायी और दोनों कारसेवक नीचे आ गिरे. वो मारे जा चुके थे. बीस मिनट में पुलिस परिसर को खाली करा चुकी थी. लेकिन डेढ़ घंटे में ऐसी भीड़ आई जिसने परिसर की नींव खोदनी शुरू कर दी. अब बड़ी गोलीबारी हुई. लगभग बीस राउंड फ़ायर हुए. 11 कारसेवक मारे गए. फिर हिंसा का एक दौर शुरू हुआ. सात जीपें और दो बसें जलती हुई दिखाई दे रही थीं.
अब तक जो भी हुआ, वो ये बता रहा था कि सरकारी मशीनरी पूरी तरह से फेल हो चुकी थी. विवादित ढांचे पर झंडा लगाया जा चुका था. गुम्बद पर झंडा लगाते 2 और नींव खोदते हुए 3 कारसेवक मारे जा चुके थे. राज्य सरकार ने कारसेवा होने, गुंबद को नुकसान होने की बात का खंडन कर दिया. सच्चाई ये थी कि 24 सुरक्षा घेरों को तोड़कर एक लाख कारसेवक मौके पर पहुंच चुके थे. परिसर की बाहरी दीवार की ईंटें उखाड़ दी गयी थीं, एक तरफ की दीवार गिर चुकी थी, लगभग सभी जंगले और खिडकियां उखाड़े जा चुके थे और मंदिर के गर्भगृह में भी तोड़फोड़ हुई थी. ये सभी दृश्य वहां मौजूद पत्रकारों ने खुद देखे थे.