Explainer : आखिर डाबर को क्यों भाया कोका-कोला, क्या है बॉटलिंग कारोबार का गणित?
इस बात को एक महीना भी नहीं हुआ है, जब ये खबर आई थी कि अमेरिका की कंपनी कोका-कोला भारत में अपनी सब्सिडियरी ‘हिंदुस्तान कोका-कोला बेवररेजेस'(HCCB) की वैल्यू को अनलॉक करना चाहती है. तब उसकी बातचीत देश के 4 बड़े कारोबारी घराने डाबर ग्रुप, जुबिलेंट फूड वर्क्स, पिडिलाइट इंडस्ट्रीज और एशियन पेंट्स से चल रही थी. लेकिन डाबर और जुबिलेंट के पास फूड एंड बेवरेजेस इंडस्ट्री में काम करने का अनुभव है, तो अब ये तय माना जा रहा है कि कोका-कोला की ये डील इन दोनों ग्रुप के साथ हो सकती है. लेकिन डाबर और जुबिलेंट की कोका-कोला की बॉटलिंग करने में ऐसी क्या दिलचस्पी हो सकती है? चलिए समझते हैं…
पेप्सी की राह पर कोका-कोला
कोका-कोला और पेप्सिको कहने को तो एक दूसरे की राइवल कंपनी हैं, लेकिन कहीं ना कहीं ये दोनों कंपनी ये भी सुनिश्चित करती हैं कि सॉफ्टड्रिंक के मार्केट में कोई तीसरा प्लेयर एंट्री ना करें. हालांकि अब दोनों ही कंपनियों को भारत में डेवलप हो रहे लोकल या D2C ऑनलाइन ब्रांड से तगड़ा कॉम्प्टीशन मिल रहा है.
वहीं रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपने ‘कैम्पा-कोला’ को खरीदकर चुनौती देने का मन बना ह रखा है. इस बीच कोका-कोला चाहती है कि वह भारत में खुद को बॉटलिंग से अलग करके और सिर्फ मार्केटिंग पर फोकस रखे. इस काम को उसकी राइवल पेप्सिको काफी पहले ही कर चुकी है.
कोका-कोला की सब्सिडियरी एचसीसीबी ने 1997 में अपना ऑपरेशन शुरू किया. अभी कंपनी 62 तरह के बेवरेजेस की बॉटलिंग करती है. इसकी देशभर में करीब 16 फैक्टरी हैं. वित्त वर्ष 2022-23 में कंपनी का प्रॉफिट ही करीब 810 करोड़ रुपए का रहा है.
जनवरी 2024 में कंपनी ने अपने को एसेट लाइट करना शुरू किया, जिसके चलते बिहार, राजस्थान, पूर्वोत्तर भारत और पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में अपने बॉटलिंग बिजनेस को वहीं के स्थानीय इंडिपेंडेंट बॉटलर्स को बेच दिया.
जबकि पेप्सिको भारत में अपनी बॉटलिंग का पूरा कारोबार वरुण बेवरेजेस के हाथ में दे चुकी है. इस बॉटलिंग की बदौलत ही वरुण बेवरेजेस की लिस्टिंग के दौरान इसके शेयर को जबरदस्त बढ़त मिली और इसके मालिक रवि जयपुरिया आज भारत के चुनिंदा अरबपतियों में शामिल हैं. यानी कोका-कोला के सामने पेप्सिको की सफलता का उदाहरण सामने है.
डाबर और जुबिलेंट की क्यों है दिलचस्पी?
डाबर, बेवरेजेस मार्केट में पहले से ‘रीयल’ जूस ब्रांड के साथ मार्केट में है. वहीं जुबिलेंट फूड के पास डोमिनोज, डंकिन डोनट जैसी रेस्टोरेंट चेन है. अगर इन दोनों कंपनियों के हाथ में कोका-कोला की बॉटलिंग आती है, तो इनके पास अपना बिजनेस नेटवर्क तो होगा ही.
वहीं इन्हें कोका-कोला के डिस्ट्रीब्यूटर नेटवर्क तक भी पहुंच मिलेगी. इससे दोनों कंपनियों को अपना प्रॉफिट मार्जिन बढ़ाने के साथ-साथ नेटवर्क एक्सपेंशन, अपने पोर्टफोलियो एक्सपेंशन और पैन इंडिया बिजनेस फैलाने में मदद मिलेगी.
इतना ही नहीं डाबर और जुबिलेंट को सॉफ्ट ड्रिंक मार्केट की इकोनॉमिक्स भी समझ में आती है, जो आने वाले सालों में ग्रोथ की ओर इशारा करती है.डाबर और जुबिलेंट कोका-कोला की इंडियन सब्सिडियरी में 40% हिस्सेदारी खरीद सकते हैं. ये डील करीब 1.4 अरब डॉलर की हो सकती है.
जबकि ग्लोबल रिसर्च फर्म स्टेटिसटा का अनुमान है कि 2027 तक भारत में नॉन-अल्कोहॉलिक बेवरेजेस का मार्केट सालाना 12 प्रतिशत की दर से ग्रोथ करेगा. ऐसे में ये डील तीनों ही कंपनी के लिए विन-विन सिचुएशन हो सकती है.