ये गलतियां न करते उद्धव ठाकरे तो हाथ से न जाती शिवसेना

महाराष्ट्र में विधायकों की अयोग्यता पर आया फैसला उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका दे गया. विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने अपने फैसले से शिंदे गुट को राहत दी और एक बार फिर आधिकारिक तौर पर ये पुष्टि कर दी कि चुनाव आयोग असली शिवसेना शिंदे गुट को ही मानता है. इस फैसले के बाद ये भी साफ हो गया कि उद्धव ठाकरे के हाथ से पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न हमेशा के लिए चला गया.

महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने विधायकों की अयोग्यता मामले में फैसला सुनाते हुए कई टिप्पणियां कीं. फैसले की मुख्य बातों का विश्लेषण करने के बाद सामने आया कि यदि उद्धव ठाकरे मनमानी और जल्दबाजी में फैसले न लेते तो शायद पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न उनके हाथ से कभी नहीं जाता. फैसले में ठाकरे के लिए जो राहत की बात रही वह यह थी कि विधानसभा अध्यक्ष ने उनके गुट के विधायकों को भी अयोग्य नहीं माना. बाकी पूरा फैसला शिंदे गुट के पक्ष में गया.

उद्धव ठाकरे की वो गलतियां जो भारी पड़ीं

  1. ठाकरे गुट ने शिवसेना का संविधान बदला, उद्धव ठाकरे को पार्टी प्रमुख बनाया गया. 2018 में किए गए इस बदलाव की जानकारी चुनाव आयोग को नहीं दी गई. बुधवार को विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने फैसले में कहा कि यह बदलाव असंवैधानिक है. इससे ये साबित नहीं हो सका कि उद्धव ठाकरे ही पार्टी के मुखिया है. इससे विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने 1999 के संविधान को आधार मानकर फैसला सुनाया और शिंदे गुट द्वारा 2023 में किए गए संशोधन को स्वीकार किया. इससे पार्टी पर हक शिंदे गुट का हो गया.
  2. बालासाहेब ठाकरे के समय शिवसेना में आंतरिक चुनाव नहीं होते थे. 1999 में उन्होंने संविधान बदला और इसके बाद आंतरिक चुनाव होने लगे, जिसमें कार्यकारिणी पार्टी प्रमुख चुनती थी. उद्धव ठाकरे ने 2018 में बिना चुनाव ही खुद को पार्टी प्रमुख बना लिया. इसके लिए पार्टी का संविधान बदला लेकिन चुनाव आयोग को जानकारी नहीं दी. इसलिए चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे को पार्टी प्रमुख नहीं माना.
  3. शिवसेना के संविधान के मुताबिक कार्यकारिणी के पास सारी शक्तियां थीं, कार्यकारिणी जिसे चाहे नियुक्त या बर्खास्त कर सकती थी. हालांकि उद्धव ठाकरे ने खुद ही एक नाथ शिंदे को शिवसेना नेता के पद से बर्खास्त कर दिया. राहुल नार्वेकर ने अपने फैसले में इसका जिक्र किया और कहा कि उद्धव ठाकरे को ये निर्णय लेने का अधिकार ही नहीं था. इसीलिए शिंदे की बर्खास्तगी को असंवैधानिक माना गया.
  4. एक नाथ शिंदे ने जब पार्टी से बगावत कर दी, इसके बाद उद्धव ठाकरे ने पार्टी की बैठक बुलाई. इस बैठक में विधायक और सांसद भी मौजूद थे. सांसद राहुल शेवाले भी मौजूद थे. इस बैठक में कुछ फैसले लिए गए. चूंकि शेवाले और कुछ अन्य सांसद कार्यकारिणी का हिस्सा नहीं थे, फिर भी यह निर्णय लिया गया, इसलिए कार्यकारिणी में शामिल लोगों के बिना ही हुई इस मीटिंग को भी अमान्य कर दिया गया.
  5. जब विधानसभा में स्पीकर फैसला सुना रहे थे, तब उद्धव ठाकरे विधानसभा में उपस्थित नहीं थे. उन्हें जिरह के लिए भी नहीं बुलाया गया. उद्धव ठाकरे ने हलफनामा भेजा, लेकिन इसमें अनुपस्थिति का कोई कारण नहीं बताया गया. इसलिए उनका हलफनामा खारिज कर दिया गया. इससे यह भी पता चलता है कि उद्धव ठाकरे ने इस सुनवाई को गंभीरता से नहीं लिया और उनकी गलतियां शिंदे गुट की ताकत बन गईं.

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *