Chandu Champion Review: सिर्फ कार्तिक नहीं ‘चैंपियन कार्तिक आर्यन’ कहिए, कैसी है कबीर खान की फिल्म?
असली जीत दूसरे खिलाड़ी को हराने में नहीं है, असली जीत है अपनी अंदर की आवाज को हराने में, जो रोज आपसे कहती है कि तुम पहले से ही हार गए हो, उस आवाज से जीतना जरूरी है. अगर आप ये कर पाए, तो आप भी अपनी जिंदगी में चैंपियन बन सकते हो, हमारे देश को पैरालम्पिक में पहला गोल्ड मेडल दिलाने वाले मुरलीकांत पेटकर ने भी अपने अंदर की आवाज को हराते हुए ये कर दिखाया. और हम भी ये कर सकते हैं. कैसे करें; इस बारे में अगर कोई कन्फ्यूजन हो, तो थिएटर में लगी कार्तिक आर्यन की ‘चंदू चैंपियन’ देख लीजिए. ‘चंदू चैंपियन’ एक ऐसी कहानी है, जिसके बारे में यकीन करना मुश्किल है. लेकिन इस कहानी के बारे में बताना भी उतना ही जरूरी है.
कहानी
कहानी शुरू होती है एक बूढ़े इंसान से जो खुद को मुरलीकांत पेटकर बताता है. अपने बेटे के साथ पुलिस स्टेशन में आया हुआ ये आदमी कहता है कि मुझे प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया पर चीटिंग का केस करना है, क्योंकि उन्होंने मुझे ‘अर्जुन अवार्ड’ नहीं दिया. और फिर कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है. साल 1952 में स्वतंत्र भारत को ओलिंपिक के इंडिविजुअल गेम में पहला मेडल दिलाने वाले खाशाबा जाधव की स्वागत यात्रा देख, अपने बड़े भाई के कंधे पर बैठकर इस जश्न में शामिल हुआ छोटा मुरली तय कर लेता है कि उसे भी खाशाबा जैसा ‘चैंपियन’ बनना है. सांगली के इस्लामपुर में रहने वाले इस मुरली को न तो पढ़ाई में दिलचस्पी होती है, न ही पापा की तरह टेलरिंग में.
‘चैंपियन’ बनने का सपना देखने वाले इस बच्चे को सही दिशा मिलती है, दारा सिंह की कुश्ती देखकर. चंदू उन्हें गुरु मान लेता है. और फिर इस्लामपुर के अखाड़े में उसकी तालीम शुरू हो जाती है. लेकिन इस छोटे मुरली को शुरुआत में किसी ने भी सीरियसली नहीं लिया, उसे लोग ‘चंदू चैंपियन’ कहते हुए चिढ़ाते हैं. मुरलीकांत पेटकर का ‘चैंपियन’ बनने का दिलचस्प सफर जानने के लिए, थिएटर में जाकर आपको कार्तिक आर्यन की फिल्म ‘चंदू चैंपियन’ देखनी होगी.
कैसी है फिल्म
साजिद नाडियाडवाला और कबीर खान ने एक ऐसे हीरो की कहानी हमें बताई है, जिसके योगदान को हमारा देश भूल गया था. लेकिन पुलिस स्टेशन में देश के प्रेसिडेंट पर चीटिंग का केस करने पहुंचे मुरलीकांत पेटकर पर एक न्यूज़ रिपोर्टर ने रिसर्च किया. अखबार में लिखे आर्टिकल की गूंज दिल्ली तक पहुंच गई. और देश के इस चैंपियन को ‘पद्मश्री अवार्ड’ से सम्मानित किया गया. इतिहास के पन्नों में खो गए इस ‘इंडियन सुपरहीरो’ की फिल्म कबीर खान ने बड़ी ही ईमानदारी से बनाई है. 2 घंटे 23 मिनट की ये फिल्म न सिर्फ आपका मनोरंजन करती है, बल्कि ये आपको बहुत कुछ सिखाती भी है. अगर शरीर में 9 गोलियां लगने के बावजूद मुरलीकांत पेटकर अपना सपना पूरा कर सकते हैं, तो हम भी नामुमकिन को मुमकिन कर सकते हैं, ये आत्मविश्वास के साथ आप थिएटर से बाहर निकलते हैं. जाहिर है इसका श्रेय साजिद नाडियाडवाला, कबीर खान और कार्तिक आर्यन को देना होगा.
निर्देशन और राइटिंग
जैसे कि मैंने पहले ही लिखा है कि ये फिल्म कबीर खान ने बड़ी ही ईमानदारी से बनाई है. क्योंकि इस फिल्म में कोई भी बात बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की कोशिश नहीं की गई है. कबीर खान दिखा सकते थे कि मुरलीकांत पेटकर को दुश्मनों पर गोलियां चलाते हुए और उनके साथ लड़ते हुए 9 गोलियां लगीं. लेकिन फिल्म में उन्होंने दिखाया है कि बैटलफील्ड पर अपने गुरु को पानी पिलाने के लिए पानी ढूंढने वाले मुरलीकांत को पीछे से दुश्मन की गोलियां लगीं. कबीर खान ने सुमित अरोड़ा और सुदीप्तो सरकार के साथ मिलकर इस फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी है. और उन्होंने इस बात का खास ख्याल रखा है कि ये स्क्रीनप्ले ऑडियंस को आखिर तक बांधकर रखे. सेकंड हाफ में फिल्म और ज्यादा दिलचस्प हो जाती है.
बिना रोमांस बिग बजट फिल्म बनाना बहुत चैलेंजिंग है. और कबीर खान ने ये चैलेंज बखूबी निभाया है. फिल्म में न तो रोमांटिक गाने हैं, और न ही रोमांस का तड़का, फिर भी ये फिल्म हमें बोर नहीं करती. स्पोर्ट्समैन की बायोपिक में जाहिर सी बात है क्लाइमैक्स बड़ा महत्वपूर्ण होता है. ‘चक दे इंडिया’ और हाल ही में रिलीज हुई अजय देवगन की ‘मैदान’ दोनों फिल्मों में मैच का अंजाम पता होने के बावजूद हम जिस तरह से आखिरी सीन में एक्साइटेड, नर्वस होते हैं, ठीक वही फीलिंग ‘चंदू चैंपियन’ के क्लाइमैक्स पर भी आती है. रिजल्ट हम जानते हैं, लेकिन फिर भी हम फाइनल में पहुंचे मुरली के लिए थिएटर में बैठकर परेशान होने लगते हैं. और वहीं कबीर खान अपनी परीक्षा में पास हो जाते हैं. कार्तिक आर्यन के साथ उन्होंने बड़े पर्दे पर कमाल करके दिखाया है.
एक्टिंग
कार्तिक आर्यन को अब तक बड़े पर्दे पर रोमांस करते हुए देखा गया है, या फिर सोनू बनकर अपने टीटू की लव लाइफ बर्बाद करते हुए. ‘चंदू चैंपियन’ उनकी पहली बायोपिक है. और फिल्म देखने के बाद कहा जा सकता है कि ये कार्तिक की अब तक की बेस्ट परफॉर्मेंस हैं. मुरलीकांत पेटकर के एक्सप्रेशन हों, उनकी बॉडी लैंग्वेज हो, या फिर उनकी भाषा, कार्तिक को देखकर ऐसे लगता है कि उन्होंने ये किरदार जिया है. फिल्म के हर पहलू पर कार्तिक की मेहनत हम इस फिल्म में देख सकते हैं.
‘सत्यप्रेम की कथा’ में कार्तिक ने एक गुजराती लड़के का किरदार निभाया था. उस फिल्म में शानदार एक्टिंग करने के बावजूद, उनका गुजराती डायलेक्ट पूरी तरह से गड़बड़ा गया था. लेकिन ‘चंदू चैंपियन’ में उन्होंने मराठी डायलेक्ट पर भी खूब काम किया है. फिर वो ‘चैंपियन’ को ‘चम्पिओन’ कहना हो, नहीं को नाही या फिर पहलवान को पेलवान. आमतौर पर स्पोर्ट फिल्म में सिर्फ एक स्पोर्ट दिखाया जाता है. लेकिन इस फिल्म में कार्तिक को तीन स्पोर्ट्स खेलते हुए दिखाया गया है. कुश्ती, बॉक्सिंग और स्विमिंग. एक तरफ कार्तिक ने बॉक्सिंग के हैंड मूवमेंट के साथ-साथ फुटवर्क पर अच्छा काम किया है. तो दूसरी तरफ वो बिना पैर हिलाए स्विमिंग भी करते हुए नजर आ रहे हैं. इस फिल्म से उन्होंने साबित कर लिया है कि वो कोई भी किरदार निभाने के लिए तैयार हैं.
विजय राज, श्रेयस तलपड़े, हेमांगी कवी, भुवन अरोड़ा, सोनाली कुलकर्णी ने भी अपनी भूमिका को पूरा न्याय देते हुए, शानदार काम किया है.
सिनेमैटोग्राफी
सुदीप चटर्जी ने इस फिल्म की सिनेमैटोग्राफी पर काम किया है. और इस बारे में भी बात होनी चाहिए. इस फिल्म का ज्यादातर हिस्सा फ्लैशबैक में है, 1952 से ये कहानी शुरू हो जाती है. और अपने कैमरा की लेंस से सुदीप चटर्जी वो दौर दिखाने में कामयाब हुए हैं.
क्यों देखें?
ये फिल्म जरूर देखें. ‘एनिमल’, ‘पुष्पा’ जैसी फिल्में कई आएंगी, लेकिन ‘चंदू चैंपियन’ जैसी फिल्में बननी चाहिए. आज के जमाने में जब हम डिप्रेस होने के बाद आगे बढ़ना ही भूल जाते हैं, कभी प्यार में धोखा खाना हो, कभी शादी का टूट जाना हो, कभी नौकरी चली जाना हो या फिर एग्जाम में फेल होना. हर दिन न्यूजपेपर में हमें आत्महत्या की खबर पढ़ने को मिलती है. और इसलिए 9 गोली लगने के बावजूद हमारे देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले मुरलीकांत की कहानी देखना जरूरी है. शरीर, परिवार और किस्मत सभी के साथ छोड़ने के बावजूद हार न मानने वाले इस ‘इंडियन सुपरमैन’ पर बनी फिल्म को थिएटर में जाकर जरूर देखें.
मुरलीकांत पेटकर की कहानी उस जमाने की है, जब कंप्यूटर भी नहीं था. हमारे देश पर अपनी जान कुर्बान करने वाले, उसकी सुरक्षा के लिए लड़ने वाले और इस देश के लिए खेलने वाले ऐसे कई जवानों की फाइलें आज भी सेना के रिकॉर्ड रूम में धूल खा रही हैं. अगर मुरलीकांत पेटकर खुद से आगे नहीं आते, तो शायद उनके बारे में हम कभी जान ही नहीं पाते. ‘चंदू चैंपियन’ मेरे लिए इस सवाल के साथ खत्म हुई, कि उन अनसंग हीरो, और उन ‘चंदू चैंपियन’ का क्या जो आज भी उन फाइलों में बंद हैं, क्या हम उनके बारे में कभी जान पाएंगे?
बाकी, खुद पर उठाए गए हर सवाल, हर शक और हर चिढ़ाती हुई हंसी को गलत साबित करके आगे बढ़ना मुमकिन है. सिर्फ हार मत मानिए. और हां, एक बार पीछे मुड़कर आप पर हंसने वालों को ‘चंदू चैंपियन’ की तरह ये सवाल जरूर पूछे,”ए हंसता काय को है?”