CCS Bharat Ratna: पिता की राह पर जयंत चौधरी, सत्ता चाहे किसी की हो, उनके हाथ में रहे पावर!
राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी के कदम की चर्चा आजकल हर किसी की जुबान पर है. केंद्र की वर्तमान मोदी सरकार ने उनके दादा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का एलान किया है. जयंत चौधरी ने मोदी सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. कहा है दिल जीत लिया. और अब उनकी बात को ( भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने ) कैसे मना करूं ? इस पर लोगों ने प्रतिक्रिया भी जताई है.
कुछ लोगों ने कहा है “दिल” नहीं “दल” जीत लिया है. दार्शनिक अंदाज में देखें तो जयंत चौधरी के इस कदम को सत, रज और तम के नजरिये से देख सकते हैं. सत, रज, तम सांख्य दर्शन का सिद्धांत है. वह मानता है कि हर कार्य में सत, रज और तम होता है. साधारण भाषा में हर चीज में अच्छा, बुरा और सामान्य भाव होता है. जैसे कोई नदी है. कुछ लोग उसमें दूर-दूर से स्नान करने और पुष्य कमाने आते हैं. यह नदी का सत रूप है. जबकि कुछ लोग नदी के किनारे ही होते हैं और वे शायद ही कभी नदी में स्नान करने जाते हों. नदी का पानी बढ़ने के साथ ही उनकी परेशानी ब़ढ़ जाती है.
उन्हें अपना आशियाना छोड़कर भागना पड़ता है. यह नदी का तम रूप है. जबकि नदी में बहुत सारे जीव जंतु रहते हैं. उन पर नदी के जल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. न अच्छा न बुरा. यह नदी का रज ( सामान्य ) गुण है. इसी तरह जो लोग सुविधाभोगी राजनीति के पक्षधर हैं वो जयंत के इस कदम से खुश हैं. वे मान रहे हैं कि वर्तमान में बीजेपी की केंद्र और राज्य में सरकार है और जयंत चौधरी ने बीजेपी से समझौता करके अच्छा किया है. वे भी दोनों सरकारों में शामिल होंगे और इसका लाभ उन्हें भी मिलेगा. लेकिन जो लोग चरण सिंह के सिद्धांतों पर चलने वाले हैं वो उसमें बुरा ही बुरा देखते हैं.
वे चौधरी चरण सिंह को सिद्धांतवादी राजनीतिक व्यक्ति मानते थे. चरण सिंह किसानों की हक की लड़ाई जीवन भर लड़ते रहे. जबकि यह सरकार किसान विरोधी है. किसानों के हितों के खिलाफ तीन कृषि कानून पास कराये. इसने किसान आंदोलन को कुचला, छला. आंदोलन के दौरान सात सौ से ज्यादा किसानों की जान गई. जयंत चूंकि उनके पोते हैं इसलिए इन्हें चौधरी चरण सिंह के ही आदर्शों पर चलना चाहिए था और किसानों के संघर्ष को आगे बढ़ाना चाहिए था. तीसरे वे लोग हैं जिनसे इन चीजों का कोई मतलब नहीं है. जो हो रहा है, हो रहा है.
जयंत चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिये जाने के नाम पर बीजेपी के साथ जा रहे हैं लेकिन यह एक बहाना है. ऐसा लगता है कि परिस्थितियों का आकलन कर उन्होंने बीजेपी में जाने का फैसला कर लिया था और भारत रत्न देने का फैसला उन्हें बीजेपी के साथ जाने का बहाना बना. हर कोई सिद्धांतों की राजनीति लंबे समय तक नहीं कर सकता. इसकी कीमत चुकानी होती है. घास की रोटियां खानी पड़ती हैं. सर कटाना पड़ता है. चौधरी चरण सिंह ने सिद्धांतों की राजनीति की. उनके बेटे अजीत सिंह जब अमेरिका से नौकरी छोड़कर यहां राजनीति करने आये तो उनसे भी वही उम्मीद की गई. अजीत सिंह जब राजनीति में आए उससे पहले राजीव गांधी राजनीति में आ चुके थे. वे पायलट थे. पढ़े-लिखे व्यक्ति थे. विदेश से आये थे. उनका भारतीय समाज में एक क्रेज ( रुतबा ) था. जब अजीत सिंह आये तो उनके समर्थकों ने यही कहा – उनका छोरा राजीव गांधी से कम है के. वो भी कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करके विदेश से आया है. तब उन्होंने अजीत सिंह से भी चौधरी चरण सिंह की विरासत को ही आगे बढ़ाने की उम्मीद की थी. लेकिन जल्दी ही अजीत सिंह ने चरण सिंह के सिद्धांतों की तिलांजलि दे दी और सत्ताभोगी राजनीति का चुनाव कर लिया. वे ज्यादातर समय सत्ता के साथ रहे.
कभी एनडीए के साथ तो कभी यूपीए के साथ. लेकिन सत्ताभोगी राजनीति ने उनका आधार खत्म कर दिया. हालत ये हो गई कि आखिरी समय में वे अपनी लोक सभा सीट तक नहीं बचा पाये. दिल्ली के जिस बंगले में चौधरी चरण सिंह रहते थे, वही बंगला मंत्री रहते उन्होंने आवंटित करा लिया था. लेकिन बाद में इसी बीजेपी की सरकार ने उन्हें उस बंगले से बेइज्ज्त करके बाहर किया.