पत्नी के नाम पर जमीन खरीदने वालों के लिए बड़ी खबर, इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए फैसला सुनाया कि हिंदू व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के नाम पर खरीदी गई संपत्ति परिवार की संपत्ति होगी. न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने कहा, ‘क्योंकि आमतौर पर पति अपनी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदता है और वह गृहिणी है और उसके पास परिवार के लाभ के लिए आय का कोई सोर्स नहीं है. दरअसल, यह फैसला एक व्यक्ति द्वारा अपने पिता द्वारा खरीदी गई संपत्ति में अपना हिस्सा मांगने की अपील पर आया था.
याचिकाकर्ता ने कहा कि चूंकि संपत्ति उनके पिता ने उनकी मां के नाम पर खरीदी थी, इसलिए यह संयुक्त परिवार की संपत्ति थी. उन्होंने कहा कि उन्होंने उस भूखंड पर एक संरचना का निर्माण किया था जहां से पूरा परिवार व्यवसाय चला रहा था. याचिकाकर्ता के वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि चूंकि मां एक गृहिणी थीं, इसलिए उनके नाम पर खरीदी गई संपत्ति संयुक्त परिवार की संपत्ति होनी चाहिए, व्यक्तिगत नहीं.
वकील ने 2001 के एक मामले के फैसले का हवाला दिया, जहां यह कहा गया था कि, ‘यदि हिंदू पति अपनी पत्नी, जो एक गृहिणी है, के नाम पर संपत्ति खरीदता है, तो यह माना जाएगा कि यह एक बेनामी लेनदेन है जब तक कि पत्नी द्वारा अपनी आय से खरीदी हुई ना हो.’ प्रतिवादी परिवार के सदस्यों के वकील, जिसमें उनकी मां और भाई भी शामिल थे, उन्होंने 1974 के एक मामले का हवाला दिया, जहां हाईकोर्ट ने देखा था कि “ऐसा कोई अनुमान नहीं है कि एक हिंदू संयुक्त परिवार संयुक्त संपत्तियों का मालिक है जब तक कि यह स्थापित न हो जाए कि उसके पास पर्याप्त केंद्र है उस संपत्ति को हासिल करने के लिए.”
वकील ने 2020 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जहां यह माना गया था कि जब तक यह दिखाने के लिए सामग्री पेश नहीं की जाती कि संपत्ति खरीदने के लिए हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) के फंड से भुगतान किया गया था, तब तक संपत्ति उसकी नहीं हो सकती.
हालांकि, एकल न्यायाधीश पीठ ने निषेधाज्ञा याचिका को कायम रखा और बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम, 1988 के अनुसार कहा कि यदि पति अपनी पत्नी या बच्चों के नाम पर संपत्ति खरीदता है, तो ऐसा नहीं कहा जाएगा. बेनामी संपत्ति होगी लेकिन पति द्वारा अपने स्रोत से खरीदी गई मानी जाएगी.