Ghuspaithiya Review: डिजिटल दुनिया और जासूसी का जाल, घुसपैठिया है बेहद अहम फिल्म

देश की जीत इस बात पर निर्भर नहीं करती कि उसकी आर्मी कितनी बड़ी है, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि उसके जासूस कितने काबिल हैं. अर्थशास्त्र रचयिता चाणक्य का मानना था कि औरत, दौलत, ताकत और किसी से बदला लेने की चाहत, ये चारों चीजें किसी को भी तोड़ने और उनके राज जानने के काम आ सकती हैं. अगर आज वो जिंदा होते तो शायद पांचवीं चीज भी इस लिस्ट में जोड़ देते और वो होती हमारा टेलीफोन. शायद इसलिए सालों से दुनिया का हर खुफिया विभाग फोन टैपिंग को हथियार की तरह इस्तेमाल करता आ रहा है. कई फिल्मों में भी हमने ये देखा है. हालांकि सिर्फ फोन टैपिंग पर कभी कोई फिल्म नहीं बनाई गई थी. विनीत कुमार सिंह, अक्षय ओबेरॉय और उर्वशी रौतेला की फिल्म ‘घुसपैठिया’ ने ये भी कमी पूरी कर दी.
वैसे तो उर्वशी रौतेला की फिल्म देखने में खास दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन फिर विनीत कुमार सिंह और अक्षय ओबेरॉय का नाम देख लिया. दो टैलेंटेड एक्टर्स के साथ अगर कोई फिल्म बनाकर थिएटर में रिलीज करने की हिम्मत दिखाता है, तब मैं मानती हूं कि इस फिल्म को हमें एक मौका तो देना चाहिए और अगर अच्छी लगे तो थोड़ी ज्यादा तारीफ भी करनी चाहिए. मुझे तो फिल्म अच्छी लगी.

#Ghuspaithiya is one of the top films this year! #UrvashiRautela and #VineetSingh offer exceptional performances. A gripping and unforgettable story pic.twitter.com/1kv7htDARn
— Trisha Kale (@KaleTrisha__) August 9, 2024

कहानी
वैसे तो रवि (विनीत कुमार सिंह) एक ईमानदार अफसर था. लेकिन जब उसे फोन टैपिंग का काम सौंप दिया जाता है तब उसके मुंह में भी लालच का खून लग जाता है. लोगों का फोन टैप करके वो उसका इस्तेमाल उन्हें ब्लैकमेल करने के लिए करने लगता है और धीरे-धीरे इस काम में उसको मजा भी आने लगता है. लेकिन फिर कहानी में एक ट्विस्ट आ जाता है. ये ट्विस्ट क्या है ये जानने के लिए आपको थिएटर में जाकर फिल्म ‘घुसपैठिया’ देखनी होगी.
जानें कैसी है फिल्म
ये फिल्म एंगेजिंग है. भले इस फिल्म में कोई बड़ा स्टार न हो, लेकिन फिर भी एक्टर्स से लेकर निर्देशक तक, सभी ने बड़ी ही ईमानदारी से एक अच्छी फिल्म बनाने की कोशिश की है. ‘घुसपैठिया’ का सब्जेक्ट भी उत्सुकता बढ़ाने वाला है और इसलिए आप इसे देखते हुए बोर नहीं होते.
निर्देशन और राइटिंग
सुसी गणेशन ‘घुसपैठिया’ के निर्देशक हैं. तमिल सुपरस्टार विक्रम के साथ काम करने वाले सुसि गणेशन की ये दूसरी हिंदी फिल्म है. उन्होंने 9 साल पहले नील नितिन मुकेश और अमीषा पटेल के साथ ‘शॉर्टकट रोमियो’ बनाई थी. अब एक लंबे ब्रेक के बाद सुसी गणेशन ने ‘घुसपैठिया’ बनाई है. फिल्म को देखकर कहा जा सकता है कि उनका विजन बहुत क्लियर है और शुरुआत से आखिर तक वो अपनी फिल्म से हमें बांधे रखते हैं.
इस फिल्म में एक सीन है जहां लोगों की शक्ल में छुपे जानवरों को दिखाने की निर्देशक ने कोशिश की है. वहां हम सिग्नल चलने के इंतजार में हीरो को बाइक पर बैठा हुआ देखते हैं और जब वो अपने दाहिने तरफ नजर घुमाता है तब उसे इंसान की जगह शेर-भेड़िया-कुत्ते के चेहरे बाइक पर बैठे हुए नजर आते हैं और इस दौरान पीछे चल रहा बैकग्राउंड स्कोर भी कमाल का है. इस तरह के कई सीन हैं, जहां निर्देशन अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए हमारे सामने कुछ ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ पेश करने की कोशिश की है और इस कोशिश में एक्टर्स ने भी उनका पूरा साथ दिया है.

Feeling grateful for this experience! Visiting the Maharashtra Cyber Department and engaging with Mr Yashasvi Yadav IPS, and his team was enlightening and humbling. A powerful reminder of the real stakes of cybercrime. Thank you#MyGhuspaithiyaStory #GhuspaithiyaAlert pic.twitter.com/U590k4I4ij
— Akshay Oberoi (@Akshay0beroi) August 1, 2024

एक्टिंग
विनीत कुमार सिंह अपनी एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं. ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से लेकर ‘सांड की आंख’ और ‘मुक्केबाज’ तक कई फिल्मों में उन्होंने अपनी एक्टिंग का कमाल दिखाया है. अक्षय ओबेरॉय ने भी ओटीटी और फिल्म दोनों के माध्यम से साबित किया है कि भले ही वो स्टार न हो, लेकिन वो एक कमाल के एक्टर हैं. दोनों ने सुसि गणेशन के विजन को पूरी तरह से न्याय दिया है. उर्वशी रौतेला भी ठीक-ठाक है.
देखे या न देखें
वैसे इस फिल्म को न देखने की तो कई सारी वजह हैं. फिल्म में न कोई बड़ा स्टार है न ही शानदार सिनेमेटोग्राफी. वीएफएक्स पर भी मेकर्स ने ज्यादा खर्च नहीं किया है. आज थिएटर में फिल्म देखना बड़ा ही महंगा हो गया है और इसलिए ब्रांड वैल्यू देखकर ही लोग फिल्म देखने थिएटर में जाते हैं. इस फिल्म में वो ब्रांड वैल्यू मिसिंग है.
फिर भी मुझे लगता है कि फिल्म ‘घुसपैठिया’ अपने सब्जेक्ट के लिए चार स्टार डिजर्व करती है. आज इंटरनेट के जमाने में फोन और सोशल मीडिया अकाउंट से दूसरों की जिंदगी में घुसपैठ करना बहुत आसान हो गया है और फिर भी इसका ऑबसेशन दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है. लेकिन जिस तरह से भूख से ज्यादा खाना हजम नहीं होता, ठीक उसी तरह से जरूरत से ज्यादा डिजिटल दुनिया का ऑबसेशन भी लोगों का नुकसान कर रहा है और इन सभी चीजों को हाइलाइट करते हुए यहां एक अच्छी फिल्म बनाने की कोशिश की गई है और इस कोशिश के लिए फिल्म को एक मौका जरूर दिया जा सकता है.

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