GOAT Review : वही पुराना मसाला, वही पुराना थलपति विजय…कैसी है Greatest Of All Time?

विजय मेरे पसंदीदा तमिल एक्टर हैं. उनकी फिल्में मैंने ‘हिंदी डब फिल्म्स ऑफ विजय थलपति’ सर्च करके देखी हैं. ये समय तब का था जब मुझे साउथ फिल्मों के डबल रोल पसंद आते थे और अब मैं इन फिल्मों में दिखाए जाने वाले डबल रोल से तंग आ गई हूं. मुझे बाहुबली में प्रभास का डबल रोल बेहद पसंद आया था, इससे पहले भी विजय या राम पोतनेनी की फिल्मों में उनके डबल रोल मैं खूब एंजॉय करती थी. लेकिन अब साउथ की फिल्म देखने जाने से पहले मैं दिल से भगवान से प्रार्थना करती हूं कि इस फिल्म में डबल रोल न हो. अब वैसे तो Greatest Of All Time नाम की फिल्म मैं कभी न देखूं, लेकिन इसमें विजय थे, कहा जा रहा है कि उनकी ये सेकंड लास्ट फिल्म भी हो सकती है, इसलिए मैंने फिल्म देख डाली.
मेरे अंदर के थलपति विजय फैन को ये फिल्म बहुत अच्छी लगी. ये फिल्म विजय की पिछली फिल्मों जैसी ही है, जहां एक्शन है, रोमांस है, कॉमेडी है और ‘विजय वाला डांस’ भी है. लेकिन आप हमारा रिव्यू देखकर ये तय करते हैं कि आपको फिल्म देखनी चाहिए या नहीं? इसलिए इस बारे में ईमानदारी से बात करेंगे. आपको भी मेरी तरह विजय की फिल्में पसंद आती हैं, तो आप ये फिल्म एंजॉय करेंगे. लेकिन अगर आप उनके फैन नहीं हैं, तो आपके लिए इस फिल्म में वही पुराना वाला मसाला है, जिसे हम अनगिनत बार देख चुके हैं. इसलिए इस फिल्म को ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ तो नहीं कहा जा सकता, ये फिल्म तो विजय की फिल्मों में भी ‘ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ फिल्म नहीं है.

GOAT की कहानी
गांधी (थलपति विजय) का परिवार इस बात से अनजान है कि वो SATS (स्पेशल एंटी टेररिस्ट स्क्वाड) का एक अफसर है. हर दिन नए खतरों का सामना करने वाला गांधी न तो अपनी बीवी को समय दे पाता है न ही अपने बेटे जीवन और अपनी होने वाली बेटी को. अपने पति के सीक्रेट मिशन से अनजान गांधी की बीवी ये मान लेती है कि उसके पति का किसी और के साथ अफेयर चल रहा है. आखिरकार वो भी स्त्री है और वो भी अपने पति से कुछ भी करा सकती है. तो देश के महत्वपूर्ण मिशन को गांधी अपना फैमिली हॉलीडे बना लेता है. फिर क्या था उन पर हमला हो जाता है, उस हमले में गांधी का बेटा मारा जाता है. बेटे के खोने को बाद उसकी बीवी उससे दूर हो जाती है. गांधी अपनी जिंदगी में अपने खतरनाक मिशन के साथ आगे बढ़ जाते हैं. फिर आगे क्या होता है ये देखने के लिए आपको विजय की ‘ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ देखनी होगी.
कैसी है GOAT?
जैसे मैंने पहले भी कहा है कि फिल्म काफी प्रेडिक्टेबल है. मैंने फिर भी इस कहानी में स्पॉइलर नहीं दिया है, लेकिन कहानी के बारे में दी गई जानकारी पढ़कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांधी का बेटा जीवन भी उसी की तरह दिखेगा. बाप-बेटे आपस में टकराएंगे, जुदा हुए पति-पत्नी फिर से मिलेंगे और इस बीच कई मिशन भी होंगे जिनमें हमें हीरो की देशभक्ति वगैरह नजर आएगी. अब इसमें एक ट्विस्ट है. लेकिन यकीन मानिए कहानी यही होने वाली है. यानी कुल मिलाकर ऐसी कहानी जिसमें न ही कोई नयापन है, न ही कोई एक्सपेरिमेंट है, वीएफएक्स भी ठीक-ठाक है. लेकिन न ही ये फिल्म कोई मैसेज देने की कोशिश करती है और न ही किसी बड़े मुद्दे पर बात करती है. एक तरफ जहां विजय अपना पॉलिटिकल करियर शुरू करने जा रहे हैं वहां उनसे एक दमदार फिल्म की अपेक्षा थी, जहां वो कोई मुद्दा हाईलाइट करें. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया है.
अगर ‘स्त्री 2’ जैसी हॉरर कॉमेडी में, जो सिर्फ लोगों के मनोरंजन के लिए बनी है, भी समाज के अहम मुद्दों को लेकर बात की गई है, तो भविष्य के लीडर से तो इस तरह की फिल्म की उम्मीद करना जायज है. लेकिन बस इतना कहूंगी कि ‘ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ ने मुझे उतना ही निराश किया जितना कमल हासन की ‘इंडियन 2’ ने.
निर्देशन
राइटिंग की बात नहीं करेंगे. क्योंकि विजय के फिल्म की राइटिंग ऐसी है कि अगर मुझे मौका दिया जाए तो मैं भी ऐसा स्क्रीन प्ले लिख सकती हूं. इसमें मुझे देश से जुड़ी बड़ी एजेंसी पकड़नी हैं, मेरा हीरो कोई बड़ा अफसर साइंटिस्ट या मिलिटरी से जुड़ा हुआ होगा. फिर इसमें रिवेंज ड्रामा होगा. बाप और बेटा दोनों आपस में टकराएंगे और फिर आखिर में एक होकर दुश्मन से लड़ेंगे. लेकिन एक वही पुरानी घिसीपिटी कहानी को कोई निर्देशक चाहे तो अच्छे पैकेज में पेश कर सकता है. लेकिन डायरेक्टर वेंकट प्रभु वो कर नहीं पाए. वो कहानी में सस्पेंस और थ्रिल दिखाने की कोशिश जरूर करते हैं. लेकिन इसमें कोई यूनिक चीज मैं नहीं देख पाई. अगर आपके पास विजय जैसा एक्टर हो, तो आप एक औसत दर्जे की फिल्म ऑडियंस के सामने नहीं पेश कर सकते, ये गुनाह है.

एक्टिंग
हमेशा की तरह विजय अपनी एक्टिंग से ऑडियंस का खूब मनोरंजन करने की कोशिश करते हैं. बाकी कलाकारों में प्रभु देवा भी हैं, जो अपना किरदार शिद्दत से निभाते हैं. इस फिल्म में बाकी कलाकार भी हैं, जो अपने किरदार को न्याय देते हैं. लेकिन फिल्म सिर्फ विजय के इर्द-गिर्द घूमती है.
देखे या न देखें
अगर आप विजय के फैन हैं, तो ये फिल्म आपके लिए ही है. आप थिएटर जाओ, सीटी बजाओ और खूब एंजॉय करो. लेकिन आपको सिनेमा पसंद है, तो ये फिल्म आप स्किप कर सकते हैं. इस फिल्म में वो सब है, जिसकी वजह से साउथ फिल्में देखने का मेरा इंटरेस्ट खत्म हो रहा है. एक तो डबल रोल, जिसके बारे में मैंने इस रिव्यू की शुरुआत में ही बात की है और दूसरी सीक्वल की जिद. हर फिल्म की एंडिंग के लिए सीक्वल का इंतजार करने से अच्छा मैं बॉलीवुड फिल्में देख लूं. कम से कम ‘पैसा वसूल’ का समाधान तो मिल जाएगा.
इंडियन, सलार, कल्कि कितने नाम लिए जाए, प्लीज हमें इन सीक्वल से बचाओ. आप एसएस राजामौली से सीखिए, ‘कट्टपा ने बाहुबली को क्यों मारा’ से ट्रेंड सेट करने के बाद उन्होंने आरआरआर एक ही पार्ट में खत्म कर दी. उनके लिए तो हम सीक्वल भी देख लेते. YRF या मैडॉक फिल्म से प्रेरणा लीजिए एक कहानी खत्म करके, फिर सीक्वल की घोषणा की जाती है. सीक्वल के लिए वो आपकी तरह अपनी पहली फिल्म आधी-अधूरी तो नहीं छोड़ते.

विजय एक और चीज भी करनी चाहिए. अपनी फिल्म की हिंदी डबिंग टीम को उन्हें तुरंत फायर कर देना चाहिए. तेलुगू फिल्मों की डबिंग देखिए, कन्नड़ फिल्मों की हिंदी डबिंग देखिए और फिर विजय की फिल्मों की डबिंग देखिए. ऐसा लग रहा है कि इस फिल्म में उसी टीम को हायर किया गया है, जो यूट्यूब पर उनकी फिल्मों की हिंदी डबिंग किया करते थे.
100 बात की एक बात, सॉरी विजय आप ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम हो सकते हैं. लेकिन ये फिल्म ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम नहीं है.

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