Devara Review : शार्क पर सवार जूनियर एनटीआर ने चलाया एक्शन का जादू, कैसा है सैफ-जान्हवी का काम?

देवरा से वैसे तो मुझे कोई उम्मीद नहीं थी. क्योंकि यकीन था इस फिल्म में वो सारी बातें होंगी जो बिग बजट साउथ फिल्मों में अक्सर नजर आती हैं. बहुत सारा वायलेंस, पार्ट 1 और पार्ट 2 के सीक्वल में बंटने वाली कहानी, फिल्मों में नजर आने वाला डार्क टोन और हां डबल रोल. मेरा अंदाजा बिलकुल सही निकला देवरा में वो सबकुछ है, जिसका मुझे यकीन था. लेकिन ये फिल्म फिर भी मुझे पसंद आई. जूनियर एनटीआर की देवरा एक ट्रेडिशनल साउथ फिल्म होने के बावजूद हमारा खूब मनोरंजन करती है. ये फिल्म लगभग 3 घंटे की है और इसे देखते हुए आप आखिरतक बोर नहीं होते. इस फिल्म ने मुझे तो बाहुबली की याद दिला दी. भले ही दोनों की कहानी बिल्कुल अलग हो. लेकिन मजा उतना ही आता है, जो एस एस राजमौली की बाहुबली देखकर आया था. देवरा में भी कुछ ऐसी बातें हैं, जो खटकती हैं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है. अब आइए इस फिल्म के बारे में विस्तार से बात करते हैं.
कहानी
कहानी शुरू होती है मुंबई के पुलिस हेड क्वार्टर से. देश के तमाम पुलिस फोर्स को येती की तलाश है. येती की खोज में लाल समंदर तक पहुंचे एक पुलिस अफसर को येती तो नहीं मिलता. लेकिन शामप्पा (प्रकाश राज) उन्हें देवरा की कहानी सुनाता है. सालों पहले समुद्र के रास्ते से हमारे देश में आने वाले अंग्रेजों को रोकने के लिए एक ऐसे योद्धाओं की सेना बनाई गई थी, जो हर खतरे का आसानी से सामना कर सके, इन योद्धाओं का न कोई धर्म था न कोई जात थी, बस उन्हें देश की सुरक्षा करनी थी. जब अंग्रेज चले गए तब इन योद्धाओं की जरूरत भी खत्म हो गई. इन योद्धाओं की पीढ़ी 4 गांव में बंट गई. अक्सर अपने गांव का पेट पालने के लिए कभी देश की रक्षा करने वाले योद्धा स्मगलिंग का माल लूटने का काम करने लगे. इन योद्धाओं में देवरा (जूनियर एनटीआर), भैरा (सैफ अली खान), रायप्पा और कुंजारा ये चार गांवों के मुखिया भी थे. हालांकि इन सभी के लिए ज्यादातर फैसले देवरा ही लिया करता था. यानी की ‘देवरा ने कुछ मांग लिया तो समझो कह दिया. लेकिन ऐसा क्या हो जाता है कि भैरा और बाकी गांव के मुखिया देवरा के खिलाफ हो जाते हैं, ये कहानी आगे कैसे बढ़ती है? क्या पुलिस को येती मिलता है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए आपको थिएटर में जाकर जूनियर एनटीआर और सैफ अली खान की देवरा देखनी होगी.

देवरा भले ही 2 पार्ट में बंटी हो, लेकिन उसका पहला पार्ट अधूरा नहीं लगता. जिस तरह से सलार, इंडियन 2 और कल्कि के पार्ट वन देखकर लगता है कि इन फिल्मों के पार्ट 1 में सिर्फ पार्ट 2 के लिए माहौल बनाया गया है और आखिर में एक हाई पॉइंट पर लाकर फिल्म को ऐसे ही छोड़ दिया गया है, वो अधूरापन देवरा में बिलकुल नहीं है. पूरी फिल्म का पार्ट 1 एक अच्छी कहानी सुनाता है और फिर एक ऐसे हाई पॉइंट पर फिल्म खत्म हो जाती है, जहां ‘कट्टपा ने बाहुबली को क्यों मारा?’ इस सवाल की तरह ‘वारा ने देवरा को क्यों मारा?’ इस सवाल से परेशान होकर हम थिएटर से बाहर निकलते हैं.
अगर शिद्दत से कोई कहानी हमें बताई जाए, तो हम उस कहानी से जरूर कनेक्ट करते हैं. हमने तो झाड़ू पर बैठकर उड़ने वाले हैरी पॉटर को भी अपना लिया था. अब हम ‘देवरा’ में शार्क की सवारी करने वाले वारा (देवरा का बेटा जो अपने पिता की तरह दिखता है.) से भी हम कनेक्ट कर पाते हैं और इस कनेक्शन का श्रेय हमें ‘देवरा’ की कहानी शिद्दत से सुनाने वाले निर्देशक कोरताला शिवा को देना होगा.
निर्देशन और लेखन
देवरा के निर्देशन के साथ-साथ इस फिल्म की कहानी भी कोरताला शिवा की है. एक ढंग की लंबी कहानी लिखने के बाद उन्होंने दो पार्ट में ये कहानी बांटी और यही वजह है कि देवरा का पार्ट 1 देखते हुए ये कहीं पर भी महसूस नहीं होता कि हमारे साथ चीटिंग हुई है. कहानी कुछ ज्यादा अलग नहीं है, बाहुबली, सलार, दसरा, कल्कि जैसी बिग बजट साउथ की फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी अच्छाई और बुराई की लड़ाई देखने को मिलती है. अच्छाई की जीत होती है, लेकिन हीरो को इस जीत के साथ कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है. देखा जाए तो कहानी नई नहीं है. लेकिन इस कहानी को नए रंग और ढंग से पेश किया गया है. इस फिल्म में एक्शन जरूर है, लेकिन देवरा में ऐसा घिनौना वॉयलेंस नहीं है, जिसे देखकर आंखें बंद करने का मन करे. जितनी मेहनत कोरताला शिवा ने इस फिल्म पर की है, उस मेहनत में जूनियर एनटीआर और सैफ अली खान की एक्टिंग ने चार चांद लगाए हैं.
एक्टिंग
पूरी फिल्म में जूनियर एनटीआर छाए हुए हैं. जिस सफाई से उन्होंने इस फिल्म में एक्शन किया है, वो देखना किसी विजुअल ट्रीट से कम नहीं है. देवरा में तारक दो किरदारों में नजर आते हैं. एक तरफ जहां देवरा के किरदार में उन्होंने धैर्य, साहस, और शांति जैसे गुणों से सजा आदर्श व्यक्तित्व दिखाया है वहीं दूसरी तरफ वारा के किरदार में अपनी बॉडी लैंग्वेज से ये भी आसानी से दिखाते हैं कि देवरा का बेटा कितना कमजोर है. जूनियर एनटीआर के साथ भैरा का किरदार निभाने वाले सैफ अली खान ने भी अपनी भूमिका को न्याय दिया है. लेकिन उनकी एक्टिंग का कमाल हम पहले भी देख चुके हैं. आदिपुरुष में रावण और तान्हाजी में उदयभान का किरदार निभाने के बाद इस बार उनसे और ज्यादा की उम्मीद थी, क्योंकि उन्होंने ही हमारी आदत बिगाड़ी है. यही वजह है कि इस किरदार को देखने के बाद कहीं न कहीं ‘दिल मांगे मोर’ की फीलिंग रह जाती है. जान्हवी कपूर का फिल्म में कुछ खास रोल नहीं है.

कैसी है फिल्म
एनिमल, दसरा, सलार में दिखाया गया वॉयलेंस से भरा हुआ एक्शन देखने के बाद मैंने ये उम्मीद छोड़ दी थी कि साउथ फिल्मों में मुझे ढंग के एक्शन सीन देखने को मिलेंगे, जो मैं थिएटर में बैठकर पॉपकॉर्न खाते हुए एन्जॉय कर सकूं. लेकिन जूनियर एनटीआर की फिल्म में मुझे वो एक्शन देखने को मिले. इस फिल्म में भी खूब फाइट है, खून-खराबा भी है, लेकिन साथ में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है कि वो देखते हुए कुछ भी घिनौना न लगे. उदाहरण के तौर पर बात की जाए तो फिल्म में गले पर तलवार से वार करने के बाद का घाव जरूर दिखाया गया है, लेकिन बिना वजह इस घाव से खून की नदियां बहती हुई नहीं नजर आ रही हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात इस एक्शन के पीछे एक सही वजह है, ऐसी बात नहीं है कि हाथ में हथियार लिए हीरो या विलेन सब एक-दूसरे को मारने लगें.
लाल सागर हो या इस सागर के इर्द-गिर्द बसा हुआ गांव या समंदर के बीच के शॉट्स हों, आर. रत्नावेलु की सिनेमेटोग्राफी कमाल की है और साथ ही देवरा पर काम करने वाली वीएफएक्स की टीम की भी यहां तारीफ करनी होगी. समंदर के अंदर फिल्माया गया ज्यादातर एक्शन बिना वीएफएक्स के अधूरा था. लेकिन इस टीम ने देवरा के समंदर के अंदर वाले एक्शन पर कुछ इस तरह से काम किया है कि वो देखकर हमें सीधे हॉलीवुड की याद आ जाती है. इसके अलावा स्मगल किए हुए बड़े-बड़े कार्टन समंदर के अंदर से लेकर जाने वाले सीन, देवरा का उसकी चेतावनी के बावजूद चोरी का काम करने वाले की पीठपर निशान बनाना जैसे कई ऐसे सीन फिल्म में हैं, जिसपर वीएफएक्स का कमाल का काम हुआ है.
हालांकि इस फिल्म में भी ऐसी कुछ चीजें हैं, जो साउथ की फिल्मों में अक्सर नजर आती हैं और उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. हीरो का ग्लोरिफिकेशन करते हुए अक्सर यहां के मेकर्स महिलाओं को कमजोर दिखाते हैं. एस एस राजामौली जैसा अपवाद ही यहां देखने को मिलता है, जो अपनी फिल्म में बाहुबली के साथ देवसेना, अवंतिका और शिवगामी जैसे एक नहीं तीन-तीन ऐसे महिला किरदार दिखाने की हिम्मत करता है, जो वक्त आने पर किसी भी मर्द से दो-दो हाथ कर पाएं. जूनियर एनटीआर की फिल्म से भी मुझे ये उम्मीद थी, लेकिन ‘संग्राम का समय हो गया है, औरतें और बच्चे चले जाएं’ जैसे डायलॉग निराश करते हैं.
जब देवरा की बेटी को गुंडे छेड़ते हैं, तब उसकी मां कहती है कि इस पहाड़ पर ऐसा कोई नहीं पैदा हुआ जो देवरा की बेटी को छू सके, लेकिन दूसरे ही पल वो अपनी बेटी को ये कहती है कि अगर ऐसा कुछ हो जाए, तो उनके हाथ लगाने से पहले हम जहर खाकर अपनी जान दे देंगे, पूरे गांव का ख्याल रखने वाले देवरा की बेटी और बहन का ये कमजोर रूप हजम नहीं होता.
देखें या न देखें
बाकी देवरा कमाल की फिल्म है. मुझे तो उम्मीद से दोगना मिल गया. फिल्म के पार्ट वन के नाम पर इंटरवल तक बोरिंग कहानी सुनाने वालों को कोरताला शिवा की फिल्म से बहुत कुछ सीखना चाहिए. बिना घिनौने हिंसक सीन के एक्शन देने के लिए मेरी तरफ से एक एक्स्ट्रा स्टार और क्लाइमैक्स के लिए स्टैंडिंग ओवेशन. सोचा नहीं था कि ‘कट्टपा ने बाहुबली को क्यों मारा’ सवाल से भी अच्छी कोई एंडिंग हो सकती है, लेकिन जूनियर एनटीआर की फिल्म ‘देवरा’ ने बता दिया कि इससे भी बड़ा झटका देने वाली एंडिंग वो दिखा सकते हैं, जो आपको पार्ट 2 का बेसब्री से इंतजार करने के लिए मजबूर कर देती है.
फिल्म : देवरा
निर्देशक : कोराताला सिवा
एक्टर्स : जूनियर एनटीआर, सैफ अली खान, जान्हवी कपूर, प्रकाश राज, श्रुति मराठे और तल्लूरी रामेश्वरी
रिलीज : थिएटर
रेटिंग : ****

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