Exit Poll: उत्तर प्रदेश में क्या अकेले चुनाव लड़ने का फैसला मायावती को महंगा पड़ा?

लोकसभा चुनाव-2024 के लिए उम्मीदवारों की किस्मत EVM में कैद हो चुकी है. कौन किस सीट पर जीत रहा, केंद्र में किसकी सरकार आ रही है, ये 4 जून को नतीजे घोषित होने के बाद साफ हो जाएगा. लेकिन उससे पहले टीवी9-People’s Insight और POLSTRAT का एग्जिट पोल जनता के बीच आ चुका है. एग्जिट पोल के मुताबिक, NDA को 346 सीटें मिलने का अनुमान है. अकेले बीजेपी 311 सीट जीत सकती है. वहीं, इंडिया गठबंधन को 162 सीटें मिलने का अनुमान है. एग्जिट पोल के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर मजबूत स्थिति में दिख रही है और वो 62 सीटों पर दर्ज कर सकती है. देश के सबसे बड़े राज्य में सपा और कांग्रेस को भी फायदा होता दिख रहा है. लेकिन मायावती की बहुजन समाज पार्टी को यहां सबसे ज्यादा घाटा होने का अनुमान है.
2019 के चुनाव में बसपा जहां 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, इस बार उसके खाते में एक भी सीट नहीं आने का अनुमान है. यानी यूपी से लोकसभा में बसपा का एक भी सांसद नहीं होगा. एग्जिट पोल के आंकड़ों से साफ है कि मायावती को अकेले लड़ना महंगा पड़ा है. चुनाव से पहले ही मायावती ने साफ कर दिया था कि वो इस बार किसी के साथ नहीं जा रही हैं. उनका ये फैसला पार्टी के लिए घातक साबित होता दिख रहा है.
2019 में सपा के साथ थी बसपा
2019 के चुनाव में मायावती सपा के साथ थीं. कुछ हद तक माया और अखिलेश की जोड़ी असरदार भी दिखी थी. दोनों मिलकर 15 सीटों पर जीत दर्ज किए थे. एक तरफ मायावती को अकेले जाना महंगा पड़ता दिख रहा है तो सपा को कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का फायदा हो सकता है. सपा 2019 के चुनाव में जहां 5 सीटें जीती थी तो इस बार के चुनाव में उसे 6 सीटों का फायदा हो सकता है. वो 11 सीटों पर दर्ज कर सकती है.
चुनाव से पहले बसपा के प्रमुख नेताओं ने दावा किया था यह पार्टी के पुनरुद्धार की रणनीति का हिस्सा है. बसपा आलाकमान जाहिर तौर पर आम लोगों को यह संदेश देना चाहता है कि पार्टी 2022 के विधानसभा चुनावों में सिर्फ एक सीट जीतने के बाद कुछ हद तक हतोत्साहित है, लेकिन वो अभी भी अकेले लड़ने में सक्षम है.
क्या वोटर्स का दिमाग नहीं पढ़ पाईं मायावती
बसपा का ये मानना था कि दलित उसके साथ ही हैं. पार्टी के ही एक नेता ने चुनाव से पहले कहा था कि दलित कहीं नहीं गया है. मुसलमान को गुमराह किया गया. पिछड़ों को भी गुमराह किया गया. अब हर कोई महसूस कर रहा है कि बसपा एक बेहतर विकल्प है. दलित ही नहीं बसपा ने विधानसभा चुनाव के बाद मुसलमानों को अपने पाले में लेने की कोशिश की थी. विधानसभा चुनाव में बसपा का वोट शेयर करीब 13 प्रतिशत था. विधानसभा चुनाव के बाद मायावती ने कहा था कि मुसलमानों की मौजूदा स्थिति के लिए सपा जिम्मेदार है. लेकिन एग्जिट पोल के बाद लगता है कि मायावती वोटर्स का दिमाग पढ़ने में फेल हो गईं.
जानकारों की मानें तो मायावती को लगता था कि मुसलमान और दलित फिर से उनके पाले में आएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बसपा के नुकसान से ही सपा को फायदा हुआ है. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि आप देखिए बसपा को 10 सीटों का नुकसान हो रहा है, लेकिन सपा को 5 और कांग्रेस को 3 सीटों का फायदा हो रहा है. इससे लगता है कि ये बसपा के वोटर्स बंट गए. वे खुलकर किसी एक पार्टी के लिए वोट नहीं दिए.

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