कांग्रेस चाहती है यूपी में BSP आए साथ, क्या अखिलेश के दबाव में है I.N.D.I.A.? मायावती के बयानों से मिले ये संकेत
लोकसभा चुनाव की बात हो और उसमें भी उत्तर प्रदेश की तो बिना बहुजन समाज पार्टी और उसकी सुप्रीमो मायावती के जिक्र अधूरा ही रह जाएगा. खासतौर से जब बात दलित राजनीति की हो तो मायावती के नाम के बिना ये चर्चा अधूरी है. मायावती इस वक्त देश में दलितों की सबसे बड़ी नेता माने जाती हैं. बीएसपी की पूरी राजनीति दलित वोटर्स के केंद्र में है. यही वजह है कि पिछले कई दिनों से इस बात की चर्चा है मायावती को कांग्रेस गठबंधन में लाना चाहती है.
मायावती गठबंधन के लिए जरूरी हैं इस बात पर बाकायदा कांग्रेस की कोर ग्रुप की मीटिंग में चर्चा हो चुकी है. मायावती को इंडिया गठबंधन में शामिल किया जाए और अखिलेश यादव भी इस बात पर राजी हों लेकिन समाजवादी पार्टी इसके लिए तैयार नहीं है.
2019 लोकसभा चुनाव में खत्म हुई थी दुश्मनी
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एसपी और बीएसपी ने दुश्मनी भुलाकर गठबंधन किया था. दोनों दलों को इसका फायदा भी मिला. मोदी की आंधी में एसपी बीसएपी गठबंधन ने 15 सीटें हासिल की. मायावती को 10 और एसपी को 5 सीटें मिलीं थीं. हालांकि लोकसभा चुनाव के बाद ही मायावती और अखिलेश यादव का ये गठबंधन टूट गया और उसके बाद से दोनों दलों के नेता एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते.
कांग्रेस मायावती का स्वागत करना चाहती है और अब बीएसपी सुप्रीमो बहन मायावती ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ दी है. मायावती ने कहा कि गठबंधन में बीएसपी सहित जो भी पार्टियां शामिल नहीं हैं उनके खिलाफ बे फिजूल टिप्पणी करने से बचना चाहिए. देश हित में कब किसको जरुरत पड़ जाये. मायावती के इस बयान से साफ है कि मायावती गठबंधन में जाने की सीधी चर्चा से बचना चाहती हैं. इसके अलावा सपा भी कह रही है कि मायावती के साथ जाने की जरूरत नहीं है.
गठबंधन के पास मायावती की काट क्या?
सोशल मीडिया साइट एक्स पर बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से जारी दो पन्ने के बयान में मायावती ने कहा- जहां तक विपक्ष के गठबंधन में बीएसपी सहित अन्य जो पार्टियां शामिल नहीं हैं, उनके बारे में किसी को बेफिजूल भी टीका टिप्पणी करना उचित नहीं है. क्योंकि भविष्य में देश व जनहि में कब किसको किसी की भी जरूरत पड़ जाए, यह कुछ भी कहा नहीं जा सकता है और तब उन्हें शर्मिंदगी न उठानी पड़े. हालांकि इस मामले में खासकर समाजवादी पार्टी इस बात का जीता जागता उदाहरण है.
उधर, मायावती के किले में सेंध लगाने के लिए विपक्षी गठबंधन प्लान बी पर भी काम कर रहा है. आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर पश्चिमी यूपी में दलितों के उभरते नेता हैं और माना ये जा रहा है कि मायावती अगर शामिल होने से इंकर कर देती है या किसी वजह से मामला फंस जाता है तो इंडिया में चंद्रशेखर की एंट्री हो सकती है. चर्चा तो यहां तक है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर भी विपक्षी गठबंधन की तरफ से यूपी की दलित बहुल सीट पर चुनाव लड़ सकते हैं.