तबाही, खंडहर, लाशें और विनाश…रूस-यूक्रेन ने दो साल की जंग में क्या पाया और क्या गंवाया?

“मैंने फैसला ले लिया है, हम स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन करने जा रहे हैं, हमारे इस ऑपरेशन में अगर कोई भी दखल देने की कोशिश करता है तो फिर रूस भी उसी लहजे में जवाब देखा, आपको इस हस्तक्षेप की कीमत चुकानी होगी, ऐसे नतीजे भुगतने होंगे जो आपने पहले कभी महसूस न किया हो.” 24 फरवरी ही तारीख थी, जब दो साल पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ये ऐलान किया और दुनिया अवाक रह गई. रूसी सेना यूक्रेन में दाखिल होने लगी, दुनिया के शेयर बाजार औंधे मुंह गिर पड़े, कच्चे तेल के दाम आसमान पर जा पहुंचे, यूक्रेनी लोगों की चीख-पुकार हर ओर गूंजने लगी.

रूस ने जिसे स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन (विशेष सैन्य कार्रवाई) कहा, दुनिया ने उसे ऐलान-ए-जंग समझा. टैंक, गोले, बम-बारूद विध्वंस के सामान हैं, मगर आकर्षित करते हैं. कुछ मीडिया के कैमरे दोनों खेमों के सैन्य साजोसामान दिखाने तो इस युद्ध की मानवीय त्रासदी दिखाने यूक्रेन रवाना हुए. समय बीतता गया, युद्ध खिंचा और लोगों का भी ध्यान उस ओर कम जाने लगा, मगर ऐसा नहीं कि हालात बदल गए.

हर तरफ तबाही का मंज़र, खंडहर और वीरान हो चुके शहर, दिल दहला देने वाला मानवीय संकट बदस्तूर जारी रहा. एक ओर आज भी रूसी सेना यूक्रेन के सामने डटी हुई है, तो यूक्रेनी अपने मुल्क की लकीर बचाए रखने की जद्दोजहद कर रहे. युद्ध जब शुरू हुआ था तो माना जा रहा था कि रूस जल्द ही यूक्रेन को घुटने टेकने पर मजबूर कर देगा, लेकिन यूक्रेनी सेना ने जंग के कई मोर्चे पर रूस को शिकस्त दी. कई इलाकों से रूसी सेना को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा. आज युद्ध के दो साल बाद हालात थोड़े अलग हैं. रूसी सेना फ्रंटफुट पर है और कीव हथियारों की भारी कमी से जूझ रहा है.

यूक्रेनी सैनिकों का मनोबल टू़टता नजर आ रहा है. हजारों औरतें, विधवा और बच्चे, अनाथ हो चुके हैं. 40 लाख से ज्यादा यूक्रेनी लोग देश छोड़ने को मजबूर हुए. वहीं 65 लाख से ज्यादा नागरिक देश में ही विस्थापित हैं. दूसरे विश्व युद्ध के बाद यह सबसे बड़ा शरणार्थी संकट है. 3,00,000 यूक्रनी सैनिक अब भी डटे हैं, लेकिन थके हुए और तेजी से कमजोर होते जा रहे हैं. वहीं मॉस्को ने हाल के महीनों में छोटी-मोटी बढ़त हासिल की है और इसी महीने यूक्रेन के अहम पूर्वी अवदीवका शहर पर कब्ज़ा करके बड़ी जीत का दावा किया है. आज की इस स्टोरी में हम समझने की कोशिश करेंगे कि दो साल बाद इस जंग का क्या भविष्य नजर आता है? दो सालों में किसने क्या पाया, और क्या गंवा दिया है.

यूक्रेन ने दो सालों में क्या-क्या झेला?

करीब 4.30 करोड़ की आबादी वाले यूक्रेन के 1.76 करोड़ यूक्रेनी लोगों को राहत सामाग्री के भरोसे रहना पड़ रहा है. रूस अभी भी यूक्रेन के 18 फीसदी हिस्से पर काबिज़ है. अवदीवका शहर पर कब्जे की खबर राष्ट्रपति पुतिन के लिए तो काफी अहम मानी जा रही है, लेकिन इस शहर के रूसी हाथों में जाने से यूक्रन की कई कमियां भी बाहर आ गई हैं. सबसे बड़ी कमी तो ये कि रूस के बड़े आक्रमण को रोकने के लिए यूक्रेन पर्याप्त हथियारों और मैनपावर की भारी किल्लत से जूझ रहा है. कमी से उबरने के लिए यूक्रेन सरकार ने सेना में भर्ती होने की उम्र घटाने का प्रस्ताव रखा है. कई लोग इसका विरोध कर रहे हैं.

यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर ज़ेलेंस्की ने इस साल म्यूनिख में एक वैश्विक सुरक्षा सम्मेलन में यह मुद्दा भी उठाया था. उन्होंने अवदीवका में रूसी सेना को धूल चटाने के लिए अपने सैनिकों की प्रशंसा की बताया कि हथियारों की कमी ने ही आवदीव्का में यूक्रेन के पीछे हटने में सीधा योगदान दिया है. पश्चिमी देशों ने साल 2022 में एकजुटता का जो प्रदर्शन किया था, वो 2023 तक जारी था लेकिन अब इसमें कमी आनी शुरू हो गई है.

मसलन यूक्रेन को हथियार मुहैया कराने में अमेरिका सबसे आगे है क्योंकि वह बड़े पैमाने पर और तेज़ी के साथ उपलब्ध करा सकता है. यूक्रेन के लिए सहायता समेत 95 अरब डॉलर का पैकेज अमेरिका में अभी भी पास नहीं हो पाया है और अन्य सहयोगी इस गैप को भरने में संघर्ष कर रहे हैं. मतलब यह है कि यूक्रेनियों को संभल कर गोला बारूद खर्च करना पड़ रहा है. जवाहरलाल यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर अमिताभ सिंह कहते हैं, ”यूक्रेन ने पश्चिमी देशों की बदौलत ही युद्ध लड़ा था और अब लड़खड़ाती पश्चिमी मदद की वजह से उसका मनोबल डगमगा गया है और अगर सहायता मिलने में ढील ऐसी ही चलती रही तो यूक्रेन युद्ध में लंबा नहीं टिक पाएगा.’

रूस की अर्थव्यवस्था फलफूल रही है

अमेरिका ने 23 फरवरी 2024 को रूस की 500 नई रूसी कंमपनियों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. ये रूस के विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी की मौत में रूस की भूमिका के लिए किया गया है. यह तो रूस पर नए प्रतिबंधों की बात हुई, लेकिन इनसे पहले ही रूस पर 16,000 से ज्यादा सैंक्शन लग चुके हैं. स्टैटिस्टा के डेटा के मुताबिक, रूस दुनिया में इतने सैंकशन झेलने वाला पहला देश है, लेकिन बावजूद इसके रूस अपनी अर्थव्यवस्था को पश्चिमी प्रतिबंधों से बचाने में सक्षम रहा है. आज, रूसी अर्थव्यवस्था फलफूल रही है. यह ऐसी चीज़ है जिसकी पश्चिम ने उम्मीद तो नहीं की थी.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ ने जब रूस की अर्थव्यवस्था की विकास दर का पूर्वानुमान 1.1 फ़ीसदी से बढ़ाकर 2.6 फ़ीसदी किया, तो इससे रूसी अर्थव्यवस्था की ताकत भी उजागर हुई. आईएमएफ़ के आंकड़ों के मुताबिक, रूस की अर्थव्यवस्था बीते साल सभी जी-7 देशों की तुलना में तेज़ी से बढ़ी और 2024 में भी यही स्थिति रहेगी. रूसी तेल, गैस और हीरे से मिलने वाली विदेशी मुद्रा ने भी गिरते रूबल को संभालने में मदद की है.

पर रूस के सैनिक भी बुरी हालात में है

यूक्रेनी अधिकारियों के मुताबिक, उनके सशस्त्र बलों की संख्या लगभग 800,000 है. लाखों मारे गए है. लेकिन रूसी सैनिक भी बुरी हालत में हैं. स्वतंत्र आउटलेट मीडियाज़ोना के मुताबिक, फरवरी 2022 से यूक्रेन में फ्रंटलाइन पर लड़ रहे लगभग 45,000 रूसी मारे गए हैं. यह अफगानिस्तान पर एक दशक लंबे कब्जे के दौरान रेड आर्मी के नुकसान का तीन गुना है, लेकिन इस कमी को दूर करने के लिए आदेश जारी किया है, जिसमें रूस की तरफ से लड़ने वाले विदेशी लोगों को रूस की नागरिकता देने का प्रस्ताव दिया है. रूस अपनी जीडीपी का 7.1 फीसदी सिर्फ युद्ध पर खर्च कर रहा. पिछले साल दिसंबर में पुतिन ने रूस की सेना को 170,000 सैनिकों से बढ़ाकर 13 लाख करने का आदेश दिया था. फिर भी, मैनपावर के मामले में रूस के पास यूक्रेन की तुलना में अधिक संसाधन हैं और युद्ध से हुए नुकसान को लॉन्ग रन में सह सकता है.

इस युद्ध का क्या अंत नहीं है?

यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस का एक सर्वे कहता है कि अधिकांश यूरोपीय लोग रूस के खिलाफ युद्ध में यूक्रेन का समर्थन करते हैं, लेकिन 10 में से सिर्फ 1 को लगता है कि यूक्रेन जीत सकता है. अधिकांश लोग मानते हैं समझौता करना ही इस संघर्ष को खत्म करेगा. कुछ लोग यूक्रेन की रूस के साथ बातचीत करने के बजाय जवाबी कार्रवाई का समर्थन भी करते हैं.

प्रोफेसर अमिताभ सिंह जंग के भविष्य पर कहते हैं, ”युद्ध तब तक नहीं खत्म होगा जब तक सुलह के रास्ते नहीं तलाशे जाएंगे. और फिलहाल ऐसी कोई संभावनाएं नज़र नहीं आती. दोनों देशों ने एक मैक्सीमिलिस्ट पोजिशन लिया है, यूक्रेन कब्जे में लिए गए शहर वापस चाहता है तो रूस उसे देने को तैयार नहीं है. वेस्ट भी ऐसी स्थिति में नहीं है कि यूक्रन को कह सके कि जो हुआ सो हुआ अब रूस से दोस्ती कर लो. नतीजन अनिश्चितता की स्थिति बनी रहेगी. बहुत संभावनाएं है कि युद्ध फ्रोजन कॉन्फ्लिक्ट में तब्दील हो जाए यानी शिथिल पड़ जाए. जब तक कुछ बड़ा डेवलपमेंट ना हो जाए.”

जेएनयू में प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं कि, ”कुछ समय तक तो मानकर चलिए कि जंग बरकार ही रहेगा. और जिस तरह गोला बारूद के लिए यूक्रेन पश्चिमी देशों पर निर्भर है अगर मदद पहुंचाने ढिलाही चलती गई तो जो इलाके अभी यूक्रेन के कंट्रोल में है उसे रूस के हाथों जाने में ज्यादा देर नहीं लगेगी”.

अमिताभ सिंह बताते हैं कि, ”आर्थिक-राजनीतिक स्तर पर परिवर्तन तय करेगा कि युद्ध किस तरफ जाएगा. अगर पश्चिम यूरोप के देशों में आर्थिक कठिनाइयां बढ़ी तो लोगों का ध्यान युद्ध से हटेगा. डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति बनने की संभावनाओं ने आशंका जताई है कि क्या वो रूसी हमलों की स्थिति में यूरोप के साथ खड़े होंगे?”

ट्रम्प यूक्रेन को अमेरिकी सैन्य मदद देने के खिलाफ है. वो नेटो को उतना भाव भी नहीं देते. यूरोपीय संघ और यूक्रेन के लिए ट्रम्प की जीत से बुरा शायद ही कुछ होगा. यह बात 10 फरवरी को उस समय साबित हुई जब ट्रम्प ने कहा कि उनके लीडरशिप में अमेरिका नाटो के ऐसे सदस्य देश का बचाव नहीं करेगा जो अपने जीडीपी का दो फीसदी से भी कम हिस्सा रक्षा पर खर्च करता हो. इसके उलट उन्होंने जोर देकर कहा कि वह रूस से कहेंगे कि वह जो करना चाहता है करे. अगर राष्ट्रपति जो बाइडेन चुनाव जीतते हैं तो तभी यूरोप को अमेरिका का साथ मिलेगा.

पुतिन का कद युद्ध की वजह से बढ़ा?

स्टैटिस्टा रिसर्च डिपार्टमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2024 में, दस में से आठ प्रतिशत से अधिक रूसियों ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के काम करने के तरीकों का समर्थन किया. लोकप्रियता का स्तर सितंबर 2022 की तुलना में आठ प्रतिशत ज्यादा था. जेएनयू में प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं कि ”फिलहाल, पुतिन की पॉप्यूलैरिटी बरकार है. रूसी नागरिक पुतिन को दो वजहों से सपोर्ट कर रहे हैं, पहला तो यही कि दो साल के युद्ध के बाद भी इकॉनमी कोलैप्स नहीं हुई है, सैन्य रोजगार को बढ़ावा मिला है और दूसरा ये कि इस वक्त युद्ध पर रूस की पकड़ बनी हुई है. जनता इन नए-नए आर्थिक अवसरों का आनंद ले रही है. और ये बात दीगर है कि इस चुनाव में भी पुतिन का जीतना लगभग तय है. क्योंकि पुतिन के रूस में उनके अलावा कोई विकल्प नहीं है, असहमति अब कोई विकल्प नहीं है”.

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