कायस्थों का खाना-पीना7: दाल के फरे जो फ्राई होकर किसी फास्ट फूड को मात देंगे

आज भी बात कायस्थ किचन में विविध प्रकार से चावल के इस्तेमाल और व्यंजनों की होगी. जिसमें खिचड़ी और दाल के फरों की बात होगी. इनका बनाने का तरीका कोई बहुत मुश्किल नहीं होता और स्वाद गजब का.

कायस्थ रसोई में ये काफी पसंदीदा व्यंजन है.

मेरा मतलब ये कतई नहीं है कि मैं जिन कायस्थ क्यूजिंस के बारे में लिख रहा हूं कि वो कायस्थों के रहे हैं अपितु उनके किचन में ये सारे खान-पान पसंद किए जाते रहे हैं, उन्हें चाव से खाया जाता रहा है और नया अंदाज भी दिया जाता रहा है.

बात अगर चावल की हो रही है तो पिछली कड़ी में चर्चा हुई थी कि किस तरह भारत में जब 9000-10,000 ईसा पूर्व या इससे पहले खेती शुरू हुई तो चावल उगाया जाने लगा. हालांकि चावल इससे कहीं ज्यादा पुराना है. ये अनाज वास्तविक तौर पर दुनिया को भारत की देन है.

कभी होता था लोबिया जैसा ‘महाशाली’ चावल

हमें अगर सबसे अच्छे चावल की बात करनी होती है तो दिमाग में एक ही नाम आता है – बासमती. एक जमाना था जब भारत में महाशाली नाम के चावल की खास किस्म उगती थी, जिसके आगे सारे चावल फेल थे. अगर प्राचीन ग्रंथों या संदर्भों में महाशाली को खंगालें तो वहां इसका नाम जरूर मिल जाएगा. लेकिन हम इसे संभाल कर रख नहीं पाए, ये शनैः शनैः लुप्त हो गया. इस चावल का एक दाना काफी बड़ा होता था.

इसकी सुगंध का मुकाबला नहीं था

सातवीं सदी में एक प्रसिद्ध बौद्ध चीनी यात्री जुआन झांग भारत आया. उसने पूरे भारत का भ्रमण किया. गंगा के किनारे की खेती-किसानी देखी. बौद्ध मठों में गया. कई बरस वो भारत में घूमता रहा. फिर जब उसने भारत का यात्रा वृतांत लिखा, तो उसमें महाशाली चावल का जिक्र किया. उसने लिखा, महाशाली चावल का एक दाना ब्लैक बीन (लोबिया के एक दाने सरीखा) जितना बड़ा होता था. जब इसे पकाया जाता था, तो इससे आने वाली सुगंध और चमक गजब की होती थी. उसका कोई मुकाबला ही नहीं.

 

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