किसानों के मुद्दे पर भारत की थाईलैंड से ठनी, WTO की बैठक बनी ‘प्रेशर कुकर’
भारत अपने 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त राशन देता है, जबकि किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बड़े पैमाने पर खाद्यान्न की खरीद करता है. ऐसे में भारत के बजट का का एक बड़ा हिस्सा किसान और कृषि सब्सिडी पर खर्च होता है. संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी में चल रही WTO बैठक की वार्ताओं में ये मुद्दा काफी अहम है, लेकिन भारत के खाद्य सुरक्षा से किसी भी हालत में समझौता नहीं करने के कड़े रुख के चलते उसकी थाईलैंड के साथ ठन गई है.
दरअसल, भारत सहित दुनिया के 80 देश चाहते हैं कि उन्हें अनाज भंडार तैयार करने के लिए सब्सिडी पर अनाज खरीदने की छूट दी जाए. विकसित और विकासशील देशों का एक पूरा समूह इसके पक्ष में नहीं है. इस मामले पर थाईलैंड और भारत के बीच तलवारें तब खिंच गईं, जब चर्चा के दौरान थाईलैंड के राजदूत ने भारत पर खुला आरोप लगा दिया. उन्होंने कहा कि भारत अपनी राशन व्यवस्था के लिए सब्सिडी पर अनाज खरीदता है और फिर उसका एक्सपोर्ट करता है. ये विश्व व्यापार के नियमों के खिलाफ है.
भारत ने किया बैठकों से किनारा
अब खबर ये है कि भारत ने इस बयान के विरोध में थाईलैंड के प्रतिनिधि का बहिष्कार कर दिया है. वहीं भारतीय पक्ष अब उन बैठकों में हिस्सा नहीं ले रहा है जहां थाईलैंड मौजूद है. कृषि सब्सिडी पर अब डब्ल्यूटीओ दो हिस्सों में बंट गया है. बताया जा रहा है कि थाईलैंड के बयान का अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया ने स्वागत किया है. ये वो देश हैं जो किसानों और खेती के मामले में भारत के प्रस्ताव को रोक रहे हैं.
भारत चाहता है स्थायी समाधान
अभी विकासशील देश खाद्य सुरक्षा के लिए अपने कुल उत्पादन का अधिकतम 10 फीसदी चावल सब्सिडी पर खरीद सकते हैं. ताकि सस्ते चावल के एक्सपोर्ट को रोका जा सके. डब्ल्यूटीओ की बाली बैठक में कृषि पर एक विशेष प्रावधान तय हुआ था जिसके तहत विकासशील देशों कुछ रियायत मिली थी. विशेष परिस्थितियों में वह पीस क्लॉज के तहत निर्धारित सीमा से अधिक खाद्यान्न की खरीद कर सकते हैं. भारत ने इस सुविधा का इस्तेमाल किया है और इसी पर विरोध हो रहा है.
भारत चाहता है कि इस मामले का स्थायी समाधान हो, ताकि किसानों के हित सुरक्षित रहें. विकसित देश इसमें किसी रियायत पर राजी नहीं है. विरोध के स्वर तीखे हैं और सहमति की उम्मीद कम ही लग रही है.