व्‍यास के तहखाने में देर रात पूजा के बाद UP पुलिस अलर्ट, छावनी में तब्‍दील ज्ञानवापी मस्जिद परिसर

जिला अदालत के आदेश के बाद ज्ञानवापी मस्जिद के सीलबंद व्‍यास के तहखाने में बुधवार देर रात कड़ी सुरक्षा के बीच पूजा अर्चना की गई। इसके बाद से यूपी पुलिस अलर्ट मोड पर है। बनारस में पुलिस अफसरों को फुट पेट्रोलिंग के निर्देश दिए गए हैं। सोशल मीडिया पर अफवाहों और आपत्तिजनक पोस्ट का खंडन कर कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं। आधी रात को हुई पूजा में व्‍यास के तहखाने में सिर्फ 5 लोग मौजूद थे। बनारस के कमिश्‍नर कौशल राज शर्मा, एडीएम प्रोटोकॉल, विश्‍वनाथ मंदिर के मुख्‍य पुजारी ओम प्रकाश मिश्रा और अयोध्‍या में रामलला प्राण प्रतिष्‍ठा का शुभ मुहूर्त निकालने वाले गणेश्‍वर द्रविण इनमें शामिल हैं। पूजा के बाद कुछ लोगों को चरणामृत और प्रसाद भी दिया गया।

गौरतलब है कि व्‍यास के तहखाने में 1993 तक पूजा होती थी, लेकिन नवंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इसे बंद करा दिया था। साथ ही पूजा करने वाले पुजारियों को हटा दिया गया था। अब 31 साल बाद तहखाने में दीप जले हैं। हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन का कहना है कि भगवान नंदी जहां पर विराजमान हैं, उसके ठीक सामने व्यास परिसर का तहखाना है। मंगलवार रात करीब 12 बजकर 30 मिनट पर पूजा शुरू हुई। सबसे पहले गंगा जल से तहखाने का शुद्धिकरण किया गया।

ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में 1993 से पहले सोमनाथ व्यास पूजा-पाठ किया करते थे। तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार में इसे बंद करवा दिया गया था। साल 2020 में सोमनाथ के निधन के बाद उनकी बेटी उषा रानी के बेटे शैलेंद्र व्यास ने कोर्ट में याचिका दाखिल करके पूजा का अधिकार मांगा। हिंदू पक्ष की दलील थी कि व्‍यास परिवार 1993 तक तहखाने में पूजा-पाठ करता रहा था। राज्‍य सरकार के आदेश पर पूजा-पाठ बंद किया गया था। ऐसे में व्‍यास तहखाने में पूजा-पाठ करने के लिए आने-जाने दिया जाए।

मुस्लिम पक्ष ने वक्फ की संपत्ति बताया

ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमिटी ने तहखाने में पूजा-पाठ की अनुमति देने संबंधी अर्जी का विरोध किया और कहा कि व्‍यास तहखाना मस्जिद का हिस्‍सा और वक्‍फ बोर्ड की संपत्ति है। पूजा स्‍थल अधिनियम के तहत भी तहखाने में पूजा-पाठ की अनुमति नहीं दी जा सकती। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि फैसले से मायूसी जरूर है, लेकिन अभी ऊपरी अदालतों का रास्ता खुला है। ज्ञानवापी का मामला अयोध्या के मसले से अलग है।

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