जन्नत को लगी नजर, हिमाचल-कश्मीर में बर्फबारी कम-गुलमर्ग भी सूखा

बर्फ की सफेद चादर में लिपटी रहने वाली जन्नत को नजर लग गई है, पहाड़ों पर बर्फबारी की चाह में पहुंच रहे पर्यटक निराश हो रहे हैं, सिर्फ कश्मीर ही नहीं हिमाचल में भी इस बार बर्फबारी बेहद कम हुई है. बर्फ से अटा रहने वाले गुलमर्ग में भी सूखा पड़ा है. पर्यटकों के लिए तो ये निराशा की बात है ही, पर्यावरण के लिए भी ये एक बड़े खतरे का संकेत है.

पहाड़ों पर बर्फबारी में मौज मस्ती और बर्फ पर स्कीइंग करने की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को निराशा हाथ लग रही है. बर्फबारी में कमी आने की वजह से पर्यटक लगातार पहाड़ी स्थलों की यात्राएं रद्द कर रहे हैं. मौसम विज्ञानी इसके लिए शुष्क सर्दी को जिम्मेदार मान रहे हैं. माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में भी इससे राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही.

कश्मीर में बर्फबारी न के बराबर, हिमाचल की हालत भी खराब

हिमालय के पहाड़ों में इस बार बर्फबारी न के बराबर ही हुई है, कश्मीर, हिमाचल के साथ-साथ उत्तराखंड के भी यही हालात हैं. यहां औसत बर्फबारी की वजह से पर्यटकों को काफी निराशा महसूस हुई है. खासकर गुलमर्ग के हालात खराब हैं, यहां इस बार बिल्कुल भी बर्फ नजर नहीं आ रही. मंगलवार को पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने भी सोशल मीडिया पोस्ट पर पिछले दो साल की तस्वीर पोस्ट कर इस बात पर चिंता जताई.

बर्फबारी में आ रही भारी कमी

कश्मीर के साथ हिमाचल में भी लगातार बर्फबारी में कमी आ रही है. हिमाचल में बर्फ की परत में तकरीबन 18 प्रतिशत की कमी देखी गई है. यदि पिछले 20 सालों की बात करें तो पहाड़ों पर होने वाली बर्फबारी में तकरीबन 78 प्रतिशत की कमी आई है. हालात ये हैं कि 2019-20 में हिमाचल में बर्फ की परत तकरीबन 23542 वर्ग किमी थी जो अगले साल घटकर 19183 वर्ग किमी रह गई थी. इस बात तो हालात और भी ज्यादा खराब नजर आ रहे हैं.

Gulmarg

गुलमर्ग में 9 जनवरी की तस्वीर, पिछले साल यह इलाका बर्फ से अटा पड़ा था.

अलनीनो है प्रमुख वजह

विश्व मौसम विज्ञान संगठन की मानें तो 2023 सबसे गर्म वर्ष दर्ज किया गया था. इस वजह से अलनीनो सक्रिय हुआ. माना जा रहा है कि कश्मीर में बर्फबारी कम होने की वजह यही है. अलनीनो तब सक्रिय होता है जब समुद्र की तरह का तापमान पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र के औसत से अधिक हो और ट्रेड विंड कमजोर हो. मौसम विशेषज्ञ मानते हैं कि बर्फबारी न होने की वजह से वार्षिक चक्र प्रभावित होता है.

पड़ेगा प्रतिकूल प्रभाव

पहाड़ों पर बर्फबारी न होने से कई प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ेंगे. हिमालय के अनुसंधानकर्ता ए एन डिमरी ने पीटीआई से बातचीत में कहा कि यदि बर्फबारी में ऐसे ही कमी आती है तो आने वाले समय में सामाजिक चक्र पर भी असर पड़ सकता है. बर्फ न गिरने की वजह से पानी की कमी प्रभावित हो सकती है. इससे अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है. बीआरओ के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने पीटीआई से बातचीत में कहा कि जोजिला दर्रा कश्मीर को लद्दाख से जोड़ता है और लद्दाख के अग्रिम क्षेत्रों में तैनात सैनिकों की खातिर आपूर्ति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है. सामान्य तौर पर इस समय के आसपास वहां कम से कम 30 से 40 फुट बर्फ जमा हो जाती है, लेकिन इस बार छह से सात फुट तक ही बर्फ है

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