यूरोप हुआ ‘जीरो’, उलझे हैं रूस, अमेरिका… फिर भी मौज काटेगा भारत, $5 ट्रिलियन का पक्‍का बंदोबस्‍त!

दुनिया पूरी तरह से फंसी हुई है। ‘महाशक्तियां’ महायुद्ध को दावत देने में लगी हैं। रूस-यूक्रेन का युद्ध खत्‍म होने का नाम नहीं ले रहा है। उधर, इजरायल और हमास में छिड़ी जंग क्षेत्र के अन्‍य देशों को भी अपनी जद में ले रही है। हालात कितने खराब हैं इसका अंदाजा यूरोप की आर्थिक रफ्तार से कुछ-कुछ लग जाता है। यूरोप की आर्थिक विकास दर दिसंबर तिमाही में भी शून्य रही। एक साल से ज्‍यादा बीत चुका है। यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्‍था में जान आ ही नहीं रही है। ईंधन के बढ़े हुए दाम, कर्ज महंगा होने और यूरोप की प्रमुख अर्थव्यवस्था जर्मनी में सुस्ती होने से ऐसे हालात बने हैं। अमेरिका ने भी दूसरों से पचड़ों में खुद को उलझा रखा है। चीन की टशन दुनिया को उसका दुश्‍मन बना रही है। तमाम विदेशी कंपनियां वहां से अपने कारोबार शिफ्ट करने में जुटी हुई हैं। इन सारी उठापटक में भारत सबसे महफूज दिख रहा है। जब दुनिया झंझावातों में उलझी हुई है भारत तीन साल में 5 ट्रिलियन डॉलर का पक्‍का बंदोबस्‍त बनाकर बैठ गया है। बेशक, इस राह में चुनौतियां हैं। लेकिन, इन चुनौतियों से निपटने के भारत के पास पुख्‍ता इंतजाम हैं।

सरकार ने सेट क‍िए हैं बड़े टारगेट

भारत की आर्थिक विकास दर आने वाले सालों में 7 फीसदी से ज्‍यादा रहने का अनुमान है। वित्त मंत्रालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। यह अनुमान कई चीजों पर आधारित है। इनमें मजबूत घरेलू मांग, निजी निवेश में बढ़ोतरी और सरकार खर्च शामिल हैं। ग्‍लोबल अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता और महंगाई जैसी कुछ चुनौतियां भी हैं। लेकिन, भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था इन चुनौतियों से निपटने के लिए मजबूत स्थिति में है। जिस समय दुनिया ने उधेड़बुनों की अंधी राहों पर दौड़ लगा दी है। भारत सपने संजो रहा है। 3 साल में उसने 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बन जाने की संभावना जाहिर कर दी है। यह उसे दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकनॉमी बना देगा। वहीं, 2030 तक भारत की अर्थव्‍यवस्‍था 7 ट्रिलियन डॉलर की बन जाने की उम्मीद है। युवा आबादी, बढ़ता मध्यम वर्ग, घरेलू मांग में बढ़ोतरी, डिजिटल अर्थव्यवस्था का बढ़ता दायरा और अनुकूल सरकारी नीतियां उसके साथ हैं।

दूसरी तरफ आपको यूरोप के दर्शन कराते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि 2024 में भी यूरोप के लिए हालात बेहतर होने की संभावना कम ही है। जनवरी में लाल सागर से होने वाले समुद्री व्यापार के आतंकी हमलों से प्रभावित होने का असर भी यूरोपीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। वैसे, यूरोपीय देशों में बेरोजगारी के निचले स्तर पर होना थोड़ी राहत देता है। 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से ही यूरोपीय अर्थव्यवस्था लगातार मुश्किलों से घिरी हुई है। अब भी कोई नहीं जानता कि यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध कब खत्‍म होगा। यूरो करेंसी इस्तेमाल करने वाले 20 देशों में जुलाई, 2022 के बाद से ही आर्थिक रफ्तार बहुत सुस्त है। जुलाई-सितंबर, 2022 की तिमाही में यूरोप की अर्थव्यवस्था 0.5 फीसदी की दर से बढ़ी थी।

जंग-ए-जुनून में फंस गया है म‍िड‍िल-ईस्‍ट

गाजा में चल रहा इजरायल और हमास युद्ध दिन-ब-दिन जटिल होता जा रहा है। इसकी आंच दूसरे देशों तक पहुंच गई है। ईरान भी उनमें शामिल है। इसके कारण पूरा मिडिल ईस्‍ट इसमें फंसता दिख रहा है। मिडिल ईस्ट अपनी रणनीतिक भौगोलिक स्थिति के कारण महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र तेल और गैस जैसे महत्वपूर्ण ऊर्जा संसाधनों का भंडार है। दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए यह क्षेत्र व्यापार और परिवहन का अहम मार्ग भी है।

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