Haryana Assembly Election 2024: विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया के इस्तीफे में कहां फंसा पेच, क्या चुनाव लड़ने आ सकती है अड़चन?

विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया का रेलवे से इस्तीफा का मामला तकनीकी पेचीदगी में फंसता दिख रहा है. विनेश और बजरंग की राजनीतिक गतिविधियां हाल के दिनों में बढ़ी हैं. रेलवे की ओर से 4 सितंबर को उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था. इस नोटिस में उनकी राजनीतिक गतिविधियों के बारे में पूछा गया. 6 सितंबर को बजरंग और विनेश ने रेलवे में अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
विनेश ने अपने इस्तीफे में लिखा कि भारतीय रेलवे की सेवा मेरे जीवन का एक यादगार और गौरवपूर्ण समय रहा है. जीवन के इस मोड़ पर मैंने स्वयं को रेलवे सेवा से पृथक करने का निर्णय लेते हुए अपना त्यागपत्र भारतीय रेलवे के सक्षम अधिकारियों को सौंप दिया है. राष्ट्र की सेवा में रेलवे द्वारा मुझे दिए गए इस अवसर के लिए मैं भारतीय रेलवे परिवार की सदैव आभारी रहूंगी.
इसके साथ ही रेलवे को एक महीने की सैलरी भी देने की बात की है. वो इसलिए क्योंकि वो तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे रही हैं. एक महीने का नोटिस नहीं दे रही हैं. विनेश उत्तर रेलवे में ओएसडी स्पोर्ट्स के पद पर थीं. उन्होंने एक तरफ इस्तीफा दिया, दूसरी तरफ कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की. कांग्रेस ने उन्हें जुलाना सीट से उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है.
कहां फंसा है पेच
रेलवे की ओर से अबतक विनेश का इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया है. विनेश ने तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दिया है. ठीक इसी तरह बजरंग पूनिया का भी इस्तीफा मंजूर नहीं किया गया है. जबतक इनका इस्तीफा मंजूर नहीं होता है, तबतक दोनों किसी भी तरह का चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं होंगे.
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रेलवे की ओर से सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, कोई कर्मचारी नौकरी में रहते हुए इस्तीफा देता है तो उसे तीन महीने का नोटिस देना पड़ता है अथवा वह तत्काल प्रभाव से रेलवे से इस्तीफा देता है. अगर, वह तीन महीने तक नोटिस के बीच में कभी उस कर्मचारी का मन फिर से सर्विस में आने का होता है तो वह अपने इस्तीफे को वापस ले सकता है. ठीक इसके विपरीत अगर वह तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता है तो उसमें वापसी की गुंजाइश खत्म हो जाती है.
क्या है चुनाव लड़ने में अड़चन
अगर विनेश का इस्तीफा मंजूर नहीं होता है तो वह आगामी हरियाणा चुनाव नहीं लड़ सकती हैं. जब कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ना चाहता है और वह किसी भी सरकारी पद पर होता है तो पहले उसको इ्स्तीफा देकर एनओसी लेनी पड़ती है. इसमें वह इस बात को लेकर आश्वस्त करता है कि वह किसी भी तरह का सरकारी पद अथवा उसे मिल रही पूर्व सेवा को नहीं ले रहा है. जबतक एनओसी नहीं मिलती है तबतक वह चुनाव लड़ने के काबिल नहीं है. इसकी वजह है कि बिना एनओसी के चुनाव के समय रिटर्निंग ऑफिसर उसके आवेदन को स्वीकार ही नहीं करेगा.
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