Explained:अमेरिका और भारत में कौन मारेगा बाजी, कहां पहले कम होगा लोगों का EMI का खर्चा?
देश में महंगाई को कंट्रोल करने के लिए केंद्रीय बैंक रेपो रेट की दर तय करते हैं. इसका असर ये होता है कि मार्केट में मनी फ्लो कम होता है और धीरे-धीरे महंगाई नीचे आने लगती है. लेकिन इस समय दुनिया के हालात थोड़े अलग हैं. अमेरिका हो या भारत दोनों जगह के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ब्याज दरों में कटौती से परहेज किया हुआ है. वहीं महंगाई अब भी अपने चरम पर बनी हुई है. अब सवाल ये है कि दोनों देश में कहां के लोगों को पहले सस्ती ईएमआई की सौगात मिलने वाली है?
केंद्रीय बैंक की रेपो रेट बैंकों की पूंजी की लागत तय करती है. इसी के आधार पर बैंक अपने ग्राहकों को बांटे जाने वाले लोन पर वसूले जाने वाले ब्याज की दर तय करते हैं. अब भारत में तो आरबीआई ने करीब डेढ़ साल से रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है. जबकि अमेरिका में फेडरल रिजर्व ने भी इसे लगातार 8वीं बार 5.25 से 5.50 प्रतिशत के बीच फिक्स रखा है.
अमेरिका में अगले महीने कटौती के संकेत
फेडरल रिजर्व ने हाल में अपनी मौद्रिक नीति पेश की थी. 31 जुलाई को फेडरल ओपन मार्केट कमेटी की बैठक समाप्त हुई और केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखा. ये बीते 23 साल में अमेरिका में नीतिगत ब्याज दरों की सबसे ऊंची दर है.
हालांकि फेडरल रिजर्व के चीफ जेरोम पॉवेल ने इस बात के संकेत दिए है कि अगले महीने यानी सितंबर में ब्याज दरों में कटौती की जा सकती है. इस बात को इससे भी मजबूती मिलती है कि नीतिगत दरों की घोषणा के कुछ दिन बाद ही अमेरिका में मंदी के आंकड़े सामने आए हैं.
क्या RBI पहले ही देगा राहत?
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति की बैठक 8 अगस्त को समाप्त हुई और उसने भी ब्याज दरों को 6.5 प्रतिशत पर फिक्स रखा है. ये 25 साल में पहली बार है जब आरबीआई ने इतने लंबे समय तक (लगातार 9वीं बार) ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है.
अब आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक अक्टूबर में होनी है. तब संभव है कि फेडरल रिजर्व के रुख को देखते हुए आरबीआई ब्याज दरों में कमी करे. लेकिन आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति का ऐलान करते हुए देश में फूड इंफ्लेशन के ऊंचाई पर रहने को लेकर चिंता जताई है. ऐसे में ये देखना होगा कि क्या आरबीआई ब्याज दरों में कटौती कर पाता है या नहीं. वैसे ये कटौती 3 फैक्टर्स पर निर्भर करेगी.
इन 3 फैक्टर्स पर निर्भर करेगी ब्याज दर में कटौती
अमेरिका हो या भारत दोनों ही जगह पर इस समय ब्याज दर में कटौती को लेकर एक बड़ी जरूरत महसूस की जा रही है. वहीं दोनों ही देशों के लिए इस पर फैसला लेना इन 3 फैक्टर्स पर निर्भर करेगा.
महंगाई : भारत में रिटेल महंगाई दर जून में 5.08 प्रतिशत पर रही है. जबकि मई में ये 12 महीने के निचले स्तर यानी 4.75 प्रतिशत पर पहुंच गई थी. वहीं जून में फूड इंफ्लेशन 9.36 प्रतिशत पर ही है. मई में ये भी 8.69 प्रतिशत थी.
दूसरी तरफ अमेरिका में इंफ्लेशन लगातार तीसरे महीने नरम पड़ी और फिर जून 2024 में फिर उम्मीद से कम ही बढ़ी. ऐसे में अमेरिका में ब्याज दर में कटौती की संभावना ज्यादा बलवती है.
जीडीपी ग्रोथ : भारत की जीडीपी ग्रोथ जनवरी-मार्च तिमाही में 7.8 प्रतिशत रही है. जबकि आरबीआई ने 2024-25 में इसके 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है. अमेरिका में भी जीडीपी ग्रोथ बेहतर हो रही है. अप्रैल-जून तिमाही में ये 2.8 प्रतिशत रही है.
जीडीपी ग्रोथ में तेजी का मतलब है कि आम आदमी का हाथ खुल रहा है. वह मार्केट में खरीदारी को बढ़ा रहा है. इस तरह ये देश में फेवरेवल इकोनॉमिक हालात को दिखाता है.
बेरोजगारी : CMIE के मुताबिक भारत में बेरोजगारी दर जून में बढ़कर 9.2 प्रतिशत हो गई. ये जून 2023 के 8.5 प्रतिशत के मुकाबले अधिक है. जबकि मई 2024 में ये दर 7 प्रतिशत थी. अमेरिका में भी बेरोजगारी की दर जुलाई 2024 तें बढ़ी है और हायरिंग की दर घटी है. ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिसटिक्स के मुताबिक सिर्फ 1.14 लाख जॉब्स ही जून में पैदा हुईं, जबकि जून में इनकी संख्या 2.06 लाख थी.